पार्ट-1 छत्तीसगढ़ के राम: जहां कटे थे प्रभु राम के वनवास के 12 साल, गुजारा था पहला चौमासा, राक्षस वध से लेकर, शिव अराधना तक, जानिये छत्तीसगढ़ के राम के अनजाने किस्से
Chhattisgarh ke Ram। राम जब तक अयोध्या में रहे, तब तक वो दशरथ पुत्र राम कहलाये…राजकुमार राम कहलाये…लेकिन, जब राम 14 वर्ष के वनवास के बाद लौटे, तो वो “मर्यादा पुरुषोत्तम राम” कहलाये। राम प्रसंग में जो सबसे ज्यादा प्रासंगिक है, वो है “राम का वनवास” जिसमें राम के कई रूपों के दर्शन हुए। बड़े भाई का त्याग, छोटे भाई पर स्नेह, पत्नी से प्रेम, भक्तों का सम्मान, अराध्यों की भक्ति और अहंकारों का नाश…। भगवान राम ने 14 साल के वनवास में मानव जीवन की पूरी सार्थकता सबके सामने रखी। छत्तीसगढ़ उनमें से भगवान राम के कई रूपों का साक्षी रहा है। आज के वक्त में जब पूरा देश रामलला का इंतजार कर रहा है, तो छत्तीसगढ़ की वो पावन जमीं भी खुद पर आह्लादित है, जहां, भगवान राम के वनवास के 12 साल गुजरे।
कोरिया के छतौड़ा आश्रम, सरगुजा का रामगढ़, जशपुर का किलकिला, जांजगीर का शिवरीनारायण, कबीर धाम का पचराही, गरियाबंद का राजिम धमतरी का सिहावा, राजनांदगांव का मानपुर, नारायणपुर बस्तर का चित्रकोट, बीजापुर का भद्रकाली, सुकमा का इंजरम, वो पावन स्थल हैं, जहां भगवान राम के वनवास के दौरान कदम पड़े थे। दावा है कि भगवान राम ने कोरिया से लेकर सुकमा तक की 1100 किलोमीटर की यात्रा की। अयोध्या से निकलने के बाद सबसे पहले राम, सीता और लक्ष्मण तमसा नदी पहुंचे थे। यहां से इलाहाबाद होते हुए वे श्रृंगवेरपुर पहुंचे थे जहां उनकी मुलाकात निषादराज गुह से हुई थी। वर्तमान में यह स्थान सिंगरौर के नाम से जाना जाता है, यहीं से निषादराज की नाव में सवार होकर उन्होंने गंगा नदी पार की थी। नदी के दूसरी तरफ कुरई नाम की जगह में उन्होंने कुछ देर विश्राम किया था। उनके विश्राम स्थल पर वर्तमान में एक मंदिर बनाया गया है।
चित्रकूट में मिला था भगवान राम को पिता दशरथ का शोक समाचार
अयोध्या से मां-पिता का चरण स्पर्श कर माता सीता और भाई लक्ष्ण के साथ राम ने वन की तरफ से बढ़े तो प्रयाग के बाद भगवान राम सबसे पहले मध्यप्रदेश के चित्रकूट पहुंचे थे। यही राम से मिलने के लिए भरत पहुंचे, इस दौरान ही उन्होंने राजा दशरथ की मृत्यु का समाचार प्रभु को सुनाया। साथ ही राम को वापस अयोध्या लौटने का अनुरोध किया। लेकिन, जब राम वापस लौटने को राजी नहीं हुए, तो भरत उनकी चरण पादुका लेकर लौट गए थे। चित्रकूट के वन में अत्रि ऋषि का आश्रम था, जिनके सानिध्य में भगवान राम ने कुछ वक्त बिताया था। अत्रि ऋषि के आश्रम के बाद दंडकारण्य के घने जंगल शुरू होते थे।
छत्तीसगढ़ में प्रभू राम का पहला कदम सीतामढ़ी-हरचौका में पड़ा
