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हाईकोर्ट : पुलिस इंस्पेक्टर के खिलाफ विभागीय जांच पर हाईकोर्ट की रोक, महिला की शिकायत पर FIR व फिर शुरू हुई थी जांच

दुर्ग 1 जुलाई 2023। इंस्पेक्टर के विभागीय जांच पर हाईकोर्ट ने स्टे दे दिया है। महिला की शिकायत पर पुलिस इंस्पेक्टर राजेंद्र यादव के खिलाफ FIR दर्ज कर कोर्ट में चालान पेश करने के बाद विभागीय जांच की कार्यवाही शुरू की थी। इस मामले में दायर याचिका के आधार पर हाईकोर्ट ने फिलहाल इंस्पेक्टर के खिलाफ चल रही विभागीय कार्यवाही पर रोक का आदेश दिया है।

बिलासपुर के राजेन्द्र यादव दुर्ग जिले में पुलिस इन्सपेक्टर के पद पर पदस्थ हैं। पोस्टिंग के दौरान देवनगर कॉलोनी, अमलेश्वर (दुर्ग) निवासी एक महिला की शिकायत पर राजेन्द्र यादव के विरुद्ध पुलिस थाना-अमलेश्वर, जिला-दुर्ग में एक आपराधिक मामला पंजीबद्ध कर न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी मिलाई-3 के न्यायालय में चालान प्रस्तुत किया गया। उसके पश्चात् पुलिस अधीक्षक (एसपी) दुर्ग द्वारा समान आरोपों पर राजेन्द्र यादव के विरूद्ध आरोप पत्र जारी कर विभागीय जांच कार्यवाही प्रारंभ कर दी गई।

विभागीय जांच कार्यवाही से क्षुब्ध होकर इन्सपेक्टर राजेन्द्र यादव द्वारा हाईकोर्ट अधिवक्ता अभिषेक पाण्डेय एवं घनश्याम शर्मा के माध्यम से हाईकोर्ट बिलासपुर के समक्ष रिट याचिका दायर की गई। अधिवक्ता अभिषेक पाण्डेय एवं घनश्याम शर्मा द्वारा हाईकोर्ट के समक्ष यह तर्क प्रस्तुत किया गया कि सुप्रीम कोर्ट, नई दिल्ली द्वारा एम. पॉल एंथनी विरूद्ध भारत गोल्ड माईन्स लिमिटेड इसके साथ ही स्टेन्जन टोयोटेट्स इंडिया लिमिटेड विरूद्ध गिरीश एवं अन्य के बाद में यह सिद्धान्त प्रतिपादित किया गया है कि यदि किसी शासकीय कर्मचारी के विरूद्ध आपराधिक प्रकरण पंजीबद्ध किया गया है एवं संबंधित विभाग द्वारा समान आरोपों पर विभागीय जांच कार्यवाही प्रारंभ कर दी जाती है, दोनों मामलों में अभियोजन साक्षी (गवाह) भी समान है ऐसी स्थिति में आपराधिक मामले (क्रिमीनल केस) में अभियोजन गवाहों का बयान सर्वप्रथम लिया जाना चाहिये।

यदि विभागीय जांच कार्यवाही में समस्त अभियोजन साक्षियों का कथन ले लिया जाता है तो इससे न्यायालय में चल रहे आपराधिक मामले पर प्रतिकुल प्रभाव पड़ेगा जो कि प्राकृतिक न्याय के पूर्ण विरूद्ध है। उच्च न्यायालय, बिलासपुर द्वारा उक्त रिट याचिका की सुनवाई के पश्चात् याचिकाकर्ता पुलिस इन्सपेक्टर राजेन्द्र यादव के विरुद्ध चल रही विभागीय जांच कार्यवाही को दूषित पाते हुए एवं माननीय सुप्रीम कोर्ट द्वारा उक्त वर्णित न्याय दृष्टांत का घोर उल्लंघन पाते हुए विभागीय जांच कार्यवाही पर स्थगन (स्टे) कर दिया गया।

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