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NW स्पेशल : धन्यवाद काका !….CM भूपेश की एक पहल ने बदल दी 11 हजार बच्चों की दुनिया….बस्तर के बीहड़ों में अब बंदूकें नहीं, गूंज रही है स्कूल की घंटियां… 15 सालों में तबाह स्कूल, फिर से हुए आबाद…

जहां बंदूकें गूंजती थी, अब वहां स्कूल की घंटी गूंज रही है

जो कभी खंडहर व वीरान था, वो अब बच्चों से गुलजार है

बस्तर के बीहड़ों में बंदूक पर बस्ता अब भारी हो गया है

रायपुर 16 जून 2022।….मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की एक पहल ने झटके में 11 हजार बच्चों की जिंदगी बदल दी। अब ना तो उन बच्चों के पांवों में तपती दुपहरी में छाले पड़ेंगे….ना नदी पार जान पर खेलकर स्कूल जाने की जरूरत होगी। मुख्यमंत्री ने 16 जून को बस्तर के बीहड़ों में 260 स्कूलों को खोलने का जो फैसला लिया, वो ना सिर्फ एक ऐतिहासिक फैसला था, बल्कि बस्तर के आने वाले सुनहरे कल का भी संदेश था। ये मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की दूरदर्शिता ही है कि उन्होंने बस्तर के कल के कल को बदलने की शुरुआत नौनिहालों के भविष्य संवारने से की। 16 जून को ऑनलाइन शाला प्रवेशोत्सव के दौरान जब नक्सल प्रभावित स्कूलों के बच्चों से मुख्यमंत्री मुख्यमंत्री बात कर रहे थे, तो उन बच्चों के चेहरे पर खुशियां और ललाट का उभरा आत्मविश्वास बता रहा है कि इन बियावान से ही अब छत्तीसगढ़ में बदलाव की बयार निकलेगी।

15 सालों में नक्सली खौफ से जिन इलाकों में स्कूल वीरान और खंडहर हो गये थे, मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के निर्देश पर अब वो स्कूल फिर से तनकर खड़ा हो गया। नये शिक्षा सत्र से बंद पड़े 260 स्कूलों में फिर से पढ़ाई शुरू हो गयी है। राज्य सरकार ने जिन 260 स्कूलों को दोबारा से शुरू करने का फैसला लिया है, उनमें बीजापुर जिले के 158, सुकमा के 97, नारायणपुर के चार और  दंतेवाड़ा का एक स्कूल शामिल है। स्कूल शिक्षा विभाग के आंकड़े बताते हें कि इन स्कूलों में 11  हजार से अधिक बच्चे पढ़ेंगे। उम्मीद है कि स्कूल से जुड़ने के बाद ना सिर्फ बच्चों का पढ़ाई से जुड़ाव होगा, बल्कि बस्तर में नक्सलवाद की जड़ भी कमजोर होगी।

राजेश को पढ़ने चार किलोमीटर दूर जाना पड़ता था

राजेश के अब गांव में ही स्कूल मिल गया है। उसे चार किलोमीटर पैदल चलकर दूर के गांव में पढ़ने जाना पड़ता था। कभी पिताजी साइकिल से छोड़ने जाते तो कभी चाचा, लेकिन जब बारिश होती तो स्कूल जाने का रास्ता नहीं रहता, नदी को तैरकर पार करना पड़ता। लेकिन अब राजेश बेहद खुश है। बीजापुर के प्राथमिक शाला नयापारा, पढेडा में कक्षा तीसरी में उसे दाखिला मिला है। राजेश मड़ियाम ने मुख्यमंत्री को बताया कि वह पढ़ने के लिए पहले चेरपाल जाता था।मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने जब राजेश से पूछा, कि पढ़कर क्या बनना चाहते हैं, तो राजेश बोला- टीचर बनना चाहता हूं। राजेश के खुशी का इसी बात से मालूम चलता है कि अपनी बातों को खत्म करने से पहले उसने मुख्यमंत्र को कहा.. “धन्यवाद कका”। राजेश के पिता रमेश कहते हैं कि कुड़ेनार में 17 साल से स्कूल बंद था। अब बच्चे को पढ़ाई में काफी आसानी हो गयी है। गांव के ही युवा बच्चों को पढ़ाते हैं।

