कौन है शिक्षकों का असली संगठन ? शिक्षा विभाग की शिक्षक संगठनों के साथ बैठक के बाद छिड़ी रार, चुनिंदा 4-5 संगठनों को ही शिक्षा विभाग के फोन का क्या है संकेत?

रायपुर 30 अगस्त 2024। शिक्षकों का हितैषी कौन है?  कौन सा शिक्षकों का असली संगठन है और कौन  नकली ? सोशल मीडिया में इसे लेकर आये दिन वाद विवाद होता रहता है। हाल के दिनों में ये विवाद उस वक्त और बढ़ गया, जब सरकार की तरफ से बुलाये गये शिक्षक संगठन की बैठक में कुछ ही संगठनों को आमंत्रित किया गया और बिन बुलाये जो संगठन बैठक में पहुंचे, उनके प्रांताध्यक्षों को बड़े बे आबरू के साथ बैठक से बाहर कर दिया गया। दावा है कि बाहर किये गये शिक्षक संगठन के प्रांताध्यक्षों ने उस दौरान अफसरों से तीखी बहस भी की, लेकिन DPI के अफसरों ने दो टूक कह दिया कि सरकार जिन संगठनों को महत्व देती है, उन्हें फोन कर बुलाया गया है, लिहाजा जो संगठन बिन बुलाये आये हैं, वो बैठक से चले जायें।

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DPI की बैठक के बाद शिक्षा सचिव के साथ हुई बैठक में भी यही स्थिति रही। 12 संगठन के प्रतिनिधियों को छोड़कर किसी को भी अंदर जाने नहीं दिया गया। वहां भी अधिकारियों ने साफ कह दिया कि शिक्षकों के मुद्दों को लेकर जिन संगठनों का रिकॉर्ड सरकार के पास है, उन्हें ही आमंत्रित किया गया है, बाकी संगठनों के बारे में विभाग के पास कोई जानकारी नहीं है, इसलिए उन्हें बैठक में शामिल नहीं किया जायेगा।

अफसरों के दो टूक सुनकर कई शिक्षक संगठनों का पारा चढ़ गया। लिहाजा सोशल मीडिया में शिक्षक संगठनों ने भड़ास निकालनी शुरू कर दी। प्रधान पाठक संघ के प्रांताध्यक्ष जाकेश साहू ने तो बैठक में मौजूद संगठनों की मनमानी और अफसरों के खिलाफ प्रधानमंत्री, गृहमंत्री और मुख्यमंत्री तक को चिट्ठी लिख दी। जवाब में शालेय शिक्षक संघ के प्रदेश प्रवक्ता जितेंद्र शर्मा ने व्हाट्सएप ग्रुप में ये लिखा कि रजिस्ट्रेशन कराकर आये दिन शिक्षक संगठन बनाने और स्वयंभू होकर प्रांताध्यक्षों की वजह से ही शिक्षक संगठनों की गरिमा गिरी है, लिहाजा बैठक में जो कुछ हुआ, उसके लिए वो खुद जिम्मेदार हैं।

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यही नहीं कई शिक्षकों की तरफ आये दिन तैयार हो रहे शिक्षक संगठनों को लेकर व्हाट्सएप ग्रुपों में खूब टिका टिप्पणी की। कई संगठनों ने नये-नये शिक्षक संगठनों के औचित्य पर ही सवाल खड़ा किया। एक शिक्षक ने लिखा कि कुछ ऐसे भी संगठन हैं, जिन्होने आज तक कोई ना तो आंदोलन किया और ना ही शिक्षकों की मांगों को उठाया, सोशल मीडिया पर नेता बनकर रह गये।

 

