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“फेडरेशन” को नजरअंदाज कर “महासंघ” से वार्ता क्यों की सरकार ने…पढ़िये पूरी खबर कैसे हुई कर्मचारी-अधिकारी महासंघ की इंट्री….दो दिन में बदल गयी पूरी प्लानिंग … पढ़िये इनडेप्थ स्टोरी

रायपुर 14 अगस्त 2022। 5 दिनो की हड़ताल कर्मचारी-अधिकारी फेडरेशन ने की…..22 अगस्त से अनिश्चितकालीन हड़ताल की घोषणा कर्मचारी अधिकारी फेडरेशन ने की….तो फिर आखिर ऐसा किया हुआ कि कर्मचारी अधिकारी फेडरेशन के बजाय मुख्यमंत्री ने वार्ता के लिए कर्मचारी-अधिकारी महासंघ (अनिल शुक्ला) को बुला लिया। 80 से ज्यादा कर्मचारी अधिकारी संगठनों के साथ आंकड़ा बल कर्मचारी अधिकारी फेडरेशन के साथ है, बावजूद चंद संगठनों के साथ मिलकर बना कर्मचारी अधिकारी महासंघ के साथ DA-HRA पर सहमति क्यों बनी? इसकी चर्चा हर तरफ है। दरअसल देखा जाये तो इसकी पृष्ठभूमि पिछले कई दिनों से बन रही थी।

ताकतवर फेडरेशन को नजरअंदाज कर महासंघ से वार्ता को लेकर साफ वजह थी 5 दिवसीय हड़ताल को लेकर मुख्यमंत्री की नाराजगी और दूसरी तरफ फेडरेशन की 34% को लेकर हठधर्मिता। मुख्यमंत्री कर्मचारी अधिकारी फेडरेशन के रूख से बहुत नाराज थे। कर्मचारियों-अधिकारियों ने विधानसभा सत्र के दौरान हड़ताल की थी, जिसकी वजह से सरकार को विपक्ष की फजीहत भी सदन में झेलनी पड़ी थी। लिहाजा काम में कई तरह की बाधाएं आने के बावजूद मुख्यमंत्री ने हड़ताल के दौरान हड़तालियों को एक बार भी वार्ता के लिए नहीं बुलाया। दूसरी बात दो बार की वार्ता में भी फेडरेशन 34% से पीछे हटने को तैयार नहीं था।

लिहाजा सरकार महंगाई भत्ता के मुद्दे पर सहमति बनाने के लिए साफ्ट कार्नर की तलाश कर रही थी, जिनसे सहमति के आसार आसानी से बन जाये। लिहाजा जब मुख्यमंत्री के आह्वान के बाद सचिव स्तर की वार्ता हुई तो सबसे पहले उन तीन संगठन टीचर्स एसोसिएशन, शालेय शिक्षक संघ और नवीन शिक्षक संघ को बुलाया गया। बातचीत के दौरान उन्होंने भी साफ कहा कि उन्हें केंद्र के बराबर 34 प्रतिशत ही महंगाई भत्ता चाहिये। लिहाजा सचिव स्तर के अधिकारियों को जो फिडबैक मिला वो सहमति की तरफ इशारा नहीं कर रहा था। उसी शाम कर्मचारी-अधिकारी फेडरेशन के प्रांतीय संयोजक कमल वर्मा की अगुवाई में फेडरेशन के प्रतिनिधिमंडल को भी बुलाया गया। बातचीत के दौरान कर्मचारी अधिकारी फेडरेशन का रूख काफी कड़ा था, वो केंद्र के बराबर महंगाई भत्ता से कम के मुद्दे पर नहीं मानने की दो टूक बातें कह चुके थे।

इसी बीच बड़ी रणनीति के तहत कर्मचारी अधिकारी महासंघ ने एक ज्ञापन मुख्य सचिव अमिताभ जैन को दिया और उनसे अनुरोध किया कि उन्हें वार्ता के लिए आमंत्रित किया जाना चाहिये। मुख्य सचिव के निर्देश पर कर्मचारी अधिकारी महासंघ को पहले दौर की बातचीत के लिए बुलाया गया। यही से गेम पलट गया। कर्मचारी अधिकारी महासंघ पूरे हड़ताल में तटस्थ रहा और महंगाई भत्ता के मुद्दे पर वो हठधर्मिता भी नहीं दिखा रहा था। सचिव स्तर के अधिकारियों को ये बातें जम गयी। और फिर यहीं से कर्मचारी अधिकारी फेडरेशन को दरकिनार कर कर्मचारी अधिकारी महासंघ के साथ सहमति के रास्ते पर वर्किंग शुरू हुई।

हालांकि कर्मचारी –अधिकारी फेडरेशन के साथ 80 से ज्यादा संगठन थे, लिहाजा अधिकारी फेडरेशन को पूरी तरह से नजरअंदाज करने का फैसला भी नहीं ले रहे थे। लिहाजा एक रणनीति के तहत GAD  के सचिव स्तर के अधिकारियों ने दूसरे दौर की वार्ता के लिए कर्मचारी अधिकारी फेडरेशन को बुलाया। इस दौरान वार्ता को लेकर अलग-अलग प्रस्ताव दिये गये, लेकिन फेडरेशन का रूख पहले दौर की वार्ता के अनुरूप ही रहा। वार्ता काफी गुपचुप रखी गयी, ताकि इसकी भनक दूसरे गुट के नेताओं ना हो। अधिकारी को जब ये लग गया कि फेडरेशन 34 प्रतिशत से कम पर नहीं मानेगा, तो फिर कर्मचारी-अधिकारी महासंघ को आज आमंत्रित किया गया और फिर मुख्यमंत्री से मिलवाकर 6 प्रतिशत पर महंगाई भत्ता की मांगे मनवा ली।

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