भगवान राम ने छत्तीसगढ़ में सीतामढ़ी-हरचौका से प्रवेश किया। भरतपुर के पास स्थित यह स्थान मवई नदी के तट पर है। यहां गुफानुमा 17 कक्ष हैं जहां रहकर श्रीराम ने शिव की आराधना की। हरचौका में कुछ समय बिताने के बाद वे मवई नदी से होते रापा नदी पहुंचे। यहां से सीतामढ़ी घाघरा पहुंचे। कुछ दिन यहां रुकने के बाद घाघरा से कोटाडोल पहुंचे। यहां से नेउर नदी तट पर बने छतौड़ा पहुंचे, जहां भगवान राम, माता सीता और लक्ष्मण ने पहला चातुर्मास बिताया।
रामगढ़ : छतौड़ा आश्रम से देवसील होकर रामगढ़ की तलहटी से होते तीनों सोनहट पहुंचे। यहां हसदो नदी का उद्गम होता है। इसके किनारे चलते हुए तीनों अमृतधारा पहुंचे। यहां कुछ दिन रहने के बाद जटाशंकरी गुफा फिर बैकुंठपुर होते पटना-देवगढ़ आए। आगे सूरजपुर में रेणु नदी के तट पर पहुंचे। फिर विश्रामपुर होते अंबिकापुर पहुंचे। पहले सारारोर जलकुंड फिर महानदी तट से चलते हुए ओडगी पहुंचे। यहां सीताबेंगरा और जोगीमारा गुफा में दूसरा चातुर्मास बिताया।
लक्ष्मणगढ़- धर्मजयगढ़: ओडगी के बाद हथफोर गुफा से होते तीनों लक्ष्मणगढ़ पहुंचे। फिर महेशपुर में ऋषियों का मार्गदर्शन लेते चंदन मिट्टी गुफा पहुंचे। रेणु नदी के तट से होते हुए बड़े दमाली व शरभंजा गांव आए। यहां से मैनी नदी व मांड नदी तट से होते देउरपुर आए। रक्सगंडा में हजारों राक्षसों का वध किया। फिर किलकिला में तीसरा चातुर्मास बिताया। राम धर्मजयगढ़ पहुंचे। इसके बाद अंबे टिकरा होते हुए चंद्रपुर आए। इस तरह सरगुजा व जशपुर क्षेत्र में तीन साल बीता।
कांकेर: चित्रकोट के बाद प्रभू राम दंडकारण्य पहुंचे, जहां उन्होंने 4 साल गुजारे। मध्य छत्तीसगढ़ में करीब पांच साल बिताने के बाद प्रभु राम कंक ऋषि के आश्रम की ओर बढ़े। वर्तमान में यह इलाका कांकेर कहलाता है। वहां से केशकाल की तराई से गुजरते हुए धनोरा पहुंचे। यहां सैकड़ों राक्षसों का वध करने के बाद नारायणपुर होते हुए छोटे डोंगर पहुंचे। यहां से बारसूर होते हुए चित्रकोट गए। यहां चौमासा बिताने के बाद इंद्रावती नदी के तट पर बसे गांव नारायणपाल गए। यहां से जगदलपुर होते हुए गीदम पहुंचे।
दंतेवाड़ा-सुकमा: गीदम से वे शंखनी और डंकनी नदी के तट पर बसे दंतेवाड़ा पहुंचे। यहां से कांकेर नदी के तट से होते हुए आगे बढ़े और तीरथगढ़ पहुंचे। यहां से कुटुंबसर गए। यहां से आगे बढ़कर सुकमा होते हुए वे रामारम पहुंचे। इसके बाद कोंटा और शबरी नदी के तट से होते हुए इंजरम पहुंचे। यहां से आगे बढ़े तो छत्तीसगढ़ और आंध्रप्रदेश के तटवर्ती इलाके कोलावरम पहुंचे। यहां से आगे बढ़े तो भद्राचलम पहुंचे जो छत्तीसगढ़ में उनका आखिरी पड़ाव था, इसके बाद वे दक्षिणापथ की ओर बढ़ गए।
वाल्मीकि आश्रम : चंद्रपुर के बाद राम शिवरीनारायण पहुंचे। यहां चौथा चौमासा बिताया। इसके बाद खरौद फिर वहां से मल्हार गए। यहां से महानदी के तट पर चलते हुए आगे बढ़े और धमनी, नारायणपुर होते हुए तुरतुरिया स्थित वाल्मिकी आश्रम पहुंचे। कछ दिन यहां बिताने के बाद सिरपुर आए। यहां से आरंग होते हुए फिंगेश्वर के मांडव्य आश्रम पहुंचे। इसके बाद चंपारण्य होते हुए कमलक्षेत्र राजिम पहुंचे। यहां से पंचकोशी तीर्थ की यात्रा करते हुए आगे बढ़े और मगरलोड से सिरकट्टी आश्रम होते हुए मधुवन पहुंचे। यहां से देवपुर गए। फिर रुद्री और पांडुका होते हुए अमरतारा में अत्रि ऋषि का आश्रम पहुंचे। फिर रुद्री, गंगरेल होते हुए दुधावा होकर देवखुंट और फिर सिहावा पहुंचे।
