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NW न्यूज 24 स्पेशल : CM भूपेश की पहल बन रही ग्रामीण अर्थव्यस्था की संजीवनी… गोबर से बने पेंट से महिलाएं हो रही आत्मनिर्भर… 15 दिनों के अंदर ही 60 हजार तक का बिक रहा पेंट

रायपुर 27 फरवरी 2023। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की दूरदर्शी सोच ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लिए संजीवनी बन गयी है। नरवा, गरुवा, घुरवा, बारी का मकसद अब मुक्कमल होता दिख रहा है। गाय, गोबर, गौमूत्र जो हमारी परंपरा से मिटती जा रही थी, उसने अर्थव्यवस्था को मजबूत करने की ऐसी राह दिखायी कि ग्रामीणों ने अब इसे व्यावसायिक तौर पर इस्तेमार करना शुरू कर दिया है। गौमूत्र से पेस्टीसाइट और गोबर से बिजली, दीया, सौदर्य सामिग्री, पेंट तैयार होने लगे हैं। गोबर से बने पेंट ने तो इस कदर करिश्मा कर दिया है कि बाजार में इसकी डिमांड बड़ी तेजी से बढ़ने लगी है। गोबर से पेंट बनाने के लिए महिलाओं ने विधिवत प्रशिक्षण भी प्राप्त किया. पेंट बनाने की शुरुआत अप्रैल 2022 से हुई और अब तक तीन हजार लीटर पेंट बनाकर समूह की महिलाएं बेच चुकी हैं. गोबर से निर्मित पेंट आधा लीटर, एक, चार, और दस लीटर के डिब्बों में उपलब्ध है।

पेंट से हो रहा है मुनाफा

एक उत्पादन इकाई से ही 15 दिनों के अंदर ही 60 हजार तक के गोबर पेंट का विक्रय किया गया। बाजार में मिलने वाले अधिकतर पेंट में ऐसे पदार्थ और हैवी मेटल्स मिले होते हैं, जो हमारे स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाते हैं. वहीं गोबर से निर्मित पेंट प्राकृतिक पदार्थों से मिलकर बनता है इसलिए इसे प्राकृतिक पेंट भी कहते हैं. केमिकल युक्त पेंट की कीमत 350 रुपए प्रति लीटर से शुरू होती है, लेकिन गोबर से निर्मित प्राकृतिक पेंट की कीमत 150 रुपए से शुरू है. गोबर से बने होने के कारण इससे बहुत से फायदे भी हैं, जैसे यह पेंट एंटीबैक्टीरियल, एंटीफंगल है. साथ ही घर के दीवारों को गर्मी में गर्म होने से भी बचाती है और तापमान नियंत्रित करती है.  

महिलाएं ले रही है पेंट निर्माण का प्रशिक्षण

मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल की पहल पर प्रदेश सरकार की महत्वाकांक्षी नरवा, गरुवा, घुरवा और बाड़ी व गोधन न्याय योजना के तहत गौठानों में गोबर से वर्मी कम्पोस्ट के साथ ही अन्य सामग्रियों का निर्माण महिला स्व सहायता समूहों के द्वारा किया जा रहा हैं। गौमूत्र से फसल कीटनाशक और जीवामृत तैयार किये जा रहे हैं। महात्मा गांधी ग्रामीण औद्योगिक पार्क योजना (रीपा) आत्मनिर्भरता और सफलता की नई इबारत लिख रही है। इन सबके साथ अब गोबर से प्राकृतिक पेंट बनाने का काम भी पूरे प्रदेश में शुरू हो चुका है महिलाएं प्रशिक्षण लेकर स्व सहायता समूहों के माध्यम से पेंट का निर्माण कर रही हैं।

ऐसे तैयार होता है गोबर से प्राकृतिक पेंट

जरवाय गौठान में लगी मशीन से 8 घंटे में एक हजार लीटर पेंट तैयार किया जा सकता है। यह क्वालिटी में ब्रांडेड कंपनियों के पेंट जैसा ही है। इसका मूल्य भी अन्य पेंट के मुकाबले कम रखा गया है। पेंट बनाने के लिए ज्यादा मात्रा में गोबर की आवश्यकता नहीं है। 50 किलो गोबर से 100 लीटर पेंट तैयार हो रहा है।गोबर को पहले मशीन में पानी के साथ अच्छे से मिलाया जाता है, फिर इस मिले हुए घोल से गोबर के फाइबर और तरल को डी-वाटरिंग मशीन के मदद से अलग किया जाता है. इस तरल को 100 डिग्री सेल्सियस में गरम कर के उसका अर्क बनता है, जिसे पेंट के बेस की तरह इस्तेमाल किया जाता है. इसके बाद इसे प्रोसेस कर पेंट तैयार होता है. 100 किलो गोबर से लगभग 10 किलो सूखा सीएमसी तैयार होता है. कुल निर्मित पेंट में 30 फीसदी मात्रा गोबर की होती है।