मड़कम दुला के घर के पास स्कूल खुल गया

सुकमा जिला में 97 स्कूलों को मुख्यमंत्री के निर्देश पर खोलने का आदेश दिया गया है। 16 जून को नये शैक्षणिक सत्र से यहां पढ़ाई शुरू कर दी। सुकमा के कोंटा के प्राथमिक शाला करीगुंडम में पांचवीं में पढ़ने वाले मड़कम दुला कहता है कि सीएम साहब ने स्कूल खोलवा दिया, अब काफी अच्छा लग रहा है। गरमी के दिनों उसे दूसरे गांव जाना पड़ता था, आने-जाने में दो से ती घंटे बरबाद होते थे। अब बहुत अच्छा लग रहा है। बाहर से गुरूजी भी आये हैं, अच्छे से पढ़ा रहे हैं। मड़कम के साथ 50 बच्चे पढ़ाई कर रहे हैं। दुला के पिता मड़कम मासा कहते हैं कि उनके गांव का स्कूल 2006 से बंद था। 15 साल बाद खुला है। गांव के बच्चों की पढ़ाई अब पूरी होगी।

सुखबेर, रीता, राकेश. राखी ने कहा- धन्यवाद काका

राजेश और मड़कम दुला की तरह सुखबेर, रीता, राकेश और राखी भी बहुत खुश हैं। इन सभी को अब गांव के बगल में 500 मीदर की दूरी पर स्कूल मिल गया है। सुखबेर बताती है कि जब से उसे याद है, उसने गांव का स्कूल बंद ही देखा था, अधिकारी लोग आये थे, बोले- कि यहां स्कूल जल्द ही खुलेगा। तभी से हमलोग खुश है। नारायणपुर के प्राथमिक शाला बड़कानार में तीसरी में पढ़ने वाले सुखबेर दोदी और पहली कक्षा में प्रवेशित कु. रीता तथा दंतेवाड़ा के प्राथमिक शाला मासापारा, भांसी में कक्षा तीसरी में पढ़ रहे राकेश आयटू और कु. राखी ने मुख्यमंत्री को ‘धन्यवाद कका’ कहा। मुख्यमंत्री ने जब इन बच्चों से बात की तो उनका उत्साह काफी ज्यादा बढ़ा हुआ था। मुख्यमंत्री ने सभी बच्चों को रोज स्कूल जाने और मन लगाकर पढ़ाई करने कहा।

नक्सलियों ने तोड़ दिया था राकेश का स्कूल

दंतेवाड़ा के प्राथमिक शाला मासापारा में तीसरी में पढ़ रहे राकेश आयटू के पिता मनोज कुंजाम कहते हैं कि गांव के स्कूल को नक्सलियों ने तोड़ दिया था। बच्चों को नदी-नाला पार कर गांव से बहुत दूर पढ़ने के लिए जाना पड़ता था। कुछ साल पहले इधर गोलियां भी चलती थी, लेकिन अब सब ठीक ठाक हो गया है। वो काफी डरते थे कि अगर बच्चे नहीं पढ़े तो फिर क्या होगा? कहीं वो भी तो गलत कामों में नहीं चले जायेंगे। लेकिन अब सब ठीक हो गया है।  जहां गांव में गोलियों की आवाज गूंजती थी, वहीं अब स्कूलों से बच्चों की पढ़ाई के समवेत स्वर गूंज रहे हैं।

