पॉलिटिकलहेडलाइन

CG POLITICS : कांग्रेस के गढ़ में क्या BJP कर पायेगी सेंधमारी,छत्तीसगढ़ की इन 9 सीटों पर कभी भी नही खिल सका भाजपा का कमल…!

रायपुर 27 अक्टूबर 2023। छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है। सत्ताधारी कांग्रेस और विपक्ष में बैठी बीजेपी के साथ ही दूसरी पार्टियों ने अपने उम्मीदवारों को चुनावी रण में उतार दिया है। छत्तीसगढ़ के चुनावी परिणाम पर गौर करे तो प्रदेश की 9 सीटे ऐसी है, जहां प्रदेश में 15 साल राज करने के बाद भी बीजेपी जीत दर्ज नही कर सकी। प्रदेश की इन 9 सीटों में अधिकांश जहां कांग्रेस का गढ़ रहा है, तो वहीं कुछ सीटों पर क्षेत्रीय पार्टी जनता कांग्रेस जे के प्रत्याशियों ने जरूर जीत दर्ज की, लेकिन बीजेपी को हमेशा ही इन 9 सीटों पर हार का सामना करना पड़ा।

मध्यप्रदेश से अलग होकर साल 2000 में छत्तीसगढ़ के गठन के बाद प्रदेश में सबसे पहले कांग्रेस और फिर बीजेपी ने 15 वर्षो तक शासन किया। लेकिन राज्य गठन के बाद साल 2003 से 2018 तक हुए चार विधानसभा चुनाव में प्रदेश की 9 सीटों पर कभी भी बीजेपी का कमल नही खिल सका। कांग्रेस का गढ़ कहे जाने वाले इन सीटों में कोंटा, खरसिया, कोरबा, कोटा, जैजैपुर, सीतापुर, पाली-तानाखार, मरवाही और मोहला-मानपुर विधानसभा शामिल है। छत्तीसगढ़ गठन के बाद से प्रदेश में साल 2003,2008 और 2013 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने कांग्रेस को शिकस्त देकर प्रदेश की सत्ता पर शासन जरूर किया।

लेकिन प्रदेश की इन 9 विधानसभा सीटों पर बीजेपी कभी भी अपना खाता नही खोल सकी। इसी तरह साल 2018 के चुनाव में बीजेपी को बुरी तरह से हार का सामना करना पड़ा,लेकिन इन 9 विधानसभा सीटों में एक बार फिर कांग्रेस ने जहां 7 सीटों पर जीत दर्ज की, तो वहीं 2 सीट पर पूर्व सीएम स्वर्गीय अजीत जोगी की क्षेत्रीय पार्टी जनता कांग्रेस जे की जीत हुई। कुल मिलाकर देखा जाये, तो इन 9 विधानसभा सीटों पर बीजेपी का अपना कमल खिला पाना एक बड़ी चुनौती है।


कांग्रेस का गढ़ कहे जाने वाले इन 9 विधानसभा सीटों पर आईये जानते क्या है सियासी समीकरण……

1.खरसिया विधानसभा……

छत्तीसगगढ़ का खरसिया विधानसभा सीट भी हमेशा से ही कांग्रेस का गढ़ रहा है। इस सीट से मंत्री उमेश पटेल चुनावी मैदान में हैं। खरसिया के राजनीतिक इतिहास पर गौर करे तो यह सीट कांग्रेस के किले के समान है। छत्तीसगढ़ के गठन से काफी पहले से ही इस सीट पर कांग्रेस का कब्जा रहा है। साल 2013 में बस्तर में झीरम घाटी नक्सली हमले में मारे गए उमेश पटेल के पिता नंद कुमार पटेल इस सीट से पांच बार चुने गए थे। मौजूदा विधानसभा चुनाव में खरसिया सीट से भाजपा ने नए चेहरे महेश साहू को प्रत्याशी बनाकर उमेश पटेल के खिलाफ चुनावी मैदान में उतारा है।

2.मोहला-मानपुर विधानसभा….

