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एक गांव को आजादी की नहीं थी खबर!फिल्म भी बानी

नई दिल्ली 15 अगस्त 2023  1947 को मिली आजादी के बाद से 15 अगस्त को पूरे देश में जश्न का माहौल हर साल देखने को मिलता है. हिंदी सिनेमा में देश को ब्रिटिश शासन से आजादी दिलाने की घटनाओं पर कई फिल्‍में बनी हैं. हालांकि, आजादी की रात के आसपास की घटना पर शायद ही कोई फिल्‍म बनी हो तो आपको स्वतंत्रता दिवस पर आधारित एक फिल्म के बारे में बताते है, जिसका नाम है ‘अगस्त 16,1947’ (August 16 1947).

आजादी के समय आज की तरह हमारे पास संचार के साधन नहीं थे. ऐसे में अलग-थलग पड़े कई गांव को अगर आजादी मिलने की खबर ना हो तो कैसा माहौल होगा? इसी पर आधारित है ये फिल्म.

फिल्म की कहानी मद्रास प्रेसीडेंसी के काल्‍पनिक गांव सिंघाड़गांव की है, जहां पर कपास की खेती से अंग्रेजी सरकार मुनाफा कमा रहे थे. गांव में 15 साल से कार्यरत जनरल रॉबर्ट (रिचर्ट एशटन) वहां के गांव वालों से 16-16 घंटे काम करवा रहे थे.

इस पर क्रूरता इस कदर थी कि काम के दौरान पानी पाने और खाना खाने पर चाबुक मारा जाता था. जनरल ने उस गांव में आजादी की खबर गई गांव तक पहुंचाने के सारे रास्ते पर निगरानी रखने का ऑर्डर दे चुका था. वहीं जनरल रॉबर्ट का अय्याश बेटा गांव की जवान लड़कियों पर अपना हक जताता था.

इस गांव की कहानी केवल तीन दिन की 14, 15 और 16 अगस्त की दिखाई गई है. फिल्म में गांववासियों के उत्पीड़न और क्रूरता पर दिखाया गया है.

एन एस पोनकुमार ने फिल्‍म की कहानी, डायलॉग लिखने के साथ उसका निर्देशन भी किया है. सदियों से गुलामी की बेडियों में जकड़े हिंदुस्‍तानियों के लिए स्‍वतंत्रता का अर्थ क्‍या है? क्‍या सदियों तक गुलामी झेलने के बाद अंग्रेजों के देश छोड़ने की खबर के साथ ही देशवासी तुरंत उस मानसिकता से भी मुक्‍त हो पाएंगे? पोनकुमार ने अपनी कहानी के जरिए इन बिंदुओं की पड़ताल करने की कोशिश की है.

फिल्म में दिखाया गया गांव तो काल्पनिक है, लेकिन आपको पता है, सच में एक गांव ऐसा है जो पश्चिम बंगाल में स्थित है. बंगाल के नदिया जिले के शिवनिवास गांव में 15 अगस्त तक आजादी की रौशनी नहीं पहुंची थी क्योंकि इस गांव को पूर्वी पाकिस्तान का हिस्सा बना दिया गया. 17 अगस्त 1947 की दोपहर को एक संशोधन के जरिए शिवनिवास पूर्वी पाकिस्तान की जगह भारत में मिला लिया गया. पूरी जानकारी के लिए क्लिक करें नीचे दिए गए लिंक पर.

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