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NW स्पेशल: मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की पहल ने मछली पालकों के लिए खोले संपन्नता के रास्ते, मत्स्य बीज उत्पादन में पांचवें और मत्स्य उत्पादन  में छठवें स्थान पर पहुंचा छत्तीसगढ़ 

रायपुर 28 अगस्त 2023। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की सोच ने हर वर्ग के लिए सफलता के रास्ते खोले हैं। भूपेश सरकार के कार्यकाल में जहां अन्नदाताओं को आर्थिक रूप से समृद्धि मिली है, तो वहीं खेती के विकल्प के रूप अन्य अन्य व्यवसायों को अपनाने वाले लोगों को भी आर्थिक रूप से संपन्नता मिली है। मत्स्यपालन यानि मछली पालन भी ऐसा ही एक व्यवसाय है, जो कम खर्च में लोगों को अधिक मुनाफा दे रहा है। भूपेश सरकार ने मत्स्य पालन की योजना को काफी सुलभ बनाया है, फिर चाहे बात सब्सीडी की हो, बीज की उपलब्धता, तालाब निर्माण की या फिर प्रशिक्षण की, हर तरह से मछली पालन करने वाले ग्रामीणों को छत्तीसगढ़ संसाधन उपलब्ध करा रही है।

कृषि का दर्जा दिये जाने पर किसानों को हो रहा मुनाफा

भूपेश सरकार ने मत्स्य पालन को कृषि का दर्जा देकर मछली पालकों को ब्याज मुक्त ऋण तथा अन्य सुविधाएं उपलब्ध कराया है। जिसकी वजह से किसानों में लागत में कमी आई है और मछुआरों की आमदनी बढ़ी है। छत्तीसगढ़ में मछली पालन के लिए 2 लाख हेक्टेयर से अधिक जल क्षेत्र उपलब्ध है। मत्स्य बीज उत्पादन के लिए 86 हेचरी, 59 मत्स्य बीज प्रक्षेत्र, 647 हेक्टेयर संवर्धन पोखर उपलब्ध है, जहां उन्नत प्रजाति के 330 करोड़ मछली बीज फ्राई का उत्पादन किया जा रहा है।

केज कल्चर से बढ़ रहा मत्स्य उत्पादन

प्रदेश में हाल के सालों में मछली उत्पादन में काफी बढ़ोत्तरी हुई है। राज्य की आवश्यकता 143 करोड़ मछली बीज की है, जिसकी वजह से बचे 187 करोड़ मछली बीज अन्य राज्यों को निर्यात किये जा रहे हैं। राज्य मछली बीज उत्पादन में आत्मनिर्भर हो चुका है एवं पूरे देश में मत्स्य बीज उत्पादन के क्षेत्र में पांचवें स्थान पर है। छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के समय मात्र 93 हजार मेट्रिक टन मत्स्य का उत्पादन होता था, वर्तमान में लगभग 6 लाख मेट्रिक टन मत्स्य उत्पादन होने लगा है। मत्स्य उत्पादन में यह वृद्धि साढ़े छह गुना है।

मछली उत्पादन में छत्तीसगढ़ देश में छठवें स्थान पर

मत्स्य उत्पादन के क्षेत्र में छत्तीसगढ़ देश में छठवें स्थान पर है। मत्स्य पालन के क्षेत्र में छत्तीसगढ़ को राष्ट्रीय स्तर पर देश में बेस्ट इनलैंड स्टेट का अवार्ड मिला है।  राज्य के 19 सिंचाई जलाशयों एवं दो खदानों में कुल 4021 केज स्थापित किए जा चुके हैं। पंगेशियस, मोनोसेक्स तिलापिया जैसे मछलियों का पालन एवं जलाशयों में केज कल्चर के माध्यम से सीमित जल संसाधन में अधिक मत्स्य उत्पादन प्राप्त करने में सहायता प्राप्त हुई है।

मछुआ कल्याण बोर्ड से हो रहा उत्थान

छत्तीसगढ़ में मछली उत्पादन के प्रति बढ़े रूझान को देखते हुए मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने मछुआ कल्याण बोर्ड का गठन किया है। वहीं मछुआ कल्याण बोर्ड के अध्यक्ष को कैबिनेट मंत्री का दर्जा दिया गया है। विगत पौने पांच वर्षों में राज्य का मत्स्य बीज उत्पादन 251 करोड़ से बढ़कर 344 करोड़ स्टेंडर्ड फ्राई हो गया है। मत्स्य बीज उत्पादन में 37 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। मत्स्य बीज उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाने हेतु मौसमी तालाबो में मत्स्य बीज संवर्धन कार्यक्रम के तहत मत्स्य पालको द्वारा मत्स्य बीज संवर्धन किया जा रहा है।इस योजना से 5 हजार से अधिक मत्स्य पालक लाभ उठा चुके है। इसी तरह वर्ष 23-24 में भी 500 मत्स्य पालको द्वारा मत्स्य बीज संवर्धन किया जा रहा है। विगत पौने पांच वर्षों में 23 नए सर्कुलर मत्स्य बीज हेचरी की स्थापना की गई है। वर्तमान में कुल 92 मत्स्य सरर्कुलर हेचरी मत्स्य बीज उत्पादन हेतु उपलब्ध है।