मोहला-मानपुर सीट को भी कांग्रेस का अभेजद किला कहा जाता है। इस सीट से लगातार कांग्रेस के प्रत्याशी चुनाव जीतते आये है। कांग्रेस ने मौजूदा विधायक इंद्रशाह मंडावी पर एक बार फिर भरोसा जताते हुए अपना प्रत्याशी बनाया है, जबकि भाजपा ने पूर्व विधायक संजीव शाह को चुनावी मैदान में उतारा है। इससे पहले साल 2013 में हुए विधानसभा चुनाव में मोहला-मानपुर विधानसभा सीट से कांग्रेस उम्मीदवार तेज कुंवर गोवर्धन नेताम ने बीजेजी के प्रत्याशी भोजश शाह मंडावी को हराकर जीत हासिल की थी। इसी तरह विधानसभा चुनाव 2008 में मोहला-मानपुर विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस उम्मीदवार शिवराज सिंह उसारे ने बीजेपी प्रत्याशी दरबार सिंह मंडावी को हराकर जीत दर्ज की थी।

3.सीतापुर विधानसभा…..

प्रदेश का सीतापुर विधानसभा सीट को भी कांग्रेस का गढ़ माना जाता है। इस सीट से आदिवासी नेता और सरकार के कद्दावर मंत्री अमरजीत भगत अजेय प्रत्याशी के रूप में लगातार जीत दर्ज कर रहे है। छत्तीसगढ़ गठन के बाद से अमरजीत भगत कभी भी सीतापुर सीट से चुनाव नहीं हारे। बीजेपी ने मौजूदा विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के इस गढ़ से सीआरपीएफ से इस्तीफा देकर पार्टी में शामिल हुए राम कुमार टोप्पो को चुनावी मैदान में उतारा है।

4.कोंटा विधानसभा……

नक्सल प्रभावित बस्तर का कोेंटा विधानसभा कांग्रेस का गढ़ माना जाता है। इस सीट से मौजूदा भूपेश बघेल सरकार में उद्योग मंत्री और पांच बार से विधायक कवासी लखमा अजेय प्रत्याशी रहे है। इस सीट से भाजपा ने इस बार सोयम मुक्का को अपना प्रत्याशी बनाकर दांव लगाया है। बस्तर के इस सीट पर कांग्रेस, भाजपा और भाकपा के बीच त्रिकोणीय मुकाबला होता रहा है। साल 2018 के विधानसभा चुनावों में कवासी लखमा को 31 हजार 933 वोट मिले थे, जबकि भाजपा के धनीराम बारसे को 25 हजार 224 वोट के साथ हार का सामना करना पड़ा था। वहीं भाकपा के मनीष कुंजाम को 24 हजार 529 मत प्राप्त हुए थे।

5.मरवाही विधानसभा….

बिलासपुर संभाग में आने वाला मरवाही और कोटा विधानसभा सीट भी हमेशा से कांग्रेस का गढ़ रहा हैं। वर्ष 2000 में छत्तीसगढ़ के गठन के बाद अजीत जोगी के नेतृत्व में कांग्रेस सरकार का गठन हुआ था। अजीन जोगी 2001 में मरवाही सीट से उपचुनाव जीते थे और बाद में 2003 और 2008 के चुनाव में भी उन्हें सफलता मिली थी। इसके बाद साल 2013 में अजीत जोगी के बेटे अमित जोगी को मरवाही विधानसभा सीट से सफलता मिली थी। इसके बाद साल 2018 में अजीत जोगी ने अपने नवगठित संगठन जेसीसीजे से चुनाव लड़ा और फिर से इस सीट पर अपना कब्जा जमाया। हालांकि 2020 में अजीत जोगी के निधन के बाद यह सीट खाली हो गई और उपचुनाव में कांग्रेस ने दोबारा इस सीट पर कब्जा जमा लिया। लेकिन इन सारे चुनाव में बीजेपी का कमल मरवाही सीट पर नही खिल सका।

