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भूपेश बघेल जन्मदिन विशेष : चुनौतियां तब भी थी, चुनौतियां आज भी है….पर संघर्ष और तेवर के बूते हर इम्तिहान को बना लिया आसान…. देश की राजनीतिक क्षीतिज पर उम्मीद बनकर टिमटिमा रहे हैं भूपेश बघेल…

रायपुर 22 अगस्त 2022। ….वो कहते हैं ना, इरादे नेक और हौसला फौलादी हो तो…आसमां भी झुककर सलाम करने को मजबूर होता है। विषम परिस्थिति में भी कभी ना तो हालात से समझौता किया और ना विश्वास की डोर छोड़ी …संघर्षों की तपिश ने जब-जब जलाने की कोशिश की, तो उस तपिश से भी और निखकर सामने आये। जी हां, हम बात कर रहे हैं मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की। आज सूबे के मुखिया अपना जन्मदिन मना रहे हैं।

दुर्ग के बेलौदी गांव से सत्ता के शीर्ष तक पहुंचने की राह मुश्किलों से भरी तो थी, लेकिन जीवटता को जिसने जीवन का पर्याय मान लिया हो, उसके आगे संघर्ष कहां टिक पाता। लिहाजा हर मुश्किल हालात का सामना कर आज मुख्यमंत्री भूपेश बघेल देश की राजनीतिक क्षीतिज पर अपनी अलग छाप छोड़ रहे हैं। एक दौर में जब छत्तीसगढ़ की सत्ता में बीजेपी अंगद की तरह पैर जमाये बैठी थी। भूपेश बघेल ने अपनी जीवटता, जुझारू शक्ति और आक्रामक अंदाज से 2018 के चुनाव बीजेपी को सिर्फ 15 सीटों पर उतार दिया।

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को आज किसानों के मसीहा के तौर पर जाने जाते हैं। उन्होंने छत्तीसगढ़ियों को छत्तीसगढ़िया अस्मिता का अहसास कराया है। भूपेश बघेल की काम करने की शैली बिल्कुल जुदा रही है। फिर पीसीसी चीफ के तौर पर संगठन की बागडोर संभालने की बात हो या फिर मुख्यमंत्री बनकर सत्ता की लगाम थामने की जरूरत। मुख्यमंत्री ने अपने करीब चार साल के कार्यकाल में राजनीति में कुछ ऐसे मिल के पत्थर गाड़ दिये हैं, जिसे पाना हमेशा दूसरे राजनीतिज्ञों के लिए चुनौती से भरी होगी। देश में ग्रामीण अर्थव्यवस्था की बुनियाद किसी ने तैयार की है, तो वो छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल हैं। नरवा, गुरवा, घुरवा, बारी योजना सिर्फ किसानों और गौपालकों के लिए संजीवनी नहीं, बल्कि प्रदेश की ग्रामीण अर्थव्यवस्था में भी जान फूंकने वाली कोशिश है। तभी तो प्रधानमंत्री मोदी भी मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के मुरीद हैं।

