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9 बार विधायक, किक्रेट, हॉकी व फुटबॉल के खिलाड़ी…..मजदूर नेता से, देश की सबसे पुरानी पार्टी के बॉस बने मल्लिकार्जुन खड़गे की पूरी कहानी…

नयी दिल्ली 19 अक्टूबर 2022। अरसे बाद कांग्रेस को गैर गांधी बॉस मिला है। मल्लिकार्जुन खड़गे कांग्रेस के नये अध्यक्ष चुन लिये गये हैं। मल्लिकार्जुन खड़गे को 7897 वोट मिले, जबकि थरूर को 1072 वोट मिले हैं। मल्लिकार्जुन खड़गे गांधी परिवार के भरोसेमंद माने जाते हैं, जिसको लेकर समय-समय पर उन्हें पार्टी की ओर से वफादारी का इनाम भी मिलता रहा है। साल 2014 में खड़गे को लोकसभा में पार्टी का नेता बनाया गया था। लोकसभा चुनाव 2019 में हार के बाद भी कांग्रेस पार्टी ने उन्हें 2020 में राज्यसभा भेज दिया। पिछले साल गुलाम नबी आजाद का कार्यकाल खत्म होने के बाद कांग्रेस पार्टी ने उन्हें राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष बना दिया।
छात्र राजनीति से शुरुआत करने वाले 80 वर्षीय खड़गे ने एक लंबी पारी यूनियन पॉलिटक्स की भी खेली। वह संयुक्त मजदूर संघ के एक प्रभावशाली नेता थे, जिन्होंने मजदूरों के अधिकारों के लिए किए गए कई आंदोलनों का नेतृत्व किया। खड़गे का जन्म कर्नाटक के बीदर जिले के वारावत्ती इलाके में एक किसान परिवार में हुआ था। गुलबर्गा के नूतन विद्यालय से अपनी स्कूली शिक्षा पूरी की और गुलबर्गा के सरकारी कॉलेज से स्नातक की डिग्री ली। फिर गुलबर्गा के ही सेठ शंकरलाल लाहोटी लॉ कॉलेज से एलएलबी करने के बाद वकालत करने लगे। कांग्रेस का हाथ खड़गे ने साल 1969 में था और पहली बार 1972 में कर्नाटक की गुरमीतकल असेंबली सीट से विधायक बने। खड़गे गुरमीतकल सीट से नौ बार विधायक चुने गए। इस दौरान उन्होंने विभिन्न विभागों में मंत्री का पद भी संभाला।

एक ही सीट से 9 बार विधायक
वर्ष 2000 में कन्नड़ सुपरस्टार डॉ. राजकुमार का जब चंदन तस्कर वीरप्पन ने अपहरण किया था, उस समय खड़गे प्रदेश के गृह मंत्री थे। 2009 से उन्होंने अपना संसदीय सफर शुरू किया जिसके बाद लगातार दो बार गुलबर्गा से लोकसभा सांसद रहे। इसके केंद्र में मनमोहन सिंह सरकार में श्रम व रोजगार मंत्री और रेल मंत्री की भूमिका निभाई। खड़गे खुद को भले ही कर्नाटक का मानते हों, लेकिन उनकी जड़ें मूल रूप से महाराष्ट्र में हैं।

यही कारण है कि खड़गे बखूबी मराठी बोल और समझ लेते हैं। उनकी खेलों खासकर किक्रेट, हॉकी व फुटबॉल में खासी रुचि है। उनके बेटे प्रियांक खड़गे भी राजनीति में हैं, जो फिलहाल दूसरे टर्म के कांग्रेस विधायक हैं। कांग्रेस के सीनियर नेता और राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे भी वह नेता थे जिन्हें नेशनल हेराल्ड मामले में ईडी ने पूछताछ के लिए बुलाया था। वह नेशनल हेराल्ड से जुड़ी कंपनी यंग इंडिया के प्रिंसिपल ऑफिसर भी हैं।

आसान नहीं रहा जिंदगी का सफर

12 जुलाई 1942 को दलित दंपत्ति मपन्ना खड़गे और सबव्वा के घर एक बालक का जन्म हुआ और इसका नाम पड़ा मपन्ना मल्लिकार्जुन खड़गे. उन्होंने हैदराबाद के निजाम की रियासत में आने वाले बीदर जिले के वरावट्टी में दुनिया में पहली बार अपनी आंखें खोली. मौजूदा वक्त में यह जगह कर्नाटक में आती है. कहा जाता है कि गरीब और दलित परिवार से आने के बाद भी उन्होंने अपनी पढ़ाई में कोई कसर नहीं रखी. गुलबर्गा के नूतन विद्यालय से स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने यहीं के सरकारी कॉलेज से कला से स्नातक की पढ़ाई की.उनकी जिंदगी में टर्निंग प्वाइंट लेकर आया गुलबर्गा का सेठ शंकरलाल लाहोटी लॉ कॉलेज यहां से उन्होंने कानून की डिग्री ली और उसके बाद पीछे मुड़कर नहीं देखा. उन्होंने अपने इस करियर की शुरुआत न्यायमूर्ति शिवराज पाटिल की सरपरस्ती में की.शायद एक ऐसे तबके से आने के बाद उन्हें पता था कि दबा-कुचला जाना कैसा होता है, इसलिए उन्होंने अपने कानूनी करियर की शुरुआत में श्रमिक संघों के मुकदमों को तवज्जो दी और इन मुकदमों में जीत दर्ज की. यहीं वजह रही कि श्रम मामलों और कानून में उनकी काबिलियत की वजह से मनमोहन सिंह सरकार में उन्हें श्रम मंत्री का पद दिया गया

