बिग ब्रेकिंग

खेल ट्रांसफर का









खेल ट्रांसफर का

ऑनलाइन ट्रांसफर का आदेश आते ही बिचौलिए सक्रिय हो गए हैं आलम यह है कि ऊंची पहुंच के दम पर कहीं से कहीं पहुंचा देने का दावा करने वाले बिचौलियों की जेब गर्म होने लगी हैं। जिला शिक्षा अधिकारी तक से अनुशंसा न करा पाने वाले बिचौलियों ने मुखिया तक का हाथ पकड़कर ट्रांसफर करा देने का दावा ठोक रखा है और जिन से केस ले लिया है उन्हें बार-बार फाइल मूव होने की बात कह रहे हैं , इधर ट्रांसफर का आवेदन लगाने वाला कर्मचारी जब अपने आवेदन की स्थिति देख रहा है तो डीईओ कार्यालय तक में आवेदन पेंडिंग है अब उसे यह बात समझ ही नहीं आ रही कि जब आवेदन डीईओ कार्यालय से आगे नहीं बढ़ा है तो काम होगा तो होगा कैसे । यदि हम सच बताए तो काम होगा ऐसे की जितनी राशि दी गई होगी उसका 20 परसेंट कटकर 3 महीने बाद मिल जाएगा ।

नेता जी बने पत्रकार

एक बड़बोले नेता जी को पत्रकार बनने का इतना शौक चर्राया है की शिक्षा विभाग के मामलों में “दखल” देने के लिए उन्होंने अपनी पत्नी के नाम से एक वेब पोर्टल ही शुरू कर दिया है । बाकी नेता जी ठहरे बुद्धिहीन, तो वेबसाइट में संपर्क के लिए अपना ही नंबर दे डाला । और भी कई ऐसी गलतियां जिससे कभी भी यह साबित हो जाए की खबरें नेताजी ही लिखकर वायरल कर रहे थे अब उनकी कुंडली तैयार करके कुछ लोगों ने रख ली है ताकि सही समय पर गाज गिराई जा सके । हर मामले पर दखल देने वाले नेताजी के मामले में जब उनके विरोधियों की दखल होगी तो नेता जी ने सोचा भी नहीं होगा कि मामला उनकी दखल से कितना बाहर हो जाएगा क्योंकि आईपी ऐड्रेस जैसी चीजों के बारे में तो शायद उन्हें पता ही न हो । 4 लाइन लिखकर खुद को पत्रकार समझ लेने वाले इस तथाकथित नेता को शायद यह पता नहीं कि शासकीय कर्मचारी को पत्रकार बनने का लाइसेंस नहीं मिलता ।

कोनो फिरकी ले रहा !

छत्तीसगढ़ सहायक शिक्षक फेडरेशन के सदस्यों को समझ ही नहीं आ रहा कि उनकी फिरकी ले कौन रहा है संघ के नेतागण या सरकार…..काहे की सरकार का कोई भी निर्णय आता है तो झट से बगावत का झंडा तन जाता है और कार्यक्रम होने से ठीक पहले मुलाकात हो जाती है और मुस्कुराते हुए कह दिया जाता है कि आश्वासन मिला है हम कार्यक्रम को अभी स्थगित कर रहे हैं । अब नीचे में फेडरेशन के लिए आवाज बुलंद कर रहे लोगो को समझ ही नहीं आ रहा कि उनके साथ असली खेल , खेल कौन रहा है ???