6.कोटा विधानसभा……

कोटा विधानसभा की बात करे तो इस सीट पर भी कभी बीजेपी के प्रत्याशी जीत दर्ज नही कर सके। इस सीट से अजीत जोगी की पत्नी रेणु जोगी साल 2006 में कांग्रेस विधायक राजेंद्र प्रसाद शुक्ला के निधन के बाद खाली हुई कोटा सीट से उपचुनाव में जीत दर्ज की थीं। इसके बाद उन्होंने 2008, 2013 में कांग्रेस पार्टी से चुनाव जीती और साल 2018 में जेसीसीजे पार्टी से चुनाव लड़कर लगातार अपनी जीत सुनिश्चित की। इन चुनावी सालों में बीजेपी लगातार कोटा से नए चेहरों प्रणव कुमार मरपच्ची और प्रबल प्रताप सिंह जूदेव को उम्मीदवार बनाया गया जबकि कांग्रेस ने क्रमशः केके ध्रुव और अटल श्रीवास्तव पर दांव लगाया।

7.कोरबा विधानसभा…..

औद्योंगिक नगरी के नाम से मशहूर कोरबा जिला को कांग्रेस का गढ़ कहा जाता है। साल 2008 में परिसीमन के बाद कटघोरा विधानसभा से कटकर कोरबा विधानसभा का गठन हुआ। इस सीट से लगातार तीन बार हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के जयसिंह अग्रवाल ने बीजेपी के प्रत्याशी को हराकर जीत दर्ज की है। कांग्रेस का गढ़ कहे जाने वाले कोरबा विधानसभा सीट से कांग्रेस ने एक बार फिर राजस्व मंत्री जयसिंह अग्रवाल को अपना प्रत्याशी बनाया है। वही बीजेपी ने एक बार फिर इस सीट से प्रत्याशी का चेहरा बदलकर लखनलाल देवांगन पर दांव लगाया है।

8.पाली-तानाखार विधानसभा…..

पाली तानाखार सीट पर भी बीजेपी का कभी खाता नही खुल सका। इस सीट से पूर्व सीएम अजीत जोगी के लिए अपना सीट छोड़ने वाले बीजेपी के रामदयाल उईके को कांग्रेस ने अपना प्रत्याशी बनाया था। तानाखार सीट से कांग्रेस में रहते हुए रामदयाल उईके हमेशा ही रिकार्ड वोटों से जीत दर्ज करते रहे। साल 2018 में उईके ने कांग्रेस पार्टी को छोड़कर दोबारा बीजेपी में प्रवेश कर घर वापसी कर लिया था। लेकिन साल 2018 के चुनाव में उईको को हार का सामना करना पड़ा और कांग्रेस के इस गढ़ से एक बार फिर कांग्रेस प्रत्याशी मोहितराम केरकेट्टा ने जीत दर्ज की थी। मौजूदा वक्त में बीजेपी ने एक बार फिर जहां रामदयाल उईके पर भरोसा जताते हुए अपना प्रत्याशी बनाया है। वहीं कांग्रेस ने अपने इस गढ़ को सुरक्षित रखने के लिए मौजूदा विधायक मोहितराम केरकेट्टा का टिकट काटकर दुलेश्वरी सिदार पर दांव लगाया है।

जैजैपुर विधानसभा….

छत्तीसगढ़ का जैजैपुर विधानसभा सीट को बसपा का गढ़ कहा जाता है। इस सीट पर बीजेपी और कांग्रेस दोनों के लिए जीत दर्ज कर पाना आज भी एक बड़ी चुनौती है। साल 2008 के चुनाव में जैजैपुर विधानसभा अस्तित्व में आया और यहां के पहले विधायक बने कांग्रेस के महंत राम सुंदर दास, लेकिन 2013 में बसपा प्रत्याशी केशव चंद्रा ने जीत दर्ज की और कांग्रेस तीसरे स्थान पर जा पहुंची। साल 2018 के चुनाव में पूरे प्रदेश में कांग्रेस ने कमाल का प्रदर्शन किया। लेकिन जैजैपुर विधानसभा मे बसपा का दबदबा कायम रहा और केशव चंद्रा पहले से ज्यादा मजबूती के साथ अपनी जीद दर्ज करने में कामयाब रहे। 2023 के चुनाव में बसपा ने एक बार फिर विधायक केशश चंद्रा को अपना कैंडिडेट बनाया है। वहीं बीजेपी और कांग्रेस बसपा के इस गढ़ में कब्जा जमाने के लिए ऐढ़ी-चोटी का जोर लगाये हुए है।

Back to top button