इन संगठनों को बुलाया गया था

बैठक में कर्मचारी अधिकारी फेडरेशन के प्रांतीय संयोजक कमल वर्मा, सचिव राजेश चटर्जी, छत्तीसगढ़ सहायक शिक्षक समग्र शिक्षक फेडरेशन के प्रांतीय अध्यक्ष मनीष मिश्रा, शिक्षक संघ के ओंकार सिंह ठाकुर शालेय शिक्षक संघ के प्रदेश अध्यक्ष वीरेंद्र दुबे, संयुक्त शिक्षक संघ के प्रांतीय अध्यक्ष केदार जैन, टीचर्स एसोसिएशन के प्रांतीय अध्यक्ष संजय शर्मा, नवीन शिक्षक संघ के प्रांतीय अध्यक्ष विकास राजपूत, कर्मचारी अधिकारी संयुक्त मोर्चा के प्रांतीय संयोजक अनिल शुक्ला, राजनारायण द्विवेदी, व्याख्याता संघ से राजेश शर्मा  और तृतीय वर्ग कर्मचारी संघ से चंद्रशेकर तिवारी सहित 12 संगठन के प्रांतीय प्रमुख को ही बुलाया गया था। अगर उनमें से सिर्फ शिक्षकों के मुद्दे पर सक्रिय संगठन की बात करें तो छत्तीसगढ़ सहायक शिक्षक समग्र शिक्षक फेडरेशन के प्रांतीय अध्यक्ष मनीष मिश्रा, शालेय शिक्षक संघ के प्रदेश अध्यक्ष वीरेंद्र दुबे, संयुक्त शिक्षक संघ के प्रांतीय अध्यक्ष केदार जैन, टीचर्स एसोसिएशन के प्रांतीय अध्यक्ष संजय शर्मा, नवीन शिक्षक संघ के प्रांतीय अध्यक्ष विकास राजपूत ही थे।

शिक्षा विभाग भी 4-5 संगठनों को ही मानते हैं शिक्षकों का संगठन

हाल के दिनों में शिक्षक संगठनों के साथ दो बैठकें विभाग की हुई। पहली बैठक व्याख्याता प्रमोशन को लेकर हुई थी, उस बैठक में भी पहले चुनिंदा 5-6 संगठनों को ही फोन कर बुलाया गया था, लेकिन जब बैठक में आमंत्रित नहीं किये जाने को लेकर बाकी बचे प्रांताध्यक्षों ने ऐतराज जताया, तो अन्य संगठनों को भी शामिल कर लिया गया। उस बैठक में भी 40 से ज्यादा संगठन पहुंचे थे। लेकिन दूसरी बैठक में अफसरों ने ठान लिया था, जिन शिक्षक संगठनों का वजूद है या जिन शिक्षक संगठनों ने पूर्व में आंदोलन किया है या उनका रिकार्ड शिक्षा विभाग के पास है, उन्हें ही बैठक में शामिल किया जायेगा, लिहाजा बैठक में तनातनी की स्थिति बन गयी।

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शिक्षक संगठन से आम शिक्षक भी कंफ्यूज

छत्तीसगढ़ में सबसे ज्यादा अगर किसी शासकीय वर्ग का संगठन है, तो वो शिक्षकों का है। जानकार बताते हैं कि 45 से 50 शिक्षकों का निबंधन अभी छत्तीसगढ़ में है। शिक्षकों के इतने सारे संगठन होने की वजह से शिक्षकों में भी असमंजस की स्थिति रहती है कि आखिर उनका हितैषी कौन है? छत्तीसगढ़ में शिक्षक संगठनों के साथ विडंबना ये है कि यहां संगठन मुद्दों के आधार पर तैयार होते हैं। शिक्षकों से जुड़े मुद्दों पर एक संगठन पक्ष में होता है, तो दूसरा उसके खिलाफ। वर्गवाद में बंटे संगठन कभी भी अधिकांश वक्त एक दूसरे की टांग खिंचाई ही करते हैं। किसी मुद्दे पर सभी शिक्षक संगठन एक होते भी है, तो वो अलग-अलग महासंघ या मोर्चा बना लेते हैं। ऐसे में शिक्षकों में गफलत बन जाती है, कि वो आखिर किसके साथ जायें और किसके साथ ना जायें। सीधी भर्ती वालों की समस्याओं में एलबी संवर्ग साथ नहीं देता। एलबी संवर्ग के मुद्दों पर नियमित शिक्षक साथ नहीं देते। वर्ग एक के मुद्दे पर वर्ग दो साथ नहीं देता, वर्ग दो के मुद्दे पर वर्ग तीन साथ नहीं आता। ये मुद्दा कर्मचारी अधिकारी फेडरेशन की पिछले दिनों हुई बैठक में भी सामने आया था, जिसमें सभी ने इस बात को लेकर चिंता जतायी थी, कि शिक्षकों के इतने सारे संगठन अपने आप में ही परेशानी है, जो कभी किसी मुद्दे पर एकमत नहीं होते। ऐसे में शिक्षकों की परेशानी दूर करने के लिए सबसे पहले शिक्षकों को एकजुट होना होगा। लेकिन, लगता नहीं कि निकट भविष्य में ऐसा कभी संभव हो पायेगा।

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