शासकीय भवनों में इस्तेमाल करने के निर्देश

मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल के निर्देशानुसार गोबर से प्राकृतिक पेंट के निर्माण के लिए राज्य में 42 उत्पादन इकाइयों को स्वीकृती दी गयी है। इनमें से 13 उत्पादन इकाइयों की की स्थापना हो चुकी है जबकि 21 जिलों में 29 इकाइयां  स्थापना के लिए प्रक्रियाधीन हैं। शासन का निर्देश है कि सभी शासकीय भवनों में अनिवार्य रूप से गोबर से निर्मित प्राकृतिक पेंट का इस्तेमाल हो।

15 दिनों में 60 हजार तक के गोबर पेंट का विक्रय

कोरिया जिले के ग्राम मझगंवा में महात्मा गांधी ग्रामीण औद्योगिक पार्क योजना के तहत यहां गोबर से प्राकृतिक पेंट बनाने की इकाई  शुरू हो गयी है। यहां प्रगति स्व सहायता समूह की महिलाओं को प्रशिक्षित कर पेंट बनाने का कार्य शुरू किया गया है। 15 दिनों के अंदर ही समूह ने 800 लीटर पेंट बनाया है जिसमें से 500 लीटर पेंट का विक्रय किया जा चुका है। पेंट की कीमत लगभग 60 हजार रुपये है। गोबर से बने प्राकृतिक पेंट को सी-मार्ट के माध्यम से खुले बाजार में बेचने के लिए रखा जा रहा है।

पर्यावरण के अनुकूल है प्राकृतिक पेंट

गोबर से निर्मित प्राकृतिक पेंट में एंटी बैक्टीरियल, एंटी फंगल, पर्यावरण अनुकूल, प्राकृतिक ऊष्मा रोधक, किफायती, भारी धातु मुक्त, अविषाक्त एवं गंध रहित गुण पाये जाते हैं। गुणों को देखते हुये छत्तीसगढ़ शासन द्वारा समस्त शासकीय भवनों की रंगाई हेतु गोबर से प्रकृतिक पेंट के उपयोग के निर्देश दिये गए हैं।

पेंट निर्माण से ग्रामीण महिलाओं को हो रहा लाभ

गोबर से पेंट बनाने की प्रक्रिया में पहले गोबर और पानी के मिश्रण को मशीन में डालकर अच्छी तरह से मिलाया जाता है और फिर बारीक जाली से छानकर अघुलनशील पदार्थ हटा लिया जाता है। फिर कुछ रसायनों का उपयोग करके उसे ब्लीच किया जाता है तथा स्टीम की प्रक्रिया से गुजारा जाता है। उसके बाद सी.एम.एस. नामक पदार्थ प्राप्त होता है। इससे डिस्टेम्पर और इमल्सन के रूप में उत्पाद बनाए जा रहे हैं। महात्मा गांधी ग्रामीण औद्योगिक पार्क के अंतर्गत महिला स्व सहायता समूहों द्वारा प्राकृतिक पेंट का उत्पादन उन्हें आर्थिक रूप से मजबूत करने का काम कर रहा है, प्राकृतिक पेंट की मांग को देखते हुए इसका उत्पादन भी दिन ब दिन बढ़ाया जा रहा है।

खुबसूरत भी, स्वास्थ्यवर्धक भी

छत्तीसगढ़ में पशुधन के संरक्षण के लिए 9000 से अधिक गांवों में गौठानों की स्थापना की गई है. जिसमें से राज्य के 75 गौठानों में गोबर से प्राकृतिक पेंट और पुट्टी का निर्माण काफी तेजी से किया जा रहा है. गोबर से प्राकृतिक पेंट बनाने में मुख्य रूप से कार्बोक्सी मिथाइल सेल्यूलोज (सीएमसी) का उपयोग होता है. राजभानी रायपुर के समीप हीरापुर, जरवाय के गौठान में महिला समुहों द्वारा गोबर से प्राकृतिक पेंट और पुट्टी का निर्माण किया जा रहा है.इसे बनाने के लिए गाय के गोबर को डी वाटर कर्लिन मशीन में डाला जाता है और पानी मिलाकर घोल तैयार कर उसमें कई अन्य चीजें मिलाई जाती है. फिर उसे हाई स्पीड डिस्पेंसर मशीन में मिक्स किया जाता है. इसके बाद गोबर से बने पेंट और पुट्टी तैयार हो जाता है।

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