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शिक्षक दिवस विशेष : शिक्षक है सर्वांगीण विकास के प्रणेता, शिक्षक कैसे प्रतिष्ठित होंगे?

लेखक- संजय शर्मा
व्याख्याता, शा उ मा शा पंधी, बिलासपुर (छ ग)

समाज निरन्तर प्रगतिशील होता है, समाज मे सकारात्मक व नकारात्मक विचारधारा के लोग होते है, सभी मिलजुलकर रहते है, यदाकदा समाज मे दोनो प्रकार की प्रवृत्ति समय समय पर प्रस्फुटित होती है, पर ज्यादातर लोग चाहते है कि हम सभी समरसता से रहें।

समरसतापूर्व जीवन शैली यूँ ही नही बन जाता, अलग अलग स्तर, जाति, धर्म, पंथ व संस्कृति के लोग समूह में रहते है, सभी को जोड़े रखना, एक दिशा देना व सामाजिक वातावरण सौहार्द्रपूर्ण रहे यह कार्य तो शासन, प्रशासन के द्वारा चलता ही रहता है, परन्तु इसमे शिक्षा व शिक्षक का अवदान मुख्य होता है।

सामाजिक वातावरण के निर्माण में शिक्षक का दायित्व पूर्व से अब तक अविरल रहा है, पूर्व के समय मे शिक्षक का स्वरूप गुरु और विद्यालय गुरुकुल होता था, जहाँ शिक्षार्थी अपने शिक्षा के साथ साथ जीवन मूल्यों को भी अनुकरण करते थे, शांत सरोवर से गुरुकुल मे शिक्षा व जीवन मूल्य की अतल गहराई का भाव लिए गुरु जीवन पद्धति की सीख देते रहे है। समाज को दिशा देते हुए नैतिकता का मापदंड तब इन्ही गुरुजनों से मिला।

पूर्व काल के जितने भी विशिष्ट नाम गिना दीजिये, सभी ने एक आश्रम पद्धति से गुरु का सामिप्य प्राप्त किया है और वही हमारे आज पथ प्रदर्शक है, समय का चक्र चलता रहा है, समय गतिशील है हम बढ़ते रहे तब और आज की स्थिति में बदलाव साफ दिखता है।

सामान्यतः आज भी शिक्षको का अध्यापन और परिणाम का आंकलन तो किया जाता है और 80% परिणाम देने वाले शिक्षक उत्कृष्ट मान लिए जाते है किंतु 50% परिणाम देने वाले शिक्षको को सलाह दी जाती है, यहाँ यह ध्यान रखना जरूरी है कि शिक्षक का आंकलन केवल परिणाम से ही नही है बल्कि इससे बढ़कर अन्य कार्यक्ष्रेत्र को भी समझना आवश्यक है।

आज के भौतिक दौर में शिक्षण का कार्य चुनौती पूर्ण हो गया गया है, शिक्षा विभाग के मापदंड बदल दिए गए है, पालक संवेदनशील व वत्सल प्रेम से ग्रसित है, इस दौर में शिक्षण का कार्य चातुर्यपूर्ण कराए जाने की आवश्यकता है, स्व अनुशासन से ही शिक्षण को हम वाहक के रूप में आगे बढ़ा पाते है। वर्तमान की स्थिति में अपडेट रहने वाले शिक्षक ही प्रतिष्ठित होंगे।

विभागीय नियम व पाठ्यक्रम में शिक्षण सामग्री व बोध कराने वाले भाव व शिक्षण विधि के समावेश ने शिक्षण को सहज व प्रगतिशील बनाया है, जिन शिक्षको ने अपने शिक्षण कौशल में समावेश किया है वे सहजता से छात्रों के बीच स्थापित हुए है, अतः शिक्षण कौशल को अपनाकर व्यवहारिक ज्ञान को भी शामिल करते हुए रुचिकर अध्यापन से शिक्षक अपने गौरवपूर्ण स्थान को सुरक्षित रख सकते है।

शिक्षक का अनुकरण पूर्व से अब तक समाज करते आया है, पहले गुरुकुल से यह अलख गुरु जनों ने जगाए रखा, अब शिक्षक वर्ग को इस परंपरा को बनाये रखने अपने कार्य की उत्कृष्टता को सामने रखकर आगे बढ़ना होगा, आज भी समाज का वातावरण एक शिक्षक द्वारा आदर्श रूप में प्रबंधित किया जा सकता है, इस हेतु वैतनिक शिक्षक को अपने कार्य व शिक्षक दायित्व के प्रति ईमानदार बने रहना होगा।

शासकीय नियम और भौतिक वातावरण के साथ ही छात्र – पालक का अन्तर्सम्बन्ध का ताना बाना ऐसा बना हुआ है कि शिक्षक व छात्र के बीच दूरी बढ़ गई है, शिक्षक – छात्र का प्रगाढ़ सम्बन्ध समाज को सकारत्मकता प्रदान करता है किंतु अभी कारोबारी स्वरूप व बदलती जीवन शैली ने छात्र – शिक्षक के बीच दूरी बढ़ा दी है, इससे समाज मे कुछ नकारात्मकता का प्रवेश हुआ है जिससे समाज का मजबूत सम्बन्ध भी विघटित होता जा रहा है।

नवीनता व तकनीकी उपाय ने भी छात्रों की निर्भरता शिक्षको पर कम की है, अब प्रत्येक छात्र के पास सेल फोन है जिसमे इंटरनेट भी है अब छात्र को मिनट में ही पुस्तकीय व जरूरी जानकारी मिल रही है, छात्रों की शिक्षको पर निर्भरता कम हो गई है, छात्र अपनी कई जिज्ञासा को इंटरनेट के माध्यम से शांत कर लेते है, और उनकी जिज्ञासा का समाधान आसानी से हो जाता है।

इन सभी के बीच छात्र – पालक – शिक्षक का अन्तर्सम्बन्ध प्रभावित हुआ है और यही छात्र के सर्वांगीण विकास को प्रभावित कर रहा है। छात्रों के जिज्ञासा की पूर्ति तो हो गई पर व्यवहारिक ज्ञान व अवबोध के साथ छात्रों के सर्वांगीण विकास के वाहक तो शिक्षक ही है, इसे तकनीकी से स्थापित करना आसान नही है, अतः शिक्षक ही छात्रों के सर्वांगीण विकास के वाहक, रचयिता व प्रणेता है।

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