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CG POLITICS : “शराब है जरूरी”…. शराबबंदी पर आखिर क्यों है राजनीतिक दलों की बोलती बंद,घोषणा पत्र में वादा करने तक की नही जुटा पाई हिम्मत !

रायपुर 5 नवंबर 2023। छत्तीसगढ़ में पहले चरण के चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस,बीजेपी और आम आदमी पार्टी का घोषणा पत्र जारी हो गया। लेकिन तीनों ही राष्ट्रीय पार्टियों ने अपने-अपने घोषणा पत्र में शराब बंदी के मुद्दे पर से इस बार दूरी बना ली है। मतलब साफ है प्रदेश में अगर राजनीति करनी है….तो “शराब जरूरी है”। ऐसा इसलिए क्योंकि शराब बंदी के मुद्दे पर कांग्रेस और बीजेपी पूरे 5 साल तक एक-दूसरे को घेरते रही। लेकिन जब चुनाव का वक्त आया, तो ना केवल बीजेपी बल्कि कांग्रेस और आम आदमी पार्टी ने भी शराब बंदी को लेकर वादा करने तक की हिम्मत नही जुटा पाई।

छत्तीसगढ़ में पहले चरण के चुनाव में अब महज 40 घंटे से भी कम का वक्त बचा हुआ है। ऐसे में बीजेपी के बाद अब रविवार को कांग्रेस पार्टी ने अपना घोषणा पत्र जारी कर दिया है। रविवार को ही आम आदमी पार्टी का भी घोषणा पत्र छत्तीसगढ़ की जनता के लिए जारी किया गया। तीनों राष्ट्रीय पार्टियों के घोषणा पत्रों पर गौर करे तो पहला मुद्दा धान और किसान है। शनिवार को बीजेपी ने अपने घोषणा पत्र में जहां किसानों से प्रति एकड़ 21 क्वींटल धान 3100 रूपये प्रति क्वींटल के दर पर खरीदने का वादा किया गया। उधर कांग्रेस ने बीजेपी से एक कदम आगे बढ़ते हुए धान का समर्थन मूल्य 3200 रूपयें प्रति क्वींटल करते हुए प्रति एकड़ 20 क्वींटल धान खरीदने का वादा करते हुए कर्ज माफी का बड़ा वादा किया है।

रविवार को ही आम आदमी पार्टी ने भी अपना घोषणा पत्र जारी कर धान और किसान के साथ ही शिक्षा और रोजगार के मुद्दे पर फोकस किया। AAP ने सरकार बनने पर किसानों को 3600 रूपये प्रति क्वींटल की दर से धान खरीदने की गारंटी देते हुए कर्ज माफी का वादा किया है। तीनों राष्ट्रीय पार्टियों के मेनिफेस्टो पर गौर करे, तो तीनों पार्टियों ने प्रदेश की नब्ज को समझते हुए अपने घोषणा पत्र में धान-किसान, महिला-बेराजगार और युवाओं को साधने का भरसक प्रयास किया है। लेकिन पूरे पांच साल तक जिस शराब बंदी के मुद्दे पर कांग्रेस और बीजेपी एक-दूसरे के आमने-सामने होती रही,उसी शराब बंदी के मुद्दे पर ना तो कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में कोई जिक्र किया और ना ही कांग्रेस पर वादाखिलाफी का आरोप लगाने वाली बीजेपी ने कोई वादा करने की जरूरत महसूस की।

मतलब साफ है छत्तीसगढ़ में राजनीति करनी है, तो शराब जरूरी है। यहीं वजह है कि साल 2018 में शराबबंदी का वादा करने के बाद जिस तरह से सरकार पूरे पांच सालों तक विपक्ष का निशाना बनती रही, और हर बार मुख्यमंत्री भूपेश बघेल सहित उनके मंत्री संतोषजनक जवाब दे पाने में असमर्थ नजर आये। कार्यकाल पूरा होने के करीब आने के बाद भी प्रदेश में शराबबंदी कर पाना आज भी एक बड़ा चैलेंज ही है।बस यहीं वजह है कि साल 2018 में जो गलती कांग्रेस ने किया,वहीं गलती अब ना तो विपक्ष में मौजूद बीजेपी करना चाहती है और ना ही मौजूदा कांग्रेस की सरकार । कारण साफ है प्रदेश में शराब की बिक्री से अरबों का राजस्व मिलता है। ऐसे में कोई भी पार्टी में सरकार में आने के बाद शराबबंदी कर सरकार के राजस्व में आर्थिक चोट नही करना चाहेगी। यहीं वजह है कि छत्तीसगढ़ में शराबबंदी के मुद्दे पर इस बार राष्ट्रीय पार्टियों के साथ ही किसी भी राजनीतिक दल वादा तक करने की हिम्मत नही जुटा सकी।

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