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पोस्टिंग निरस्तीकरण अपडेट: हजारों शिक्षकों की आज हाईकोर्ट पर नजर, 25 से ज्यादा याचिका पर आज होगी सुनवाई, जानिये याचिका में क्या दी गयी है दलील

रायपुर 11 सितंबर 2023। पदोन्नति के बाद पोस्टिंग निरस्तीकरण का मुद्दा गरमाया हुआ है। राज्य सरकार ने झटके से 2700 से ज्यादा पोस्टिंग निरस्त कर खलबली मचा दी है। आज पोस्टिंग की निरस्तीकरण से प्रभावित शिक्षकों की नजर हाईकोर्ट पर टिकी है। निरस्तीकरण से प्रभावित दर्जनों याचिका अब तक हाईकोर्ट में लग चुकी है, जिसमें से 25 से ज्यादा याचिकाओं की आज सुनवाई होनी है। ये केस अलग-अलग वकीलों के जरिये प्रभावित शिक्षकों ने लगाये हैं। वरिष्ठ अधिवक्ता मतीन सिद्दीकी, अजय श्रीवास्तव, प्रतीक शर्मा, मनोज परांजपे, एनके मालवीय सहित कई अन्य अधिवक्ताओं के जरिये याचिकाएं हाईकोर्ट में लगायी गयी है। जानकारी के मुताबिक याचिकाओं की सुनवाई पहले हाफ में ही होगी । याचिकाओं की लिस्टिंग शुरुआती केस में हुई है। ऐसे में आज की सुनवाई के स्टेटस को लेकर ज्यादा इंतजार नहीं करना होगा।

आज की सुनवाई प्रभावित शिक्षकों के लिए काफी महत्वपूर्ण है। ऐसा इसलिए, क्योंकि पोस्टिंग निरस्तीकरण के आदेश में प्रभावित शिक्षकों को शिक्षा विभाग ने मोहलत ना के बराबर दी है। आदेश के मुताबिक निरस्तीकरण आदेश के 10 दिन के भीतर काउंसिलिंग के बाद पदांकित संस्था में ज्वाइनिंग देनी होगी। अगर संशोधित संस्था से रिलीव होकर शिक्षक काउंसिलिंग के बाद आवंटित संस्था में ज्वाइन नहीं करते हैं, उनका प्रमोशन रद्द किये जाने की बात भी कही है, लिहाजा आज की सुनवाई पर प्रभावित शिक्षकों का बहुत कुछ दांव पर लगा है।

अगर आज कोर्ट से शिक्षकों को राहत नहीं मिलती है, तो जाहिर है अगली सुनवाई की डेट आने में 10 दिन से ज्यादा का वक्त निकल जायेगा। लिहाजा, उन्हें अपने पदांकित संस्था में ज्वाइन करना पड़ जायेगा। दरअसल शिक्षक चाहते हैं कि मौजूदा संस्था से रिलिव होने से पहले कोर्ट की तरफ से उन्हें राहत मिल जाये, क्योंकि पूर्व संस्था में ज्वाइन कर लेने के बाद पेचिदगियां बढ़ जायेगी। वहीं बाद में अगर कोर्ट का फैसला शिक्षकों के पक्ष में भी आता है, तो आचार संहिता सहित अन्य वजहों से मामला अटक सकता है।

जानिये किन आधार को याचिकाओं में किया गया है शामिल

सबसे बड़ा पेंच तो यही है कि प्रमोशन संशोधन को राज्य सरकार ने ट्रांसफर माना है। राज्य सरकार की निरस्तीकरण को लेकर दलील यही है कि ट्रांसफर पर बैन के बावजूद तबादला पर निर्णय समन्वय के अलावे अन्य कोई नहीं ले सकता है। nwnews24.com से एक वरिष्ठ अधिवक्ता ने कहा कि ट्रांसफर हमेशा समान पदों पर होता है, जबकि जिन पोस्टिंग हमेशा निम्न से उच्च पदों पर होता है। ऐसे में तबादले की व्याख्या सरकार की तरफ से गलत तरीके से की जा रही है। पदोन्नति के बाद पोस्टिंग को तबादला कहा जाना उचित नहीं है। लिहाजा समन्वय से अनुमोदन या ट्रांसफर कहकर इस तरह की कार्रवाई उचित नहीं है।

दूसरी बात ये है कि पोस्टिंग में संशोधन को लेकर राज्य सरकार ने जो कार्रवाई की है, वो मौलिक सिद्धांत के विपरीत है। शिक्षकों को अपने बचाव और पक्ष रखने का मौका नहीं दिया गया। जांच की जानकारी भी शिक्षकों को नहीं थी, ना ही उनसे किसी तरह की जानकारी मांगी गयी।

पोस्टिंग में संशोधन का नियम राज्य सरकार ने ही बनाया है, सरकार भी खुद कई बार अपने पदस्थापना आदेश में संशोधन करती रही है। ऐसे में इस बार जो संशोधन को लेकर सरकार ने कदम उठाया है, वो एकपक्षीय है।

इतने समय बाद प्रमोशन के बाद की गयी पोस्टिंग को निरस्त क्यों किया गया। जो गड़बड़ियां कही जा रही है, वो पहले से सार्वजनिक थी, तो फिर महीनों बाद और बस्तर में तो डेढ़ साल बाद कार्रवाई क्यों की गयी।

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