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देश की पहली महिला शिक्षिका थी सावित्री बाई फुले…..जानिये किस तरह बदल दिया था पूरा समाज…

रायपुर 03 दिसंबर 2022: शिक्षा हमारे लिए कितनी जरूरी है ये हम सब जानते हैं। समाज में विकास और जागरूकता के ताले को खोलने के लिए शिक्षा ही एक मात्र चाभी है। शिक्षा को बेहतर बनाने के लिए कई ऐसे दिग्गजों ने योगदान दिया है, जिन्हें हम आज भी याद करते हैं। हर साल 5 सितंबर को भारत में शिक्षक दिवस यानी टीचर डे मनाया जाता है।

5 सितंबर को शिक्षक दिवस भारत के पहले उप-राष्ट्रपति डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्म दिवस के शुभ अवसर पर मनाया जाता है। शिक्षा के क्षेत्र में उनका योग्यदान अतुल्य है, उन्होंने अपने जीवन के 40 साल बतौर शिक्षक दिए है। वहीं शिक्षा के क्षेत्र में दूसरा नाम आता है सावित्रीबाई फुले का। उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में एक दर्जा हासिल किया है। जब भी शिक्षा की बात होगी वहां सावित्रीबाई फुले का नाम जरूर याद किया जाता है।

3 जनवरी 1831, यही वो तारीख है जब देश की पहली महिला शिक्षक सावित्रीबाई फुले का जन्‍म हुआ। महाराष्‍ट्र के पुणे में एक दलित परिवार में जन्‍मीं सावित्रीबाई के पिता का नाम खण्डोजी नेवसे और माता का नाम लक्ष्मीबाई था। महिलाओं के अध‍िकारों, सतीप्रथा, छुआछूत और विधवा विवाह जैसी कुरीतियों पर पुरजोर तरीके से आवाज उठाने वाली सावित्रीबाई को समाज में रूढ़ि‍यों की बेड़ि‍यां तोड़ने के लिए लम्‍बा संघर्ष करना पड़ा। जानिए, उनके जीवन के कुछ अहम पड़ाव के बारे में…

एक घटना ने बदल दी जिंदगी
1840 में मात्र 9 साल की उम्र में सावित्रीबाई का विवाह 13 साल के ज्योतिराव फुले के साथ हुआ। उस समय वो पूरी तरह अनपढ़ थीं और पति मात्र तीसरी कक्षा तक ही पढ़े थे। पढ़ाई करने का जो सपना सावित्रीबाई ने देखा था विवाह के बाद भी उन्‍होंने उस पर रोक नहीं लगने दी। इनका संघर्ष कितना कठिन था, इसे इनके जीवन के एक किस्‍से से समझा जा सकता है।

एक दिन वो कमरे में अंग्रेजी की किताब के पन्‍ने पलट रही थीं, इस पर इनके पिता खण्डोजी की नजर पड़ी। यह देखते वो भड़क उठे और हाथों से किताब को छीनकर घर के बाहर फेंक दिया। उनका कहना था कि शिक्षा पर केवल उच्‍च जाति के पुरुषों का ही हक है। दलित और महिलाओं के लिए शिक्षा ग्रहण करना पाप है।

यही वो पल था जब सावित्रीबाई ने प्रण लिया कि वो एक न एक दिन जरूर पढ़ना सीखेंगी। उनकी मेहनत रंग लाई। उन्‍होंने सिर्फ पढ़ना ही नहीं सीखा बल्कि न जाने कितनी लड़कियों को शिक्ष‍ित करके उनका भविष्‍य संवारा, लेकिन यह सफर आसान नहीं रहा।

पत्‍थर और गंदगी से हुआ सामना पर रुका नहीं कदम
पढ़ाई करने का प्रण लिया तो समाज के लोगों को यह बात नगवार गुजरी। एक दलित लड़की का स्‍कूल जाना समाज को कभी रास नहीं आया। इसी का नतीजा था कि सावित्रीबाई जब भी स्‍कूल जाती थीं तो लोग पत्‍थर मारते थे और कुछ लोग उन पर गंदगी फेंक देते थे। उन्‍होंने पति के साथ मिलकर इतिहास रचा और लाखों लड़कियों की प्रेरणास्रोत बन गईं। खुद भी पढ़ाई पूरी की और लड़कियों के लिए 18 स्‍कूल खोले ताकि कोई और अनपढ़ न रह सके। साल 1848 में महाराष्ट्र के पुणे में देश का सबसे पहले बालिका स्कूल की स्थापना की। वहीं, अठारहवां स्कूल भी पुणे में ही खोला गया था।

एक विधवा के पुत्र को अपनाया और डॉक्‍टर बनाया
सावित्रीबाई ने शिक्षा के लिए संघर्ष करने के साथ कुरीतियों के खिलाफ भी उठाई। छुआ-छूत, सतीप्रथा, बाल-विवाह और विधवा विवाह निषेध जैसी कुरीतियों के खिलाफ विरोध जताया। जिस समाज से उन्‍हें सिर्फ ताने मिले उसी समाज की एक लड़की की जिंदगी बचाई। एक दिन विधवा ब्राह्मण महिला काशीबाई आत्‍महत्‍या करने जा रही थी, वो गर्भवती थी। लोकलाज के डर से वो आत्‍म्‍हत्‍या करना चाहती थी, लेकिन सावित्रीबाई ने अपने घर पर उसकी डिलावरी कराई। उसके बच्‍चे का नाम यशवंत राव रखा गया। यशवंत को उन्‍होंने अपना दत्‍तक पुत्र बनाया और परवरिश की। यशवंत राव को पाल-पोसकर इन्होंने डॉक्टर बनाया।

