“प्रमोशन का पन्ना” किसकी भूमिका, कितने सोपान? कितनी ठगी, कितने बेईमान?

लेखक: संजय शर्मा ( टीचर्स एसोसिएशन के प्रदेशाध्यक्ष हैं)
आलेख: प्राचार्य पदोन्नति के लिए लगातार शिक्षा कर्मियों से छल होता रहा है, 1998 में समान पात्रता व योग्यता में भर्ती हुए शिक्षक और सहायक शिक्षक की पदोन्नति का प्रावधान 7 साल में किया गया था, शिक्षाकर्मी वर्ग एक के रूप में व्याख्याता पद पर पदस्थ इस संवर्ग के लिए कोई पदोन्नति का प्रावधान उच्च पद के लिए नहीं किया गया था,, प्राचार्य पदोन्नति के लिए विभागीय परीक्षा हुई तो बहुत से शिक्षा कर्मी वर्ग 1 ने आवेदन किया, इसके बाद वह परीक्षा चयन के लिए सफल नहीं हो सका, यह कहिए कि उसमें ज्यादा से ज्यादा शिक्षाकर्मी वर्ग एक चयनित हो गए जिसके कारण उस सूची को अवरुद्ध कर दिया गया, तब शिक्षा विभाग द्वारा शिक्षा कर्मियों से दोहरे दर्जे का व्यवहार आम था।
शिक्षाकर्मी भर्ती व पदोन्नति सेवा शर्त नियम 2007 बना, हम लोग लगातार पदोन्नति की मांग करते रहे, नियमित शिक्षक और सहायक शिक्षक की पदोन्नति लगातार हुआ साथ ही पंचायत में भी शिक्षा कर्मी वर्ग 2 व 3 की पदोन्नति 7 वर्ष के अनुभव में पंचायत/ननि में भी होती रही।
2008 में शिक्षा विभाग का नया सेटअप आया, जिसमे हजारो पद सभी स्तर पर बढ़े, सीधी भर्ती व पदोन्नति लगातार की गई, यही वह संक्रमण का दौर था जब डीपीआई के कॉकस ने व्याख्याता के रिक्त पद पर पदोन्नति अनुभव के आधार पर विभागीय परीक्षा से कर दी, जिससे हजारो सहायक शिक्षक संस्कृत, राजनीति, हिंदी, इतिहास, अंग्रेजी, गणित जैसे विषय मे स्नातकोत्तर की परीक्षा निजी महाविद्यालय में प्राइवेट रूप में देकर प्रमाणपत्र ले आये और आदेशानुसार पात्र हो गए।
अंततः 2012 को नया भर्ती व पदोन्नति नियम पंचायत/ननि का आया जिसमें 2007 नियम में वर्ग 1 के पदोन्नति स्पष्ट नही था, इस बार भारी दबाव के बाद उल्लेख किया गया था,,कि रिक्त पद जो प्राचार्य के होंगे उसमें से 25% पंचायत/ननि को दिया जाएगा, जिसमें पंचायत/ननि में कार्यरत शिक्षा कर्मी वर्ग एक की पदोन्नति होगी लेकिन उस नियम का शिक्षा व आ जा क विभाग ने कभी पालन नहीं किया,,पंचायत/ननि विभाग को कोई पद नहीं दिया गया।
लंबी एक कहानी है शिक्षा कर्मी वर्ग 1 अनुभव के बाद भी पदोन्नति के लिए कोई पद नहीं होने के कारण, वह उसी स्तर पर स्थिर बने रहे,,शिक्षक का कार्य बेहतर होते हुए भी विभाग में हमेशा उपेक्षा मिलती रही और साल दर साल निरंतर बीतता रहा, 20 वर्ष में भी वर्ग 1 व्याख्याता पंचायत/ननि की पदोन्नति नही हुई।
एक लंबी लड़ाई के बाद शून्य में हड़ताल वापसी ने सरकार को राजनीतिक नुकसान के दरवाजे पर खड़ा कर दिया तब अंततः संविलियन 2018 में होने के बाद व्याख्याता पंचायत / नगरीय निकाय को एल बी संवर्ग के रूप में अलग पद दिलाने में संघ ने महती भूमिका शिक्षा सचिव के साथ रखा,,और पदोन्नति का एक रास्ता खुला, नियम में 5 वर्ष अनुभव पर पदोन्नति का प्रावधान तय किया गया था।
एक ऐसा समय भी आया जब शिक्षा विभाग के प्रमुख सचिव ने हमारे मांग पर कैबिनेट में यह निर्णय कराया कि पदोन्नति हेतु वन टाइम रिलैक्सेशन दिया जाएगा।
