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एक कुर्सी जो डराती भी है! छत्तीसगढ़ विधानसभा में संयोग या फिर टोटके वाली कुर्सी…


रायपुर 13 अक्टूबर 2023।छत्‍तीसगढ़ विधानसभा के भीतर एक कुर्सी ऐसी भी है, जिसमें बैठने वाले को सीट पर बैठने के साथ ही अपने अगले चुनाव की चिंता होने लगती है। जी हां, ये कुर्सी है विधानसभा अध्यक्ष की। इस कुर्सी के साथ जुड़ा तथ्य बताता है कि अब तक अधिकारिक तौर पर इस कुर्सी पर 5 सदस्य ही बैठे हैं। कुर्सी पर बैठने के बाद होने वाले अगले चुनाव में इनमे से तीन को हार का मुंह देखना पड़ा। एक जीत तो गए, लेकिन अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सके। विधानसभा स्‍पीकर यानी अध्‍यक्ष की कुर्सी के साथ जुड़े अजीब संयोग की शुरूआत होती है राज्य बनने के साथ। मध्‍यप्रदेश से अलग होकर 1 नवंबर 2000 को नया छत्‍तीसगढ़ राज्‍य बना। तब कांग्रेस बहुमत में थी, लिहाजा सरकार कांग्रेस की बनी। छत्तीसगढ़ विधानसभा के पहले अध्यक्ष बने राजेंद्र प्रसाद शुक्‍ला। वे मध्यप्रदेश विधानसभा के भी अध्यक्ष रह चुके थे।

राजेन्‍द्र प्रसाद शुक्‍ल कोटा सीट से विधायक थे। 2003 में विधानसभा चुनाव हुआ तो भाजपा को जीत मिली। राजेंद्र प्रसाद शुक्‍ल अपनी कोटा सीट जीतने में सफल रहे। छत्‍तीसगढ़ के इतिहास में राजेन्‍द्र प्रसाद शुक्‍ल ही इकलौते ऐसे विधानसभा अध्‍यक्ष रहे हैं जो अगला चुनाव जीते हैं। लेकिन सरकार बीजेपी की बन गई थी। लिहाजा भिलाई विधानसभा सीट से जीते प्रेम प्रकाश पांडेय विधानसभा के अध्‍यक्ष बने। लेकिन राजेन्‍द्र प्रसाद शुक्‍ल 2008 का विधानसभा चुनाव होने से पहले ही 20 अगस्त 2006 को इस दुनिया से विदा हो गए।

2008 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने सत्‍ता में वापसी की। लेकिन प्रेम प्रकाश पांडेय चुनाव हार गए। उनकी जगह भाजपा ने बिल्‍हा से जीतकर आए धरमलाल कौशिक को विधानसभा अध्‍यक्ष की कुर्सी पर बिठाया।

इसके बाद 2013 में भाजपा की तीसरी बार सरकार बनी। लेकिन धरमलाल कौशिक बिल्हा से कांग्रेस के सियाराम कौशिक से चुनाव हार गए।

2013 में कसडोल से जीतकर विधानसभा पहुंचे गौरीशंकर अग्रवाल को सदन का अध्‍यक्ष बनाया गया।

इसके बाद साल 2018 में कांग्रेस ने 15 साल सत्ता में रही भाजपा को करारी शिकस्त दी। 15 सीटों पर सिमट गई भाजपा के सभी दिग्गजों के साथ गौरीशंकर अग्रवाल को भी हार का मुंह देखना पड़ा।

कांग्रेस ने डॉ. चरणदास महंत को स्‍पीकर की कुर्सी सौंप दी। यानी इस कुर्सी का इतिहास यही कहता है कि जो भी विधानसभा अध्यक्ष की कुर्सी पर बैठता है, वो अगला चुनाव नहीं जीतता। अगर जीत भी जाता है, तो फिर कार्यकाल पूरा नहीं कर पाता। भाजपा की सरकार में बनाए गए तीनों ही विधानसभा अध्यक्ष अपना अगला चुनाव अपनी ही सीटों से हार गए।


इसीलिए मंत्री बनना पंसद

साल 2003 में चुनाव हारने वाले प्रेमप्रकाश पांडेय 2013 में फिर से जीत गए। सरकार भी बीजेपी की बन गई। लेकिन प्रेमप्रकाश पांडेय ने इस बार विधानसभा अध्‍यक्ष बनने से इनकार कर दिया और उन्हें मंत्री बनाया गया। धरमलाल कौशिक 2013 में चुनाव हारने के बाद 2018 में बिल्हा से जीत तो गए, लेकिन वे भी इस बार अध्यक्ष नहीं बनना चाहते थे। लेकिन प्रदेश में सरकार ही नहीं बनी। गौरीशंकर अग्रवाल को तो हार के बाद ये मौका ही नहीं मिलना था। 2018 में जब कांग्रेस की सरकार बनी तो डॉ. चरणदास महंत भी विधानसभा अध्यक्ष बनने के लिए तैयार नहीं थे। हालांकि पार्टी उनके कद और प्रोफाइल को देखते हुए उन्हें विधानसभा अध्यक्ष का पद देना चाहती थी और हुआ भी ऐसा ही।

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