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शिक्षकों को मिलेगी राहत या बढ़ेगी और भी मुश्किलें ? हाईकोर्ट पर टिकी है संशोधन प्रभावित हजारों शिक्षकों की नजर, 4 सितंबर के आदेश पर रोक लगाने पर रहेगा जोर

बिलासपुर 13 सितंबर 2023। राहत का बेसब्री से इंतजार कर रहे हजारों संशोधन निरस्तीकरण प्रभावित शिक्षकों की नजर आज फिर हाईकोर्ट पर होगी। निरस्तीकरण को लेकर अंतरिम राहत और प्रारंभिक सुनवाई सोमवार को हो चुकी है। लेकिन उस सुनवाई से जो फैसला आया, उसने शिक्षकों को राहत देने के बजाय मुश्किलें और बढ़ा दी। लिहाजा आज के फैसले पर बहुत कुछ निर्भर करेगा, कि आखिर निरस्तीकरण प्रभावित शिक्षकों का भविष्य क्या होगा।

सोमवार को इस मुद्दे पर 25 से ज्यादा याचिका पर सुनवाई हुई थी, जिसके बाद जस्टिस अरविंद चंदेल ने आदेश दिया था कि 13 सितंबर को एक साथ इस मुद्दे पर दायर 500 से ज्यादा याचिकाओं की सुनवाई होगी। लिहाजा आज जब सुनवाई होगी, तो याचिकाकर्ता के वकील उस दलील को भी सामने रखेंगे, जिसका सामना कोर्ट के यथास्थिति रखने वाले आदेश के बाद शिक्षक कर रहे हैं।

शिक्षा विभाग ने अधिकारियों को निर्देश दिया है कि जो शिक्षक भारमुक्त हो चुके हैं, लेकिन काउंसिलिंग के बाद आवंटित शाला में ज्वाइनिंग नहीं दिये हैं, उन्हें ज्वाइन नहीं कराया जायेगा, वो भारमुक्त ही रहेंगे। लिहाजा शिक्षक ना तो अपने संशोधित स्कूल के रहे और ना ही काउंसिलिंग के बाद आवंटित स्कूल में ही ज्वाइन करा सके।  शिक्षकों की मुश्किलें ये भी है कि आज ही आदेश का 10वां दिन भी है। ऐसे में विभाग ने निर्देश दिया था कि जो शिक्षक 10 दिन के भीतर ज्वाइन नहीं करतेहैं, उनका प्रमोशन रद्द हो जायेगा। लिहाजा शिक्षक काफी तनाव में हैं।

सीनियर वकीलों की मानें तो आज की बहस के दौरान यथास्थिति वाले निर्देश के बजाय 4 सितंबर 2023 के विभाग के निर्देश पर रोक की मांग की जायेगी। अधिवक्ता ने बताया कि सोमवार को जो फैसला कोर्ट ने दिया, उसका आज की परिस्थिति में कोई फायदा शिक्षकों को नहीं है, ऐसे में शिक्षकों को हो रही परेशानी को लेकर  4 सितंबर के फैसले पर ही रोक लगाने की दलील रखी जायेगी।

इससे पहले सोमवार को याचिकाकर्ता शिक्षकों की तरफ से एडवोकेट मनोज परांजपे, मतीन सिद्दीकी, विपिन तिवारी, प्रतीक शर्मा, अजय श्रीवास्तव ने बहस की थी। वहीं राज्य सरकार की तरफ से महाधिवक्ता सतीश चंद्र वर्मा ने पक्ष रखा। सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता शिक्षकों के वकीलों ने बताया कि राज्य सरकार को ट्रांसफर करने का अधिकार है पर यह ट्रांसफर नहीं है, यह प्रमोशन के बाद नई पोस्टिंग है।

साथ ही राज्य शासन का कहना है की पोस्टिंग में संशोधन संयुक्त संचालक नहीं कर सकते इसलिए इसे नियम विपरीत बता कर संशोधन आदेश निरस्त किया गया है। जबकि विधानसभा में विधायक रजनीश सिंह के उठाए गए सवाल के जवाब में स्वयं स्कूल शिक्षा मंत्री रविंद्र चौबे ने लिखित दिया था जिसमें कहा था कि नियुक्तिकर्ता अधिकारी यानी कि संयुक्त संचालक ट्रांसफर व पोस्टिंग कर सकते हैं।

याचिकाकर्ताओं की तरफ से यह भी तर्क दिया गया कि जिन स्कूलों में पूर्व में पदस्थापना की गई थी उनमें पहले से ही अतिशेष शिक्षक हैं। जबकि जिन स्कूलों में पोस्टिंग में संशोधन कर पदस्थापना दी गई है वहां शिक्षकों की कमी है। यदि यह पोस्टिंग आदेश निरस्त किया जाता है तो स्कूलों में शिक्षकों की कमी की समस्या बनी रहेगी।

सभी तथ्यों को सुनने के बाद जस्टिस अरविंद सिंह चंदेल ने याचिकाकर्ताओं को राहत देते हुए कहा कि जो भी पिटीशनर अभी रिलीव नहीं हुए हैं उन्हें सरकार रिलीव न करें। लेकिन, जो रिलीव होकर अपनी पुरानी जगह ( संशोधन से पहले वाली) में जा चुके है वो वही रहेंगे। केस की अगली सुनवाई तीन सप्ताह बाद होगी। इस दौरान शासन को जवाब प्रस्तुत करने के लिए कहा गया है।

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