कम लागत में बम्फर कमाई का जरिया बनी कटहल की खेती,देखे स्टेप बाय स्टेप
कम लागत में बम्फर कमाई का जरिया बनी कटहल की खेती
कम लागत में बम्फर कमाई का जरिया बनी कटहल की खेती,देखे स्टेप बाय स्टेप आइये आज हम आपको कटहल की खेती के बारे में आपको बताते है तो बने रहिये अंत तक-
कम लागत में बम्फर कमाई का जरिया बनी कटहल की खेती,देखे स्टेप बाय स्टेप
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कटहल गर्म जलवायु में उगाया जाने वाला फल है.इसकी उत्पत्ति मूल रूप से भारत में हुई थी.यह पेड़ पर उगने वाला सबसे बड़ा फल है.इसका स्वाद और बनावट काफी खास होता है. कृषि वैज्ञानिक प्रोफेसर सिंह बताते हैं कि कटहल में मधुमेह को रोकने की क्षमता होती है.बहुत तेजी से लोग मधुमेह से बचाव के लिए कटहल उत्पादों का इस्तेमाल कर रहे हैं.आने वाले समय में कटहल की मांग कई गुना बढ़ने वाली है,ऐसा हम कह सकते हैं.इसलिए मानसून के मौसम में जरूर कटहल का पौधा लगाएं. कटहल 25-35 डिग्री सेल्सियस (77-95 डिग्री फारेनहाइट) के तापमान में अच्छा फलता है. इसे साल में 1500-2500 मिमी बारिश की जरूरत होती है.इसे तटीय क्षेत्रों, मैदानों और पहाड़ी क्षेत्रों सहित विविध कृषि-जलवायु क्षेत्रों में उगाया जा सकता है.
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भारत में कटहल का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य केरल है. इसके बाद कर्नाटक, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल आते हैं. इन राज्यों में जलवायु की स्थिति कटहल की खेती के लिए अनुकूल है. कटहल के पेड़ों को ऐसी मिट्टी की आवश्यकता होती है जिसमें पानी की अच्छी निकासी हो. आमतौर पर इसकी खेती मानसून के मौसम में की जाती है. इसके पेड़ों को नियमित रूप से पानी देने की जरूरत होती है, खासकर गर्मियों के दौरान.
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कटहल का पेड़ बीज से उगाया जाता है, इसलिए इसकी जैव विविधता प्रचुर मात्रा में होती है. अभी तक कटहल की कोई मानक प्रजाति विकसित नहीं की गई है. कई अनुसंधान केंद्रों ने कटहल की उन्नत किस्मों को विकसित किया है. खाजा, स्वर्ण मंजरी, स्वर्ण पूर्ति (सब्जी के लिए), एनजे-1, एनजे-2, एनजे-15 और एनजे-3, मट्टमवक्का कटहल की किस्में हैं.
किस्म
खाजा – इस किस्म के फल जल्दी पक जाते हैं, यह ताजे पके फलों के लिए उपयुक्त किस्म है.
स्वर्ण मंजरी – यह एक बेहतरीन किस्म है जो छोटे पेड़ पर बड़ी संख्या में बड़े फल देती है. यह किस्म फरवरी के पहले हफ्ते में फल देती है. इन फलों को छोटा होने पर ही बेचा जा सकता है. इससे अच्छी आमदनी होती है.
स्वर्ण पूर्ति – यह सब्जी के लिए उपयुक्त किस्म है. इसका फल छोटा (3-4 किलो) और गहरे हरे रंग का होता है. इसमें रेशे कम, बीज छोटे और छिलका पतला होता है. इसका बीच का भाग नरम होता है. इस किस्म में फल देर से पकता है. इसलिए इसे लंबे समय तक सब्जी के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है.