2014 में बने पीसीसी चीफ और 2018 में बनायी सरकार

छत्तीसगढ कांग्रेस में जान फूंकने का श्रेय अगर किसी राजनेता को जाता है, तो वो भूपेश बघेल हैं। प्रदेश अध्यक्ष रहते भूपेश बघेल ने अपने कार्यकर्ताओं को लड़ना और जुझना सिखाया। 70 सीटों का करिश्माई बहुमत जैसा चमत्कार कोई राजनेता कर सकता था, तो भूपेश बघेल ही हैं।  जिन्होंने आक्रामक तेवर के बूते छत्तीसगढ़ में 15 साल बाद कांग्रेस की सरकार बनवाई। भूपेश बघेल के लिए राजनीति की राह कभी आसान नहीं रही। चुनाव में हार जीत उनकी झोली में आती जाती रही, बावजूद उन्होंने कभी ना तो अपना अंदाज बदला और ना ही हालात से समझौता किया। एक वक् जब कहा जा रहा था कि झीरम कांड की सहानुभूति लहर के बूते 2013 में कांग्रेस सत्ता में आसानी से वापसी कर लेगी, तो भी बीजेपी ने ही सरकार बनायी। ये वो दौर था जब पार्टी का कार्यकर्ता निराश था, जीतने की ललक खत्म हो गयी थी। उस हालात में पार्टी को भूपेश बघेल के रूप में एक संजीवनी मिला। विरासत में मिले वनवास और बिखरी पार्टी को जोड़ने के लिए कांग्रेस ने 2014 में भूपेश बघेल को प्रदेश अध्यक्ष बनाया, तो चुनौतियों का अंबार था। 15 साल से सत्ता में रही बीजेपी की सरकार को हटाकर कांग्रेस का परचम लहराना आसान नहीं था, लेकिन भूपेश बघेल ने इस चुनौती को स्वीकार किया और आलाकमान को वादा किया कि 2018 में चुनावी जीत सुनिश्चित होगी। 2014 से लेकर 2018 तक के पीसीसी चीफ के कार्यकाल के दौरान भूपेश बघेल ने ना सिर्फ संगठन को मजबूत किया, बल्कि संगठन को कमजोर करने वाली ताकतों पर भी वार किया। पार्टी में चल रहे असंतोष को भी उन्होंने दूर करने का काम क्योंकि कांग्रेस के पूर्व सीएम अजीत जोगी और कांग्रेस के अन्य नेताओं के बीच मनमुटाव चरम पर था. ऐसे में कांग्रेस ने अजीत जोगी और उनके बेटे अमित जोगी को पार्टी से बर्खास्त किया. भूपेश बघेल ने आगे बढ़कर पार्टी का नेतृत्व किया और छत्तीसगढ़ में फिर से कांग्रेस को मजबूत बनाया. 2018 के छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को जोरदार जीत मिली और पार्टी ने अब तक सबसे अच्छा प्रदर्शन किया. कांग्रेस ने प्रदेश की 90 सीटों में से 68 सीटों पर जीत दर्ज की. कांग्रेस की इस जीत के सबसे बड़े सूत्रधार रहे भूपेश बघेल को राज्य के नए मुख्यमंत्री की जिम्मेदारी सौंपी गई. आखिरकार कांग्रेस के 15 साल का इतिहास बदला और कांग्रेस के सीएम के तौर पर भूपेश बघेल ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली.

जमीनी राजनीति के बूते अपनी पहचान बनायी।

भूपेश बघेल ने जमीनी स्तर से राजनीति के सफर की शुरुआत की। 1990 में वे दुर्ग जिला युवक कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष बने। फिर 1992 में बाबरी मस्जिद ढहाए जाने पर 350 किलोमीटर की सद्भावना यात्रा निकाली। भूपेश 1985 में यूथ कांग्रेस को ज्वॉइन किया। 1993 में जब मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव हुए तो पहली बार पाटन विधानसभा से वे विधायक चुने गए। अगला चुनाव भी वे पाटन से ही जीते, जिसमें उन्होंने बीजेपी के निरुपमा चंद्राकर को हराया।मध्यप्रदेश में दिग्विजय सिंह की सरकार बनी, तो भूपेश बघेल कैबिनेट मंत्री बने। साल 1990-94 तक जिला युवा कांग्रेस कमेटी दुर्ग (ग्रामीण) के वे अध्यक्ष रहे।साल 1994-95 में मध्यप्रदेश कांग्रेस के उपाध्यक्ष चुने गए। साल 1999 में मध्यप्रदेश सरकार में परिवहन मंत्री और साल 1993 से 2001 तक मध्य प्रदेश हाउसिंग बोर्ड के डायरेक्टर की जिम्मेदारी भूपेश बघेल ने संभाली।साल 2000 में जब छत्तीसगढ़ राज्य बना और कांग्रेस की सरकार बनी तब जोगी सरकार में वे कैबिनेट मंत्री रहे। 2003 में कांग्रेस जब सत्ता से बाहर हुई तो भूपेश को विपक्ष का उपनेता बनाया गया। साल 2003 में हुए विधानसभा चुनाव में पाटन से उन्होंने जीत दर्ज की। 2008 में बीजेपी के विजय बघेल से भूपेश चुनाव हार गए। फिर साल 2013 में पाटन से उन्होंने जीत दर्ज की। 2014 में उन्हें छत्तीसगढ़ कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया। अब 2018 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने ऐतिहासिक जीत दर्ज की। तेज तर्रार राजनीति और बेबाक अंदाज के लिए पूरे छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल जाने जाते हैं।

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