जलवायु परिवर्तन: 29वीं कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टी, 11 नवम्बर से 22 नवम्बर बाकू में, दो भेडिये और एक मेमना एक बार फिर बनाएंगे नाश्ते का मीनू
विशेष आलेख: नितिन सिंघवी
लेखक- छत्तीसगढ़ के पर्यावरण प्रेमी
भेडियों और मेमनों में बहुमत अगर भेडियों का हो तो नाश्ते का मीनू भेडिये ही चुनेंगे, मेमना ही मारा जायेगा। ऐसी ही हालात जलवायु संकट से निपटने के लिए हो गई है। 11 तारीख से पेट्रोल उत्पादक देश अज़र्बेजान के बाकू में जलवायु परिवर्तन की 29वीं कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टी चालू हुई है, 200 देश भाग लेंगे। अध्यक्ष आयोजक देश का होता है, इस बार भी राष्ट्रीय आयल कंपनी के लिए कार्य कर चुके मंत्री अध्यक्ष है। 28वीं कॉन्फ्रेंस पेट्रोल उत्पादक देश यूएई के दुबई में वहां के आयल व्यापार से जुड़े मंत्री की अध्यक्षता में हुई थी जिसमें बहुत देशों ने मांग की कि जीवाश्म ईंधन को फेस आउट (खत्म) करने की शर्त डाली जावे। परंतु अंतिम दिन पेट्रोल उत्पादक देशों के दबाव से जीवाश्म ईंधन को फेस आउट करने की शर्त को ख़त्म करके जीवाश्म ईंधन से दूर रहने की कार्यवाही तेज करने की शर्त डाल दी गई। अजरबेजान भी पेट्रोल उत्पादक देश है, अध्यक्ष उन्ही का है और यहां पर भी वही होगा जो दुबई में हुआ। पेट्रोल उत्पादक देश दबाव डाल कर निर्णय लेंगे और एक बार फिर भेडियों को मन पसंद नाश्ता मिलेगा।
जलवायु संकट ने हमें किस स्थिति लाकर छोड़ दिया है इसके ज्वलंत उदाहरण हाल ही में स्पेन के चीवा में आई बाढ़ है जिसमें 8 घंटे में 500 मिमी पानी गिरा। स्पेन के बहुत बड़े इलाके में तबाही ला दी। और दूसरा उदाहरण है सऊदी अरेबिया के अल जाफ इलाके के रेगिस्तान में बर्फ, पानी और ओले गिरे। औद्योगिक युग चालू होने के बाद से वर्ष 2024 आज तक का सबसे गर्म वर्ष होने जा रहा है।
दो घटनाएं और गौर करने वाली है जो कम से कम भारत के अर्थशास्त्री और जीडीपी प्रेमियों को तो खुश करेंगी। वर्ष 2023 में दुनिया में भारत की ग्रीन हाउस उत्सर्जन की बढ़ोतरी दर सबसे ज्यादा रही, बिना इसे बढ़ाये जीडीपी की दर नहीं बढाई जा सकती। दूसरी अमेरिका में सत्ता परिवर्तन, जो इस जलवायु संकट के दौर में रॉकेट में आग लगाने का काम करेगा। पहली बार जब पूंजीवादी ट्रंप आए तो वह पेरिस एग्रीमेंट से हट गए थे, बाईडेन आए तो जुड़ गए और इस बार भी चुनाव में ट्रंप ने कहा जलवायु परिवर्तन को नकारते हुए समुद्र जल स्तर बढने पर कहा वू द हेल केयर्स अर्थात किसको परवाह है।
कॉप 29 में कोई ठोस कदम उठाये जायेंगे इसकी संम्भावना कम है परन्तु अविकसित और भारत सहित विकासशील देश, विकसित देशों से जलवायु संकट से निपटने के लिए धन की पुरानी मांग दोहराएंगे परन्तु खुद पुराने समझोतों के अनुसार ग्रीन हाउस उत्सर्जन कम करने की बात नहीं करेंगे। विकसित देश खुद जलवायु संकट से नहीं निपट पा रहे है और आपको पैसा देंगे इसे भूल जाना चाहिए। क्या इतनी बड़ी त्रासदी झेल चुका स्पेन खुद अपने नुकसान की भरपाई करेगा या आपको धन देगा? कॉप 29 में पैसा मांगने वाले सभी देश बड़े बड़े आश्वासनों के साथ लौट जायेंगे और ब्राजील में होने वाली कॉप 30 तक भूल जायेंगे। इस बीच विश्व जलवायु संकट की नई नई त्रासदियां झेलेगा। हमें नहीं भूलना चाहिए की मानसून पर आधारित 145 करोड़ की जनसंख्या वाला हमारा देश जलवायु संकट के मामले में सबसे ज्यादा असुरक्षित है और हमें ग्रीन नेता चाहिए जो विकास के पीछे न भागें और जलवायु संकट को समझें।