बर्थ एनिवर्सरी: लता मंगेशकर को दिया जा रहा था स्लो पॉइजन..दीदी के कुछ अनसुने किस्से पढ़िए…

नई दिल्ली 28 सितंबर 2024 लता मंगेशकर एक ऐसा नाम हैं, जो सदियों के लिए अमर हो चुका है। उनकी आवाज पीढ़ियों तक संगीत प्रेमियों को सुकून देती रहेगी। लता मंगेशकर जैसा ना कोई था और ना ही कोई होगा। आज ‘स्वर कोकिला’ कही जाने वाली लता मंगेशकर की बर्थ एनिवर्सरी है। इस अवसर पर उनके प्रशंसक आज के दिन उन्हें याद कर रहे हैं। आइए इस अवसर पर हम उनकी जिंदगी से जुड़े कुछ किस्से जानते हैं।

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टीचर की बात सुनकर आया गुस्सा, छोड़ दिया स्कूल ये बात गलत थी कि मैं कभी स्कूल नहीं गईं। मैं एक बार स्कूल गई थी। घर के नजदीक एक मराठी मीडियम का स्कूल था जहां मेरी फुफेरी बहन बसंती पढ़ती थी। एक दिन मैं उसके साथ स्कूल गई तो टीचर ने पूछा- तुम कौन हो? मैंने जवाब दिया- मैं दीनानाथ मंगेशकर की बेटी हूं। ये बात सुनकर वो बोले कि वो तो बड़े महान गायक हैं। तुम्हें कुछ गाना आता है?

मैंने उन्हें गाना सुनाया जिसके बाद उन्होंने मुझे स्कूल में दाखिला दे दिया। मैं स्कूल के पहले दिन अपनी छोटी बहन आशा को लेकर गई, जो केवल दस महीने की थी। टीचर ने कहा कि स्कूल में इतने छोटे बच्चों को लाने की इजाजत नहीं। यह बात सुनकर मुझे गुस्सा आ गया और मैं क्लास बीच में छोड़कर घर आ गई।’

 

13 साल की उम्र में घर चलाने के लिए फिल्मों में आईं ‘ये 1942 की बात है। उस समय मेरे पिता दीनानाथ मंगेशकर का निधन हो गया था। 13 साल की उम्र में पूरे परिवार की जिम्मेदारी मेरे कंधों पर आ गई थी। ऐसे में न चाहते हुए भी मुझे फिल्मों में काम करना पड़ा। घर में मां के अलावा चार भाई-बहनों की परवरिश एक चुनौती थी, जिसके लिए फिल्मों में काम करने का रास्ता ही मुझे ठीक लगा। मास्टर विनायक ने मुझे अपनी पहली फिल्म मंगलागौर में अभिनेत्री की छोटी बहन का रोल दिया।

शूटिंग के दौरान मास्टर विनायक का स्टूडियो के साथ झगड़ा हो गया और उन्होंने फिल्म छोड़ दी। इस फिल्म को फिर डायरेक्टर आर.एस. जुन्नारदेव ने पूरा किया था। 1942 से 1947 तक मैंने पांच फिल्मों में काम किया। इनमें माझे झोल (1943), गजाभाऊ (1944), बड़ी मां (1945), जीवन यात्रा (1946), सुभद्रा (1946) और मंदिर (1948) शामिल थीं।’

 

जब जवाहर लाल नेहरु बोले-इस लड़की ने रुला दिया ‘1962 में चीन के आक्रमण के दौरान पं. प्रदीप (कवि प्रदीप) ने देशभक्ति गीत ‘ए मेरे वतन के लोगो’ लिखा। उन्होंने मुझसे गुजारिश की थी कि मैं 26 जनवरी, 1963 को गणतंत्र दिवस के मौके पर इस गीत को गाऊं। जब मैंने ये गाना वहां गाया तो जवाहरलाल नेहरु अपने आंसू रोक नहीं पाए।

गाने के बाद मैं स्टेज के पीछे कॉफी पी रही थी तभी निर्देशक महबूब खान ने मुझसे आकर कहा कि तुम्हें पंडितजी बुला रहे हैं।

नेहरू के सामने उन्होंने ले जाकर कहा, ‘ये रही हमारी लता। आपको कैसा लगा इसका गाना?’

नेहरू ने कहा,

बहुत अच्छा। इस लड़की ने मेरी आंखों में पानी ला दिया।

इतना कहकर उन्होंने मुझे गले लगा लिया।

तीन महीने तक बिस्तर पर थीं गायिका
पद्मा ने लिखा है, “स्लो पॉइजन वाली घटना ने लता जी को बहुत कमजोर कर दिया था। वह लगभग 3 महीने तक बिस्तर पर थीं। उनकी आंतों में दर्द के कारण उन्हें बर्फ के टुकड़ों के साथ ठंडा सूप लेने के लिए कहा गया था।”

सतर्क हो गए थे लता मंगेशकर के करीबी
पद्मा ने किताब में आगे लिखा, “बॉलीवुड गीतकार मजरूह सुल्तानपुरी रोजाना शाम 6 बजे लता जी से मिलने उनके घर जाते थे। मजरूह पहले खाना चखते थे और फिर लता को खाने की इजाजत देते थे। वह लता को खुश रखने के लिए कविताएं और कहानियां सुनाया करते थे।”

बता दें कि लता मंगेशकर ने लंदन की रहने वाली फिल्म लेखिका नसरीन मुन्नी कबीर को दिए एक इंटरव्यू में भी इस घटना का खुलासा किया था। इसके बाद नसरी ने लता की छोटी बहन उषा मंगेशकर से भी इसकी पुष्टि की थी।

 

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