कॉलेज से शुरू हुआ राजनीतिक करियर

मौजूदा वक्त में 80 साल के मल्लिकार्जुन खड़गे (Mallikarjun Kharge) राज्यसभा में कांग्रेस के नेता विपक्ष हैं. साल 2021 की शुरुआत में गुलाम नबी आजाद की राज्यसभा से विदाई के बाद आलाकमान ने उन्हें ये पद सौंपा था. लंबे वक्त से कर्नाटक की राजनीति में सक्रिय और मजबूत नेता खड़गे की इस राजनीतिक करियर की नींव उनके कॉलेज के दिनों से ही पड़ गई थी.

उन्होंने अपने राजनीतिक जीवन का आगाज एक छात्र संघ के नेता के तौर पर किया था. गुलबर्गा के सरकारी कॉलेज में उन्हें छात्रसंघ महासचिव के पद पर जीत हासिल हुई थी. इसके बाद से तो वह नेतृत्व करने की पोजिशन में रम गए. साल 1969 एमएसके मिल्स कर्मचारी संघ (MSK Mills Employees Union) के कानूनी सलाहकार बनाए गए. खड़गे संयुक्त मजदूर संघ (Samyukta Majdoor Sangha) के एक प्रभावशाली और दमदार श्रमिक संघ नेता बनकर उभरे. उन्होंने मजदूरों के हकों की लड़ाई के कई आंदोलनों का नेतृत्व भी किया. इसी के साथ उनकी राजनीतिक पहचान गहरी होती गई. 

जब जुड़े कांग्रेस के साथ 

साल 1969 मल्लिकार्जुन खड़गे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हो गए और गुलबर्गा सिटी कांग्रेस कमेटी (Gulbarga City Congress Committee) के अध्यक्ष बने. इसके बाद वह कर्नाटक की राजनीति में उनके सितारे चमकते देर नहीं लगीं. साफ और बगैर विवादों वाले इस दलित युवा को कांग्रेस ने दक्षिण राज्य कर्नाटक में हाथों हाथ लिया.

अब हालात ये हैं कि वो कांग्रेस पार्टी की अतंरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी के वफादार और भरोसे वाले नेताओं की कैटेगिरी में आते हैं. खड़गे की सक्रिय राजनीति में आने की बात करें तो वह साल 1972 का दौर था जब उन्होंने गुरमीतकल निर्वाचन क्षेत्र से कर्नाटक राज्य विधानसभा लड़ा. इसमें वह जीत गए. इसके बाद उनकी जीत का ये सिलसिला 9 साल तक लगातार चलता रहा.

1972 के बाद उन्होंने साल 2009 तक (यानी न1978, 1983, 1985, 1989, 1994, 1999, 2004, 2008, 2009) विधानसभा चुनावों में जीत की हैट्रिक लगाई. जब खड़गे गुलबर्गा से सांसद थे, तब उन्हें दो बार साल 2009-2019 में लोकसभा में  कांग्रेस पार्टी के नेता होने का गौरव मिला. कांग्रेस के आलाकमान का उन पर भरोसा ही था जो साल 2019 में बीजेपी के उमेश जाघव से हारने के बाद भी उन्हें सक्रिय भूमिका सौंपी गई. पार्टी ने उनके लिए राज्य सभा से राह बनाई. साल 12 जून 2020 को कर्नाटक से वो राज्यसभा के लिए निर्विरोध निर्वाचित हुए तो  पार्टी आलानकमान ने 12 फरवरी 2021 को उन्हें राज्यसभा में विपक्ष के नेता के तौर पर अपनी पसंद बनाया. 

 खड़गे और उनका परिवार 

13 मई 1968 में मल्लिकार्जुन खड़गे की जिंदगी में राधाबाई ने उनकी जीवन संगिनी के तौर पर प्रवेश किया. इस दंपत्ति के पांच बच्चे हैं. जिनमें तीन बेटियां है तो एक बेटा है. 2019 लोकसभा चुनावों के हलफनामे में उन्होंने अपनी संपत्ति 15 करोड़ से अधिक बताई थी. मल्लिकार्जुन खड़गे केवल राजनीति के मैदान के ही अच्छे खिलाड़ी नहीं है बल्कि वह खेल के मैदान में भी माहिर खिलाड़ी हैं.

आज से 12 साल पहले उनके खेल टीचर ने बताया था कि पढ़ाई में औसत रहने वाले खड़गे स्कूल टीम के स्टार थे. वो फुटबॉल, हॉकी और कबड्डी बेहतरीन खेलते थे. वो जिला और डिवीजन लेवल पर स्कूल का प्रतिनिधित्व भी करते थे. इतने लंबे और शानदार राजनीतिक करियर वाले खड़गे हमेशा डॉउन टू अर्थ ही रहे हैं. कांग्रेस नेता के तौर पर लोकसभा (Lok Sabha) में उनके भाषण यादगार रहे हैं।

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