शिक्षक संगठन क्यों कर रहे हैं छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश के एक होने की मांग, दोनो राज्यों में एक ही पार्टी की सरकार होने के बाऊजूद कर्मचारियों के लिए अलग अलग नीति निर्धारण…

रायपुर 10 जुलाई 2024। अक्सर यह देखने को मिलता है कि बड़े राज्यों से पृथक करके छोटे छोटे राज्य बनाने की मांग की जाती है। छोटे राज्य बनने से राज्य का बेहतर विकास होता है। संबंधित राज्यों को सीधे दिल्ली से फंड मिलता है।विगत सन 2000 में केंद्र की तत्कालीन अटल बिहारी बाजपेई सरकार ने एक साथ तीन राज्यों की सौगात दी जिसमे उत्तराखंड, झारखंड और छत्तीसगढ़ शामिल है।
मध्यप्रदेश से अलग होने के बाद छत्तीसगढ़ में चहुमुखी विकास भी हुआ है। लेकिन इन सबके बाद भी राज्य के शिक्षक संगठन “छत्तीसगढ़ प्रधान पाठक मंच” ने मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के पुनः विलय की मांग कर दी है जो एक आश्चर्य का विषय है।

मंच के प्रदेशाध्यक्ष जाकेश साहू ने इसका एक कारण बताते हुए कहा कि मध्यप्रदेश से पृथक होने से प्रदेश के एक लाख अस्सी हजार शिक्षक एलबी संवर्ग (सहायक शिक्षक/शिक्षक/व्याख्याता एलबी) को बड़ा भयानक आर्थिक नुकसान उठाना पड़ रहा है।
1998 में अविभाजित मध्यप्रदेश (छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश) में हजारों शिक्षाकर्मियों की नियुक्ति एक साथ की गई है। सन 2000 में राज्य का बंटवारा हो गया। लेकिन आज मध्यप्रदेश के शिक्षको के लिए उनकी प्रथम नियुक्ति तिथि से सेवा की गणना करते हुए उन्हें क्रमोन्नति वेतनमान दिया जा रहा है। जिसके कारण वहां सहायक शिक्षक, शिक्षक एवं व्याख्याता एलबी के वेतनमान लगभग समतुल्य है।

विडंबना देखिए कि 1998 में अविभाजित मध्यप्रदेश में नियुक्त छत्तीसगढ़ प्रदेश के हजारों हजार शिक्षको के लिए आज प्रथम सेवा की गणना नहीं किया जा रहा है। जिसके कारण यहां के शिक्षको को हर माह हजारों हजार रुपए का जबर्दस्त आर्थिक नुकसान हो रहा है।
शिक्षक संघ का कहना है कि यदि आज छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश एक में होता तो उन्हे ये घाटा सहना नहीं पड़ता। इसलिए संगठन ने ये अजीबोगरीब मांग केंद्र सरकार से की है।

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ये बड़ी ही विडंबना कही जाएगी कि मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ दोनो ही राज्यों में भाजपा अर्थात एक ही राजनीतिक दल की सरकार होने के बाद भी छत्तीसगढ़ के शिक्षको को आज बड़ा नुकसान झेलना पड़ रहा है जबकि मध्यप्रदेश में यह लाभ दिया जा रहा है।

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