  • ~ इस धरती पर ब्राह्मणों ने खुद को स्वघोषित देवता बना लिया है।
  • ~ अगर पत्थर पूजने से बच्चे होते तो नर नारी शादी ही क्यों रचाते।
  • ~ शिक्षा स्वर्ग का द्वार खोलती है, स्वयं को जानने का अवसर देती है।
  • ~ स्वाभिमान से जीने के लिए पढ़ाई करो, पाठशाला ही इंसानों का सच्चा गहना है।
  • ~ उसका नाम अज्ञान है। उसे धर दबोचो, मज़बूत पकड़कर पीटो और उसे जीवन से भगा दो।
  • ~ बेटी के विवाह से पहले उसे शिक्षित बनाओ ताकि वह आसानी से अच्छे बुरे में फर्क कर सके।
  • ~ अज्ञानता को तुम पकड़ो, धर दबोचो, मजबूती से पकड़कर उसे पिटो और उसे अपने जीवन से भगा दो।
  • ~ स्त्रियां केवल घर और खेत पर काम करने के लिए नहीं बनी है, वह पुरुषों से बेहतर कार्य कर सकती है।
  • ~ पत्थर को सिंदूर लगाकर और तेल में डुबोकर जिसे देवता समझा जाता है, वह असल मे पत्थर ही होता है।
  • ~ देश में स्त्री साक्षरता की भारी कमी है क्योंकि यहां की स्त्रियों को कभी बंधन मुक्त होने ही नहीं दिया गया।
  • ~ छत्रपति शिवाजी को सुबह शाम याद करना चाहिए, शुद्र अतिशूद्र के हमदर्द उनका गुणगान प्यारी भावना से करें।
  • ~ एक सशक्त शिक्षित स्त्री सभ्य समाज का निर्माण कर सकती है, इसलिए उनको भी शिक्षा का अधिकार होना चाहिए।
  • ~ तुम बकरी गाय को सहलाते हो, नाग पंचमी पर नाग को दूध पिलाते हो, लेकिन दलितों को तुम इंसान नहीं अछूत मानते हो।
  • ~ जाओ जाकर पढ़ो लिखो, मेहनती बनो, आत्मनिर्भर काम करो, ज्ञान और धन एकत्रित करो, ज्ञान के बिना सब खो जाता है, ज्ञान के बिना हम जानवर बन जाते है इसलिए खाली मत बैठो, जाओ जाकर शिक्षा लो।
  • ~ मेरी कविता को पढ़ सुनकर यदि थोड़ा भी ज्ञान हो जाए प्राप्त। मैं समझूंगी मेरी परिश्रम सार्थक हो गया। मुझे बताओ सत्य निडर होकर की कैसी है मेरी कविताएं ज्ञान परख यथार्थ मनभावन या अद्भुत तुम ही बताओ।
  • ~ स्वावलंबन का हो उद्दम, प्रवृति ज्ञान-धन का संचय करो मेहनत करके। बिना विद्या जीवन व्यर्थ पशु जैसा, निठल्ले ना बैठे रहो करो विद्या ग्रहण। शूद्र अतिशूद्रों के दुख दूर करने के लिए मिला है कीमती अवसर अंग्रेजी शिक्षा प्राप्त करने का।
  • ~ ब्राह्मणवाद केवल मानसिकता नहीं, एक पूरी व्यवस्था है। जिससे धर्म के पोषक तत्व देव-देवता, रीति-रिवाज, पूजा-अर्चना आदि गरीब दलित जनता को अपने में काबू में रखकर उनकी तरक्की के सारे रास्ते बंद करते हैं और उन्हें बदहाली भरे जीवन में धकेलते आए हैं।
  • ~ गरीबों और जरूरतमंदों के लिए हितकारी और कल्याणकारी कार्य शुरू किए हैं। मैं अपने हिस्से की जिम्मेदारी भी निभाना चाहती हूं। मैं आपको यकीन दिलाती हूं कि मैं आपकी हमेशा सहायता करुँगी। मैं कामना करती हूं कि ईश्वरीय कार्य अधिक लोगों की सहायता करेंगे।
  • ~ अंग्रेजी मैया, अंग्रेजी वाणी शूद्रों को उत्कर्ष करने वाली पूरे स्नेह से। अंग्रेजी मैया अब नहीं है मुगलाई और नहीं बची है अब पेशीबाई, मूर्खशाही। अंग्रेजी मैया देती सच्चा ज्ञान शूद्रों को, देती है जीवन वह तो प्रेम से। अंग्रेजी मैया शूद्रों को पिलाती है दूध। पालती पोसती है माँ की ममता से।

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