बिग ब्रेकिंगशिक्षक/कर्मचारी

ना हेडमास्टर बन सके, ना पुरानी पेंशन का लाभ मिल : एक सहायक शिक्षक का दर्द – पुरानी पेंशन लागू होने से ठीक पहले हुए रिटायर…..24 साल की नौकरी में जिस पद हुए नियुक्त, उसी पद पर हो गये रिटायर

जांजगीर 1 अप्रैल 2022।... आंखों में नमी…दिल में कसक…और अधूरी तमन्ना के साथ सहायक शिक्षक ललित गुप्ता रिटायर हो गये। ना हेडमास्टर बनने की ख्वाहिश पूरी हुई और ना ही पेंशन का लाभ मिल सका। उन्हें समझ नहीं आ रहा किसे कोसें ? …..उस विभाग को, जिसकी लेटलतीफी ने वक्त पर प्रमोशन होने नहीं दिया….या उन याचिकाकर्ताओं को, जिनकी बदौलत कोर्ट से तारीख पे तारीख मिलती रही….या फिर उन अफसरों को, जिनके ढुलमूल रवैये ने नियम-शर्तों का ऐसा जाल उलझाया कि प्रमोशन दूर का सपना बनकर रह गया। इन सबके बीच 31 मार्च की घड़ी आ गयी, जिस शाम साथी शिक्षकों ने अपने ढ़ाई दशक के शिक्षक साथी ललित गुप्ता को विदाई दे दी। जब विदाई का दौर चल रहा था तो मन में एक कसक सी थी…काश ! रिटायरमेंट में एक महीना का वक्त और मिल जाता।

ये कहानी सिर्फ रिटायर हुए शिक्षक ललित गुप्ता की नहीं है, ललित गुप्ता सरीखे रिटायर हुए उन तमाम शिक्षकों की थी, जो एक ही पद पर ज्वाइन हुए और फिर उसी पद पर रिटायरमेंट के बाद उनकी विदाई हो गयी। ललित गुप्ता दारंग संकुल के बम्हनीडीह विकासखंड में पदस्थ थे। वो शास.प्रा.शाला छुईहापारा से रिटायर हुए। 23 सितंबर 1998 में सहायक शिक्षक पद पर ज्वाइन हुए ललित गुप्ता ने लगभग ढ़ाई दशक तक शिक्षा के क्षेत्र में काम किया।

अगर तय वक्त पर प्रमोशन हुआ होता तो निश्चित ही सीनियरिटी के लिहाज से ललित गुप्ता प्रधान पाठक बनते, लेकिन सरकार की स्पष्ट नीति निर्धारित नहीं होने और कोर्ट से मिल रहे तारीख पे तारीख की वजह से हेडमास्टर पद पर ललित गुप्ता का प्रमोशन नहीं हो सका। वहीं हाल पुरानी पेंशन का भी रहा, सरकार ने पुरानी पेंशन का लाभ देने की बात अप्रैल महीने से की है, लिहाजा मार्च में रिटायर हुए सहायक शिक्षक ललित को OPS का लाभ भी नहीं मिल सकेगा।

ललित गुप्ता के दर्जनों छात्र-छात्राएं नवोदय में हुए चयनित

ललित गुप्ता की लोकप्रियता बच्चों के बीच काफी थी। उनके पढ़ाने का अंदाज और बच्चों को सीखाने का जज्बा इस कदर भरा था कि उनसे पढ़कर कई छात्र नवोदय में चयनित हुए। उनके विध्यालय से करीब 70 से 80 प्रतिशत छात्र नवोदय में हर साल सेलेक्ट होते थे। यह बीड़ा उन्होंने 2012 से उठाया था और आज तक बहुत सारे बच्चों को इस प्रकार के विद्यालय में पहुंचा चुके हैं। यह एक ऐसे परिवेश में नौकरी करते थे जहां लोगों की आर्थिक स्थिति बहुत खराब थी। ललित गुप्ता के पढ़ाने की कला इतना शानदार थी कि कई संभ्रांत परिवार के बच्चे भी उनसे नवोदय में सेलेक्ट होने का गुर सिखने आते थे और वो उन्हें ऩिशुल्क नवोदय की तैयारी कराते थे।

Back to top button