11013 बच्चों को मिला दाखिला

छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री के निर्देश के बाद बस्तर के चार जिलों में 260 स्कूलों को खोलने का आदेश दिया गया है। मुख्यमंत्री के इस निर्देश के बाद 11013 बच्चे अब अपने पड़ोस के स्कूल में अपनी पढ़ाई पूरी कर सकेंगें। राज्य सरकार की तरफ से मिले आंकड़ों के मुताबिक सुकमा के 97 स्कूलों में कुल 3973, बीजापुर के 158 स्कूल में 6953, नारायणपुर के एक स्कूल में 65 और दंतेवाड़ा के 1 स्कूल में 22 बच्चों को दाखिला दिया गया है। मतलब कुल 260 स्कूलों में कुल 11013 बच्चों को स्कूलों का सहारा मिला है।

बस्तर संभाग में कुल 10776 स्कूल

  • – प्राथमिक शाला- 6788
  • – माध्यमिक शाला- 2556
  • – हाइस्कूल- 352
  • – हायरसेकेंडरी स्कूल- 437
  • – केंद्रीय विद्यालय- पांच
  • – नवोदय विद्यालय- आठ
  • – एकलव्य विद्यालय- 25
  • – गैर अनुदान प्राप्त निजी विद्यालय- 516
  • – अनुदान प्राप्त निजी विद्यालय- 51
  • – स्वामी आत्मानंद उत्कृष्ट अंग्रेजी माध्यम स्कूल- 31

17 साल पहले स्कूल जला दिया था

सुकमा से 105 किमी दूर कोंटा ब्लाॅक में परलागट्टा… यह धुर नक्सल प्रभावित गांव है। सुकमा जिला मुख्यालय से जगरगुंडा की दूरी 90 किमी है, वहां से परलागट्‌टा की दूरी 15 किमी है। परलागट्‌टा तक पहुंचने के लिए पैदल पहाड़ी पार करना होता है, जिसमें 2 घंटे का वक्त लगता है।फरवरी 2004 में स्कूल को नक्सलियों ने जला दिया था। तब से छात्र बचेली जाकर पढ़ाई कर रहे थे। अब इसी सत्र जून 2022 से यहां पर स्कूल खुलने जा रहा है। 30 बच्चों का दाखिला हो चुका है। यहां शिक्षा दूत नियुक्त हुआ है।

नक्सलियों ने बम से उड़ा दिया था बस

सुकमा से 55 किमी दूर मनीकोंटा गांव…यहां तक पहुंचने के लिए केवल कच्ची सड़क है। यहां 2005 के दौरान नक्सलियों ने प्राथमिक शाला को बम से उड़ा दिया था, जिसका मलबा आज भी यहां पड़ा हुआ है। ग्रामीण इस डर से गांव से पलायन कर गए। 2011 से धीरे-धीरे वापसी हुई, 2018 में पक्का स्कूल भवन बनकर तैयार हुआ।

शिक्षा दूत ने फैलायी शिक्षा की ज्योत

बस्तर के इलाके में बच्चों को शिक्षा से जोड़ने की कोशिश हो रही है, तो वहीं बस्तर के युवाओं को भी रोजगार से जोडने की कोशिश की जा रही है। इसी कड़ी में बस्तर के बीहड़ों में शिक्षा दूत की भर्तियां हो रही है। नये जो 260 स्कूल संचालित हो रहे हैं, उनमें शिक्षा दूत की भूमिका काफी महत्वपूर्ण होगी। शिक्षा विभाग ने जिला प्रशासन को निर्देश दिया था कि जो शिक्षा दूत अभी स्कूलों में पढ़ा रहे हैं, उनकी निरंतर सेवाएं ली जाती रहेगी। दरअसल बस्तर के बीहड़ों में शिक्षकों की काफी कमी है। एक तो वहां शिक्षक जाना नहीं चाहते हैं, दूसरी अगर शिक्षक की पोस्टिंग होती है, तो वो वहां से जल्दी ही ट्रांसफर करा लेते हैं। ऐसे में बस्तर में शिक्षकों की कमी दूर करने के लिए स्थानीय स्तर पर शिक्षा दूत की बहाली हो रही है। 12वीं पास युवाओं को स्कूलों को पढ़ाने के लिए शिक्षा दूत नियुक्त किया जाता है और डीएमएफ से उन्हें मानदेय का भुगतान किया जाता है।

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