गर्मियों में पपीते की इस तरह करे सिंचाई ,रखे इन खास बातो का ध्यान पपीता की खेती देश के विभिन्न राज्यों जैसे आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, बिहार, असम, महाराष्ट्र, गुजरात, उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, जम्मू-कश्मीर और मिजोरम में अधिक की जाती है। इसके सफल उत्पादन के लिए वैज्ञानिक तरीकों और तकनीकों का प्रयोग कर किसान खुद और देश को आर्थिक लाभ पहुंचा सकते हैं।
विटामिन और खनिजों से भरपूर और एक पौष्टिक और स्वादिष्ट फल है ,इसका उपयोग औषधीय रूप में भी किया जाता है. आसानी से उपलब्ध होने वाले पपीते के उत्पादन में कुछ विशेष बातों का ध्यान रखकर इसे बीमारियों से बचाया जा सकता है और बेहतरीन उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है।
गर्मियों में पपीते की इस तरह करे सिंचाई ,रखे इन खास बातो का ध्यान
इस पपीते की खेती की लोकप्रियता दिन-ब-दिन बढ़ रही है और क्षेत्रफल की दृष्टि से यह हमारे देश का पांचवां लोकप्रिय फल है। देश के अधिकांश हिस्सों में घरेलू बगीचों से लेकर खेतों तक इसका बागवानी क्षेत्र लगातार बढ़ता जा रहा है।
इन राज्यों में होती है अधिक पपीते की खेती
पपीते की खेती देश के विभिन्न राज्यों में की जाती है ,जैसे -आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, बिहार, असम, महाराष्ट्र, गुजरात, उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, जम्मू-कश्मीर और मिजोरम और अन्य कई राज्यों में जा रही है।
इसके सफल उत्पादन के लिए वैज्ञानिक तरीकों और तकनीकों का प्रयोग कर किसान खुद और देश को आर्थिक लाभ प्राप्त कर सकते है। पपीते की खेती करने वाले किसानो को खास बातों ध्यान रखना होगा।गर्मियों में पपीते की खेती कर रहे है तो इसकी कितनी बार सिंचाई करना है यह ध्यान में रखे।
खरपतवार नियंत्रण
पपीते के बगीचे में कई खरपतवार उगते हैं और मिट्टी से नमी, पोषक तत्व, हवा और रौशनी आदि के लिए पपीते के पौधे से प्रतिस्पर्धा करते हैं। इससे पौधों की वृद्धि और उत्पादन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। खरपतवारों से बचाव के लिए आवश्यकतानुसार निराई-गुड़ाई करनी होती है। बार-बार सिंचाई करने से मिट्टी की सतह कठोर हो जाती है और पौधे की वृद्धि पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। 2-3 सिंचाई के बाद प्लेटों की हल्की निराई-गुड़ाई करनी चाहिए।
इतनी बार करें सिंचाई
पानी की कमी और समय पर सिचाई और निराई-गुड़ाई न करने पर पपीते के उत्पादन पर बुरा प्रभाव पड़ता है। दक्षिण भारत की जलवायु में सर्दियों में 8-10 दिन और गर्मियों में 6 दिन के अन्तराल पर सिंचाई करनी होती है , उत्तर भारत में अप्रैल से जून तक सप्ताह में दो बार और सर्दियों में 15 दिन के अन्तर पर सिंचाई करनी होती है।
ध्यान रहे कि पानी तने को न छुए, नहीं तो पौधे में सड़न रोग लगने की संभावना रहेगी, इसलिए तने के आसपास की मिट्टी ऊंची होनी चाहिए। पपीते के बगीचे को साफ रखने के लिए प्रत्येक सिंचाई के बाद पेड़ों के चारों ओर हल्की निराई-गुड़ाई करनी चाहिए। पपीते की अच्छी पैदावार के लिए सिंचाई की उचित व्यवस्था बहुत जरूरी होती है।
गर्मियों में 6-7 दिन और सर्दियों में 10-12 दिन के अंतराल पर सिंचाई करनी पड़ती है। ताकि बारिश के मौसम में जब लम्बे समय तक वर्षा नहीं होती है तो सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है।