इस विषय को ध्यान में रखते हुए जब वेतन विसंगति की मांग सहायक शिक्षकों की जोर पकड़ रही थी और शासन स्तर पर वेतन विसंगति नहीं होने की बातें प्रचारित व तय की जा रही थी, कमेटी दर कमेटी का गठन होता रहा, चर्चा बस चर्चा होती रही लेकिन समाधान नहीं हुआ, ऐसे समय में पदोन्नति हेतु वन टाइम रिलैक्सेशन की मांग छत्तीसगढ़ टीचर्स एसोसिएशन के द्वारा तथ्यात्मक रूप से किया गया और विभाग के प्रमुख सचिव को यह समझाने में हम सफल हुए, प्रदेश के रिक्त हजारों प्राचार्य, व्याख्याता, प्रधान पाठक, शिक्षक के पदों की पूर्ति एल बी संवर्ग व शिक्षक संवर्ग से किया जाए, क्योंकि 5 मार्च 2019 के भर्ती व पदोन्नति नियम में 5 वर्ष के अनुभव के आधार पर पदोन्नति का प्रावधान था,, तो 5 वर्ष से पहले पदोन्नति नहीं किया जा सकता था, अतः 2 वर्ष का रिलेक्सेशन देते हुए 3 वर्ष के अनुभव पर एक बार पदोन्नति दिया जावे, इससे शिक्षक व सहायक शिक्षक संवर्ग की पदोन्नति हुई।
शिक्षा विभाग ने पुनः व्याख्याता एल बी संवर्ग से धोखा किया और उन्हें प्राचार्य पदोन्नति से दूर रखा अर्थात वन टाइम रिलैक्सेशन जो कैबिनेट से लागू हुआ उसमें व्याख्याता संवर्ग को अलग किया जा चुका था इसलिए उनकी पदोन्नति संभव ही नहीं थी, तब शिक्षा विभाग में नियमित व्याख्याता और प्रधान पाठक से प्राचार्य के पदों की पूर्ति की एक योजना बनाई जो समय रहते छत्तीसगढ़ टीचर्स एसोसिएशन को समझ में आने लगा और जैसे ही विभाग से प्राचार्य पद पर 5 वर्ष के अनुभव के आधार पर पदोन्नति का पत्र जारी हुआ, उसको माननीय हाई कोर्ट में चैलेंज किया गया, चुनौती दी गई अंततः सिंगल बेंच में हमारी हार हुई, पुनः इस विषय को लेकर माननीय उच्च न्यायालय के डबल बेंच में याचिका लगाई गई जिसमें व्याख्याता एल बी संवर्ग की हार हुई और कास्ट भी किया गया।
इसके बाद व्याख्याता एल बी संवर्ग ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की और सुप्रीम कोर्ट से शिक्षा विभाग को नोटिस जारी किया गया है जिसको ध्यान में रखते हुए शिक्षा विभाग ने सावधानी बरतना शुरू किया और तब तक व्याख्याता एल बी संवर्ग को भी 5 वर्ष पूरा हो गया था और तभी छत्तीसगढ़ टीचर्स एसोसिएशन ने लगातार कहा कि जब भी प्राचार्य पद पर पदोन्नति होगी बिना एल बी संवर्ग के पदोन्नति संभव ही नहीं है, यह टैगलाइन बना शिक्षा विभाग के लिए और अंततः पदोन्नति का यह पल हम सबके सामने है।
शिक्षा विभाग के सचिव व संचालक कार्यालय ने ग्रेडेशन लिस्ट बनाने में काफी काम किया व तेज गति से किया, अवरोध विरोध को पार करते हुए एसोसिएशन ने भी प्राचार्य पदोन्नति हेतु शिक्षा विभाग को लगातार सहयोग किया, लेकिन शिक्षा विभाग के इस पूरी जद्दोजहद के बीच बिलासपुर न्यायालय केंद्र में रहा, हमारे बिलासपुर के साथी व्याख्याता एल बी संवर्ग इसके केंद्र में रहे और वह वकीलों के माध्यम से एक, दो, चार वकीलों के माध्यम से लगातार याचिका लगाते रहे और अनुभव के 3 वर्ष का समय हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई व रणनीति से पार कराया,, इसके बाद 6 वर्ष पूर्ण हुआ, और नियमानुसार पात्र हो गए,,इस दौर में हमारे कुछ ऐसे साथी भी जो शुरुआत मे सभी को जोड़ने में, इकट्ठा करने में, इस रणनीति में शामिल रहे वे आज की इस पदोन्नति सूची में शामिल नहीं है, हम सबको भी तकलीफ है लेकिन एक प्रक्रिया है, आगे निश्चित रूप से ऐसे साथी इस मुख्य धारा में प्राचार्य पदोन्नति में आएंगे और 1998 व्याख्याता संवर्ग में शिक्षा कर्मी वर्ग एक के रूप में नियुक्त हुए साथी है उन सभी को प्राचार्य पद मिले, इसके लिए हम प्रयास भी जारी रखेंगे,,एक पगडंडी से हाइवे रास्ता तैयार हुआ है, आने वाले दौर में ग्रेडेशन लिस्ट से पदोन्नति जारी रहेगी।