अध्यातम

सावन के महीने में इस मंदिर जाना होता है बड़ा शुभ, जहां होती है संतान से जुड़ी मनोकामना पूरी…

रायपुर 11 जुलाई 2023 सावन का माह चल रहा है ऐसे में भगवान शिव का अर्धांगिनी माता पार्वती से विवाह को लेकर भी भक्तों के मन में कई तरह के सवाल उठते हैं। विवाह विधि से लेकर कई अन्य स्थितियों को तो हम सभी जानते हैं, लेकिन क्या आपको पता है कि भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह कहां हुआ और उस स्थान की क्या विशेषता है। क्या आप जानते है कि शिव विवाह से जुड़े स्थान पर ऐसी जगह भी हैं जहां संतान की मनोकामना पूर्ण होने के साथ ही संतान से जुड़ी हर समस्या भी दूर होती है।यदि नहीं जानते हैं तो ऐसे समझें…

दरअसल हर भक्त के मन में ये जिज्ञास होती है कि आखिर भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह कहां हुआ था, एक मान्यता के अनुसार भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह देवभूमि उत्तराखंड में हुआ था, ये जगह वर्तमान में त्रियुगीनारायण मंदिर के नाम से जानी जाती है, वहीं इस मंदिर की खास बात ये है कि आज भी यहां एक दिव्य लौ जल रही है, जिसे लेकर कहा जाता है कि भगवान शिव और माता पार्वती ने विवाह के दौरान इस दिव्य लौ की परिक्रमा यानि फेरे लिए थे।
विवाह के संबंध में ये है कथा
भगवान शिव और माता पार्वती के विवाह को लेकर जो मान्यता है उसके अनुसर माता पार्वती भगवान शिव से ही विवाह करना चाहती थीं। वहीं सभी देवताओं का भी यही मानना था कि पर्वत राजकन्या पार्वती का विवाह भगवान शिव से ही होना चाहिए। परंतु ऐसी कोई संभावना भगवान शिव की ओर से दिखाए नहीं जाने पर माता पार्वती ने प्रण लिया कि वो विवाह सिर्फ भोलेनाथ से ही करेंगीे।

इसी के चलते भगवान शिव से विवाह करने के लिए माता पार्वती ने अत्यंत कठोर तपस्या प्रारंभ कर दी। माता पार्वती की ऐसी कठोर तपस्या देख भोलनाथ ने अपनी आंख खोलने के बाद पार्वती से कहा कि वो किसी समृद्ध राजकुमार से शादी करें, भगवान शिव ने यहां इस बात पर भी जोर देते हुए कहा कि आसान नहीं होता एक तपस्वी के साथ रहना।

भगवान शिव की ये सभी बातें सुनने के बावजूद माता पार्वती अपने प्रण पर अडिग बनी रहीं, उन्होंने भगवान शिव से विवाह को लेकर अपने प्रण के लिए खुद को और कठिन परिस्थिति के लिए तैयार कर लिय। माता पार्वती की इस तरह की जिद को देख भगवान भोलेनाथ पिघल गए और उनसे विवाह करने को मान गए।

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