सिहावा में बीता ज्यादा समय : धमतरी जिले के पास नगरी सिहावा में राम का सबसे ज्यादा समय बीता है। इसके पीछे उनका तर्क है कि सिहावा में रहने वाले ऋषि श्रृंगी दशरथ की दत्तक पुत्री शांता के पति थे। यह स्थान उनके जीजाजी का रहा है। यहां स्थित शांता गुफा इसका प्रमाण है।
रामेश्वरम से किया था लंका प्रस्थान
रामेश्वरम में भगवान राम ने शिव की पूजा की थी। उनके द्वारा स्थापित रामेश्वरम शिवलिंग लोगों की आस्था का प्रमुख केंद्र है।रामेश्वरम के पास स्थित धनुषकोडि में राम को वह रास्ता मिला जिससे लंका तक जाया जा सकता था।इसके बाद नल-नील की मदद से लंका तक के लिए राम सेतु का निर्माण किया गया। यह पुल आज भी समुद्र के अंदर मौजूद है। 1860 में इसकी स्पष्ट पहचान हुई थी।नासिक में सीता के हरण के बाद रावण का जटायु से युद्ध हुआ था। रावण के वार से घायल होने के बाद जटायु नासिक से 56 किलोमीटर दूर स्थित सर्वतीर्थ पर गिरे थे। यहीं उन्होंने राम को सीता हरण के बारे में बताया था जिसके बाद उनकी मृत्यु हो गई थी। राम ने यहीं जटायु का अंतिम संस्कार कर पिता और जटायु का श्राद्ध-तर्पण किया था। सीता की खोज करते हुए राम लक्ष्मण ‘पम्पा’ नदी (वर्तमान में तुंगभद्रा नदी) के किनारे पहुंचे थे। इसी स्थान के पास किष्किंधा नगरी थी। रामायण के अनुसार हम्पी ही वानर राज्य किष्किन्धा की राजधानी थी। किष्किन्धा से पहले पड़ने वाले चन्दन के वनों और मलय पर्वत के पास राम की मुलाक़ात हनुमान से हुई थी। हनुमान ने राम की भेंट सुग्रीव से कराई थी जिसके बाद राम ने बालि का वध किया था। मान्यता के अनुसार माता सीता का हरण महाराष्ट्र के नासिक में हुआ था। दंडकारण्य में कुछ दिन गुजारने के बाद भगवान राम, लक्ष्मण और सीता के साथ नासिक गए थे। यहां पंचवटी आश्रम में वे तीनों रहे थे। यहां गोदावरी नदी के तट पर राम ने तपस्या की थी। यहां सीता मां की गुफा के पास पीपल, बरगद, आंवला, बेल और अशोक के पांच वृक्ष हैं इस वजह से इस स्थान को ‘पंचवटी’ कहा जाता है।
इन ऋषियों से हुई प्रभू राम की मुलाकात
विश्रवा, शरभंग, वशिष्ठ, मार्कंडेय, सुतीक्ष्ण, दंतोली, रक्सगंडा, वाल्मिकी, लोमस, अत्रि, कंक, श्रृंगी, अंगिरा, गौतम, महरमंडा आदि ऋषियों से मिले। उनसे अस्त्र-शस्त्र लिए। उनसे राजनीति, समाज और अन्य विषयों के गूढ़ रहस्यों की जानकारी भी ली।
दंडकारण्य में राक्षसों का किया वध
सीतामढ़ी से आगे प्रवेश करते ही दंडकारण्य के घनघोर जंगल में राक्षसों का जमावड़ा रहा करता था। इनमें सारंधर, दमाली, रक्सगंडा, राकसहाड़ा आदि प्रमुख थे। इन राक्षसों के नाम से ही कुछ गांव के नाम भी यहां मिलते हैं। छत्तीसगढ़ प्रवास के दौरान प्रभु राम ने यहां के छोटे-बड़े करीब 1100 राक्षसों का वध किया।