हजारों किसानों ने मछली पालन को बनाया व्यवसाय

मछुआ समूहों की आमदनी पहले की अपेक्षा बहुत बढ़ गई है और वे आत्मनिर्भर की राह में आगे बढ़ रहे हैं। प्रत्येक हितग्राही को 5-5 नग केज आबंटित है, प्रत्येक केज में 5000 नग तिलापिया मोनोसेक्स/पंगेशियस मत्स्य बीज संचित कर मत्स्य उत्पादन किया जा रहा है तथा प्रत्येक केज से लगभग 2000 कि.ग्रा. मत्स्य उत्पादन प्राप्त किया जा रहा है। वर्ष 2022-23 में प्रत्येक हितग्राही को आबंटित केज से मत्स्य उत्पादन से उनकी आर्थिक और सामाजिक स्थिति बेहतर हो रही है। राज्य में ग्रामीण तालाबों में प्रति हेक्टेयर औसत मत्स्य उत्पादन 4017 कि.ग्रा एवं सिचाई जलाशयों में 240 किग्रा उत्पादन है, जो देश के औसत उत्पादन से अधिक है। कांकेर जिले के कोयलीबेड़ा विकासखण्ड में मछली पालन की कलस्टर आधारित खेती विकसित हो रही है जहाँ 3000 से अधिक किसान लाभान्वित हो रहे है।

मछली पालन नीति से मछुआरों को हो रहा फायदा

राज्य की नवीन मछली पालन नीति में मछुआरा के हितों को ध्यान में रखते हुए संशोधन को मंज़ूरी दी गई।  मछुआ समुदाय के लोगों की मांग और उनके हितों को संरक्षित करने के उद्देश्य से नवीन मछली पालन नीति में तालाब और जलाशयों को मछली पालन के लिये नीलामी करने के बजाय लीज पर देने के साथ ही वंशानुगत-परंपरागत मछुआ समुदाय के लोगों को प्राथमिकता देने का निर्णय लिया गया है। संशोधित नवीन मछली पालन नीति के अनुसार मछली पालन के लिये तालाबों एवं सिंचाई जलाशयों की अब नीलामी नहीं की जाएगी, बल्कि 10 साल के पट्टे पर दिये जाएंगे।तालाब और जलाशय के आबंटन में सामान्य क्षेत्र में ढीमर, निषाद, केंवट, कहार, कहरा, मल्लाह के मछुआ समूह एवं मत्स्य सहकारी समिति को तथा अनुसूचित जनजाति अधिसूचित क्षेत्र में अनुसूचित जनजाति वर्ग के मछुआ समूह एवं मत्स्य सहकारी समिति को प्राथमिकता दी जाएगी।इसी तरह मछुआ समूह एवं मत्स्य सहकारी समिति अथवा मछुआ व्यत्ति को ग्रामीण तालाब के मामले में अधिकतम एक हेक्टेयर के स्थान पर आधा हेक्टेयर जलक्षेत्र तथा सिंचाई जलाशय के मामले में चार हेक्टेयर के स्थान पर दो हेक्टेयर जलक्षेत्र प्रति सदस्य/प्रति व्यक्ति के मान से आवंटित किया जाएगा। जनपद पंचायत 10 हेक्टेयर से अधिक एवं 100 हेक्टेयर तक, ज़िला पंचायत 100 हेक्टेयर से अधिक एवं 200 हेक्टेयर औसत जलक्षेत्र तक, मछली पालन विभाग द्वारा 200 हेक्टेयर से अधिक एवं 1000 हेक्टेयर औसत जलक्षेत्र के जलाशय, बैराज को मछुआ समूह एवं मत्स्य सहकारी समिति को पट्टे पर देगा।

मछुआ समूह बढ़ रहे आत्मनिर्भरता की तरफ

बांगों सिंचाई डेम में एक हजार केज स्थापित किए गए हैं। इस डेम के डूबान क्षेत्र के विस्थापित मछुआ सहकारी समिति के सदस्यों को कुछ साल पहले तक मत्स्य पालन में आमदनी के लिए खूब मेहनत करनी पड़ती थी। इसके बावजूद उन्हें आर्थिक समस्याओं का सामना करना पड़ता था। मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल जब इस क्षेत्र के ग्राम-सतरेंगा, आए तो उन्होंने मत्स्यिकी समूहों की आवश्यकताओं को समझा और मछुआ समूहों को 1000 नग केज उपलब्ध कराने की घोषणा की। मुख्यमंत्री के घोषणा उपरांत जिला खनिज संस्थान न्यास कोरबा एवं विभागीय सहयोग से बांगो सिंचाई जलाशय के ग्राम-सतरेंगा में 100 नग, ग्राम-गढ़उपरोड़ा में 100 नग तथा निउमकछार में 800 नग केज स्थापना का कार्य पूर्ण किया गया तथा बांगो सिंचाई जलाशय के आस-पास के विस्थापित मछुआ सहकारी समिति के 200 सदस्यों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए मत्स्य पालन के व्यवसाय से जोड़ा गया। परिणामस्वरूप

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