खेल बैनर का

पुरानी पेंशन की घोषणा हुई तो कर्मचारी संघ के लोग झूमने लगे अचानक इसी बीच में एक वरिष्ठ नेता अपने चार पांच साथियों के साथ बैनर लहराते हुए नजर आए , भले ही उनके पास संख्या बल थी नहीं , लेकिन साथ में बैनर तो था तो मीडिया में नए लोगों को भी समझ नहीं आ रहा था कि यह उसी युवा नेता की भीड़ है जो झूम रहा है या फिर बुजुर्ग नेता की । बहरहाल कार्यक्रम खत्म होने के बाद वरिष्ठ पत्रकारों ने कनिष्ठ पत्रकारों को बताया की मिठाई रंग गुलाल से लेकर फटाके तक में खर्च दिलदारी से युवा नेता की टीम ने किया है बुजुर्ग नेता ने तो केवल अपने अनुभव का लाभ लिया है ।

जल भुन कर राख

एक नेता जी पुरानी पेंशन की घोषणा होते ही मुंह फुला कर बैठ गए , बोले – 3 साल तक मेहनत मैंने और मेरी टीम ने की और श्रेय लूट गया कोई और…. ऐसा लग रहा है मानो कोई चमत्कार कर गया हो मेरा । ऐसे में 3 साल से नेताजी से ही धोखा खा रहे लेकिन मजबूरी में साथ उनके एक पदाधिकारी लगभग हंसते हुए बोले – क्या है न सर, दरअसल अब तक आप सही नेताओं के बीच पहुंचे ही नहीं थे तो नेतागिरी क्या होती है आपको पता ही नहीं था , असल में नेतागिरी यही होती है जो अभी हुई है । नेतागिरी में करने से ज्यादा दिखने का महत्व होता है और जिसको दिखना था वह तो दिख ही गया , यत्र तत्र सर्वत्र ।

खेला होबे

सोशल मीडिया में एक अद्भुत शिक्षक नेता है जिनके पास कुल जमा ढाई लोग हैं लेकिन उनकी बात पर हंसने वाले ढाई सौ लोग हैं काहे की कोई भी विषय हो हर विषय में पहला प्रयास उन्हीं ने किया है जैसा कि वह कहते हैं । जैसे ही कोई मुद्दा आता है वह तत्काल लिख देते हैं मैंने फलाना नेता से कहा था वह फलाना मेरे चाचा जी हैं तो उन्होंने मुझे कहा कि बेटा जी चिंता मत करो हम करवा रहे हैं और आज उसी के कारण यह हुआ है उनको धन्यवाद
यह बात और है कि नेताजी को अपने ब्लॉक तक की खबरें पता नहीं होती लेकिन पुराने चावल हैं तो चाह कर भी नेतागिरी छूटती नहीं और कहते हैं जमीन पर नहीं तो कम से कम सोशल मीडिया पर तो नेतागिरी की जा सकती हैं, बस वह वही कर रहे हैं । कभी-कभी कोई लंगोट भी खींच देता है चर्चा परिचर्चा के दौरान तो नेताजी मन की भड़ास निकाल कर लेफ्ट हो जाने में भी महारत हासिल रखते हैं ।

नेता पलटूराम

एक और शिक्षक नेता जी हैं यू-टर्न वाले , वह कब क्या बोलेंगे यह खुद उनको ही नहीं पता होता । दिन में एक विषय में तीन बार पलटी मार जाते हैं , अब तो हालत यह है कि उनके लंबे लंबे प्रेस विज्ञप्ति से हर पत्रकार डरने लगा है क्योंकि खबर छापे देर नहीं होती कि नेताजी की पलटने की खबर आ जाती है । बताते हैं कि एक बड़े संगठन की नींव उन्होंने ही रखी थी लेकिन इसी अंदाज के चलते मकान बनने के बाद रजिस्ट्री किसी और के नाम पर हो गई । बताते हैं कि इस मकान की भव्यता को देखकर ही कभी-कभी नींव रखने वाले नेताजी अपना आपा खो बैठते हैं और फिर सोशल मीडिया में किसी के भी पूरे खानदान को याद कर लेते हैं , ऐसे कुछ अति विद्वान लोगों ने इन अलौकिक घटनाओं को स्क्रीनशॉट के रूप में संरक्षित करके रख लिया है ताकि सही समय आने पर नेताजी को थाने के चक्कर लगवा सकें ।

  • नोट :- भांग के नशे में कुछ ऊपर नीचे लिख गया हो तो बुरा न मानो होली है कहकर भूल जाना मित्रों ।

Back to top button