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रानी मुखर्जी की नई फिल्म Mrs Chatterjee Vs Norway दमदार है मिसेज चटर्जी की परफॉर्मेंस….सच्ची घटना पर आधारित

मुंबई 14 मार्च 2023 आज से एक दशक पहले नॉर्वे में रह रहे एक दंपती के केस ने पूरे देशभर में मीडिया की अटेंशन पाई थी. केस के अनुसार नॉर्वे के चाइल्ड वेलफेयर सर्विस ने उस कपल के बच्चों को अपनी कस्टडी में लेते हुए पैरेंट्स पर आरोप लगाया था कि वे अपने बच्चों की परवरिश ठीक से नहीं कर रहे हैं. बच्चों को जबरन छीने जाने पर एक मां ने ऐसा शोर मचाया कि ग्लोबल लेवल पर यह केस चर्चा में बना रहा. अब उसी केस को फिल्म मिसेज चटर्जी वर्सेज नॉर्वे के रूप में सिल्वर स्क्रीन पर रिलीज किया जा रहा है. यह फिल्म क्रिटिक्स के मानकों पर कितनी खरी उतरती है, जानने के लिए पढ़ें ये रिव्यू.

नार्वे कंट्री में पिछले चार साल से अपने पति संग रह रही सागरिका चैटर्जी (रानी मुखर्जी) की जिंदगी में उस वक्त भूचाल आ जाता है, जब उसके दो छोटे बच्चों को वहां की गर्वनमेंट के चाइल्ड वेलफेयर सोसायटी द्वारा उठाकर ले जाया जाता है. वेलफेयर सोसायटी का यह आरोप है कि सागरिका अपने बच्चों की देखभाल करने में असमर्थ हैं, वो मानसिक रूप से स्टेबल नहीं हैं. वहीं दूसरी ओर बच्चों को एक नार्वे की दंपत्ति अडॉप्ट कर लेती है. जहां सागरिका अपने बच्चों की कस्टडी हासिल करने में ऐड़ी-चोटी की जोर लगा देती है. लगभग चार साल तक चलने वाले इस हाई प्रोफाइल केस के दौरान आखिर सागरिका किस तरह के ट्रॉमा से गुजरती है. बच्चों की कस्टडी वापस लेने के लिए क्या पापड़ बेलने पड़ते हैं. सत्य घटना पर आधारित इस केस में सागरिका का पक्ष क्या है. इन सबको डिटेल में जानने के लिए आपको सिनेमाघर की ओर रुख करना होगा.

डायरेक्शन
अशिमा छिब्बर ने डायरेक्शन की कमान संभाली है. आशिमा ने इस फिल्म के जरिए एक ऐसे इमोशन को रिप्रेजेंट करने की जिम्मेदारी उठाई है, जो यूनिवर्सल है. ‘मां’ के इमोशन और उसकी स्ट्रगल जैसी कहानियों ने हमेशा से दर्शकों के दिलों के तार को छुआ है. लेकिन आशिमा के इस खूबसूरत से सब्जेक्ट में एक्सीक्यूशन के लेवल पर कई कमियां दिखती हैं. इस फिल्म का सबसे कमजोर पक्ष इसका स्क्रीनप्ले रहा है. राइटिंग के लेवल पर कहानी बहुत ही ढीली नजर आती है. ऐसा प्रतीत होता है, मानों सोशल मीडिया पर हाईप्ड हुए केस को बिना प्रॉपर रिसर्च के स्क्रीन पर ला दिया गया हो. खासकर कुछ किरदारों की डिटेलिंग पर काम नहीं होने की वजह से स्क्रीन पर वे कंफ्यूज्ड से लगते हैं. इन कमियों की वजह से एक इमोशनल सब्जेक्ट होते हुए भी फिल्म आपके दिल को छू नहीं पाती है. 2 घंटे 24 मिनट की इस फिल्म के फर्स्ट हाफ में कम समय लेते हुए सागरिका के बैकड्रॉप को स्टैबलिश कर दिया गया है. वहीं सेकेंड हाफ में कुछ हिस्सों में कहानी का स्ट्रेच साफ नजर आता है.

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