भ्रष्ट और सुस्त व्यवस्था का गढ़ बना बिल्हा विकासखंड कार्यालय…. रिटायर होने के बाद अपनी ही राशि पाने डेढ़ साल से चक्कर लगा रहे शिक्षक, शासन प्रशासन की छवि धूमिल कर रहे बीईओ!
बिलासपुर 21 दिसंबर 2021। यूं तो कहने को बिल्हा विकासखंड की पहचान इस तौर पर है कि वह विश्व का सबसे बड़ा ब्लॉक है, लेकिन बात यदि शिक्षा विभाग की हो तो फिर इसकी यह पहचान बदलकर रह जाती है। इसकी नई पहचान उस कार्यालय के तौर पर हैं जहां के अधिकारी खुद अपने मातहत कर्मचारियों को आज-कल-परसों के नाम पर घुमाते रहते हैं । मूल रूप से व्याख्याता होकर ऊंची पहुंच के दम पर विकासखंड शिक्षा अधिकारी की कुर्सी पर विराजमान रघुवीर सिंह राठौर की पहचान अब ऐसे अधिकारी के तौर पर बनते जा रही है जो बात तो चिकनी चुपड़ी करते हैं किंतु काम बिना कई बार घूमाए नहीं करते हैं।
हालत यह है कि जिला शिक्षा अधिकारी के निर्देश का भी इनकी सेहत पर कोई असर नहीं पड़ता है और यह मीडिया को भी अपने बयान में यह बताने लग जाते हैं कि वास्तव में उन्हें ऊपर से ही निर्देश स्पष्ट नहीं मिला है इससे समझा जा सकता है कि इनकी कार्यप्रणाली कितनी लचर है । आज से 1 माह पूर्व इन्होंने शिक्षक संगठनों की बैठक भी बुलाई थी और जितनी भी समस्याएं उठाई गई उन सब का निदान 1 सप्ताह या 10 दिन में करने का आश्वासन दे दिया लेकिन हालत यह है कि किसी भी समस्या का निराकरण नहीं हुआ , कुल मिलाकर चिकनी चुपड़ी बातों से ही विकासखंड शिक्षा अधिकारी अपना काम चला रहे हैं ।
अब इस मामले को ही ले लीजिए जिसमें 2019 और 2020 में रिटायर हुए 3 शिक्षक सालिकराम पाण्डेय, रामाधार लास्कर और गुरु प्रसाद देवांगन सेवानिवृत्त होने के बाद अपने ही समूह बीमा की जमा राशि और अर्जित अवकाश की नकदीकरण राशि के लिए भटक रहे हैं । आलम यह है कि विकास खंड शिक्षा अधिकारी कार्यालय को कई बार लिखित और मौखिक निवेदन करने के बाद उन्होंने पूरे मामले की लिखित शिकायत जिला शिक्षा अधिकारी और कलेक्टर को भी की है बकायदा कलेक्टर का जनदर्शन लेटर भी उनके पास है लेकिन बीईओ साहब के कान में जूं तक नहीं रेंगा । उन्होंने मामले को पेचीदा बनाते हुए इस विषय में जिला शिक्षा अधिकारी कार्यालय से मार्गदर्शन मांग लिया जबकि संविलियन निर्देश बनाते समय ही राज्य कार्यालय से सारी बातों को स्पष्ट कर दिया गया था और वह आदेश विभाग के पास पहले से उपलब्ध है जिसके तहत सेवा की गणना संविलियन दिनांक से होनी है और उसी के हिसाब से लाभ भी मिलना था कर्मचारी भी वही मांग रहे हैं लेकिन हास्यास्पद रुप से विकासखंड शिक्षा अधिकारी को इतनी सी बात समझ में नहीं आई और उन्होंने जिला शिक्षा अधिकारी से मार्गदर्शन मांगा, जिला शिक्षा अधिकारी ने उन्हीं आदेशों का हवाला देते हुए भुगतान करने के लिए निर्देशित किया तो विकास खंड शिक्षा अधिकारी को वह भी अधूरा अधूरा सा लगा ।
इस मामले में जब न्यूज़ वे ने विकास खंड शिक्षा अधिकारी रघुवीर सिंह राठौर से बात की तो वह यह बताने लगे कि जिला कार्यालय से ही स्पष्ट निर्देश नहीं आया है और वह अब कोष एवं लेखा पेंशन से मार्गदर्शन लेंगे सोचने वाला विषय है कि आखिर अर्जित अवकाश के नकदीकरण और समूह बीमा की जमा राशि के विषय में कोष एवं लेखा पेंशन आखिर क्या मार्गदर्शन देगा जबकि नियम पहले से विद्यमान है , कुल मिलाकर मामला यह है की व्याख्याता साहब विकासखंड शिक्षा अधिकारी तो बन चुके हैं लेकिन उन्हें नियमों की बिल्कुल भी जानकारी नहीं है या फिर सब कुछ जानते हुए भी वह जानबूझकर शिक्षकों को इधर से उधर भटकाते रहते हैं ताकि कोई और व्यवस्था की व्यवस्था हो सके ।
इस मुद्दे पर हमने जब जिला शिक्षा अधिकारी एसके प्रसाद से बात की तो उन्होंने भी बताया कि मैंने विकास खंड शिक्षा अधिकारी को निर्देश जारी कर दिया है और अब उन्हें राशि का भुगतान करना चाहिए शासन का जो निर्देश है उसी का परिपालन करना है और यह उनकी जिम्मेदारी है वह इसी काम के लिए उस पद पर बैठाए गए हैं ऐसे में स्पष्ट निर्देश न होने की बात कहना गलत है और यह टालमटोल करने वाली बात है।
बहरहाल सरकार समेत स्कूल शिक्षा विभाग के उच्च अधिकारियों और बिलासपुर के कलेक्टर को भी इस बात को संज्ञान में लेना चाहिए की यदि एक अधिकारी एक छोटे से काम को करने में इतना अधिक समय लेंगे और इस प्रकार शिक्षकों को यहां से वहां घुमाएंगे तो कुल मिलाकर स्कूल शिक्षा विभाग और सरकार की ही बदनामी होगी और कहीं न कहीं विभाग को ही इसका खामियाजा उठाना पड़ता है ।