पॉलिटिकलहेडलाइन

आरक्षण पर सस्पेंश : राज्यपाल ने फिर कहा, 10 सवाल के जवाब के बाद करेंगी विचार… जानिये कौन-कौन से सवाल हैं राज्यपाल के

दुर्ग 24 दिसंबर 2022। आरक्षण बिल पर हस्ताक्षर करने को लेकर अभी भी राज्यपाल अपने रुख पर कायम है। राज्यपाल अनुसुईया उइके ने शनिवार को दुर्ग प्रवास के दौरान एक बार फिर आरक्षण संशोधन विधेयक पर खुलकर बोलीं। उन्हाेंने कहा कि वह एक संवैधानिक पद है काबिज हैं, इसलिए नियम, प्रक्रिया और कानून के प्राविधानों के अनुसार ही जो होना है, होगा।

आपको बता दें कि आरक्षण बिल को लेकर कानूनविदों से मशविरे के बाद राज्यपाल ने 10 बिंदुओं पर राज्य सरकार से जवाब मांगा था, लेकिन राज्य सरकार की तरफ से जवाब नहीं दिये जाने के बाद बिल अटक गया है। पिछले दिनों जब आदिवासी विधायक राज्यपाल से मिलने पहुंचे थे, तो राज्यपाल ने उसी 10 सवालों की लिस्ट उन विधायकों को भी सौंप दी थी। दुर्ग में मीडिया में बता करते हुए उन्होंने राज्य सरकार को भेजे गए 10 प्रश्नों के जवाब के बाद विधेयक पर विचार करने की बात दोहराई।

इसके पहले भी राज्यपाल ने दिल्ली से लौटने के बाद एयरपोर्ट पर यह बात की थी। इसके बार प्रदेश के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा था वह जवाब भिजवा देंगे। बतादें कि अभी तक सरकार की ओर से जवाब नहीं मिलें हैं।बीआइटी कालेज में 1997 बैच का सिलवर जुबली कार्यक्रम बतौर मुख्य अतिथि शामिल हुईं । विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए राज्यपाल उइके ने कहा कि वह कैसे राज्यपाल बनीं उन्हें जानकारी नहीं हुई। उनके पास अचानक प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का फोन आया था कि राज्यपाल बनने जा रही हैं।

राज्यपाल ने सरकार से ये जानकारियां मांगी हैं

  • क्या इस विधेयक को पारित करने से पहले अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति का कोई डाटा जुटाया गया था? अगर जुटाया गया था तो उसका विवरण।
  • 1992 में आये इंद्रा साहनी बनाम भारत संघ मामले में उच्चतम न्यायालय ने आरक्षित वर्गों के लिए आरक्षण 50% से अधिक करने के लिए विशेष एवं बाध्यकारी परिस्थितियों की शर्त लगाई थी। उस विशेष और बाध्यकारी परिस्थितियों से संबंधित विवरण क्या है।
  • उच्च न्यायालय में चल रहे मामले में सरकार ने आठ सारणी दी थी। उनको देखने के बाद न्यायालय का कहना था, ऐसा कोई विशेष प्रकरण निर्मित नहीं किया गया है जिससे आरक्षण की सीमा को 50% से अधिक किया जाए। ऐसे में अब राज्य के सामने ऐसी क्या परिस्थिति पैदा हो गई जिससे आरक्षण की सीमा 50% से अधिक की जा रही है।
  • सरकार यह भी बताये कि प्रदेश के अनुसूचित जाति और जनजाति के लोग किस प्रकार से समाज के सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़ों की श्रेणी में आते हैं।
  • आरक्षण पर चर्चा के दौरान मंत्रिमंडल के सामने तमिलनाडु, कर्नाटक और महाराष्ट्र में 50% से अधिक आरक्षण का उदाहरण रखा गया था। उन तीनों राज्यों ने तो आरक्षण बढ़ाने से पहले आयोग का गठन कर उसका परीक्षण कराया था। छत्तीसगढ़ ने भी ऐसी किसी कमेटी अथवा आयोग का गठन किया हो तो उसकी रिपोर्ट पेश करे।
  • क्वांटिफायबल डाटा आयोग की रिपोर्ट भी मांगी है।
  • विधेयक के लिए विधि विभाग का सरकार को मिली सलाह की जानकारी मांगी गई है। राजभवन में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग को आरक्षण देने के लिए बने कानून में सामान्य वर्ग के गरीबों के आरक्षण की व्यवस्था पर भी सवाल उठाए हैं। तर्क है कि उसके लिए अलग विधेयक पारित किया जाना चाहिए था।
  • अनुसूचित जाति और जनजाति के व्यक्ति सरकारी सेवाओं में चयनित क्यों नहीं हो पा रहे हैं।
  • सरकार ने आरक्षण का आधार अनुसूचित जाति और जनजाति के दावों को बताया है। वहीं संविधान का अनुच्छेद 335 कहता है कि सरकारी सेवाओं में नियुक्तियां करते समय अनुसूचित जाति और जनजाति समाज के दावों का प्रशासन की दक्षता बनाये रखने की संगति के अनुसार ध्यान रखा जाएगा। सरकार यह बताये कि इतना आरक्षण लागू करने से प्रशासन की दक्षता पर क्या असर पड़ेगा इसका कहीं कोई सर्वे कराया गया है?

Back to top button