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सूचना का अधिकार: खत्म हो जाएगा सबसे महत्वपूर्ण प्रावधान

लेखक- नितिन सिंघवी

“जानिये आपना सूचना का आधिकार”

वन्यजीव एंव पर्यावरण प्रेमी और पुस्तक के लेखक है

रायपुर 10 अगस्त 2023। चालू संसद में लोकसभा के बाद, राज्यसभा ने 9 अगस्त को “डिजिटल पर्सनल डाटा प्रोटक्शन बिल, 2023” पास कर दिया है। राष्ट्रपति की मंजूरी मिलने उपरांत यह कानून बन जाएगा।

इस बिल के माध्यम से सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 के एक महत्वपूर्ण प्रावधान को समाप्त किया जा रहा है। डाटा प्रोटक्शन बिल में सूचना का अधिकार अधिनियम की धारा 8(1)(जे) को सब्सीट्यूट (प्रतिस्थापित) किया जा रहा है।

जानिए कौन सा प्रावधान खत्म हो जाएगा

वर्तमान में सूचना का अधिकार अधिनियम की धारा 8(1)(जे) निम्नानुसार है:-
इस अधिनियम के अंतर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी, किसी नागरिक को निम्नलिखित सूचना देने की बाध्यता नहीं होगी – सूचना, जो व्यक्तिगत सूचना से संबंधित है, जिसका प्रकटन किसी लोक क्रियाकलाप या हित से संबंध नहीं रखता है या जिससे व्यष्टि की एकांतता पर अनावश्यक अतिक्रमण होगा, जब तक कि, यथास्थिति, केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी या राज्य लोक सूचना अधिकारी या अपील प्राधिकारी का यह समाधान नहीं हो जाता है कि ऐसी सूचना का प्रकटन विस्तृत लोक हित में न्यायोचित है:
परंतु ऐसी सूचना के लिए, जिसको, यथास्थिति, संसद या किसी विधान-मंडल को देने से इंकार नहीं किया जा सकता है, किसी व्यक्ति को इंकार नहीं किया जा सकेगा।

नए प्रावधान की धारा 8(1)(जे)

इस अधिनियम के अंतर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी, किसी नागरिक को निम्नलिखित सूचना देने की बाध्यता नहीं होगी – सूचना, जो व्यक्तिगत सूचना से संबंधित है;

क्या है मतलब वर्तमान प्रावधान का और क्या होगा बाद में

वर्तमान प्रावधान को इन शब्दों में समझा जा सकता है:-

(अ) उपधारा कहीं भी यह प्रावधानित नहीं करती कि व्यक्तिगत सूचनाऐं नहीं दी जानी है, सिर्फ ऐसी सूचनाएं नहीं दी जानी है जो कि व्यक्तिगत है और जिनका किसी लोक क्रियाकलाप या लोकहित से कोई संबन्ध नहीं हो परन्तु ऐसी सूचनाएं जो व्यक्तिगत है और जिनका किसी लोक क्रियाकलाप या लोकहित से कोई संबन्ध नहीं भी है, तो भी दी जा सकेगी अगर जन सूचना अधिकारी या अपीलीय अधिकारी को इस बात की संतुष्टि या समाधान हो जाता है कि विस्तृत लोकहित में सूचना देना न्यायोचित है। इसका आशय यह है कि एैसी व्यक्तिगत सूचनाएं जिनका लोक क्रियाकलाप से या लोकहित से संबंध है, दी जानी हैं।
या
(ब) ऐसी व्यक्तिगत सूचनाएं नहीं दी जानी है जिससे व्यक्ति की स्वतंत्रता पर ‘अनावश्यक’ अतिक्रमण होगा
परन्तु व्यक्ति की स्वतंत्रता पर ‘अनावश्यक’ अतिक्रमण करने वाली सूचनाएं दी जा सकती है अगर जन सूचना अधिकारी या अपीलीय अधिकारी को इस बात की संतुष्टि या समाधान हो जाता है कि विस्तृत लोकहित में सूचना देना न्यायोचित है।
(स) उपधारा के इस खण्ड के नीचे परन्तुक में प्रावधानित किया गया है कि जो सूचना संसद या विधान सभा को देने से मना नहीं किया जा सकता, वो सूचना देने से नागरिक को भी मना नहीं किया जा सकता।

उदाहरण के लिए वर्तमान प्रावधान को ऐसे समझा जा सकता है कि एक अधिकारी कितने दिन की छुट्टी पर गया? इस जानकारी का संबंध उसकी लोक क्रियाकलाप या लोकहित से है। परंतु वह अधिकारी छुट्टी में कहां-कहां गया? यह उसकी निजता से संबंधित रहता है और कई बार इस निजता के उजागर होने से उसकी स्वतंत्रता पर अनावश्यक अतिक्रमण होगा। परंतु अगर जन सूचना अधिकारी या अपीलीय अधिकारी को लगता है कि यह सूचना प्रदाय करने में विस्तृत लोकहित है तो वह इसे प्रदाय कर सकता है। इस उपधारा को टेस्ट करने का भी तरीका वर्तमान के प्रावधान में दिया हुआ है कि ऐसी सूचना जो लोकसभा या विधानसभा को देने से मना नहीं किया जा सकता नागरिक को देने से भी मना नहीं किया जा सकता।

नए प्रावधान में सिर्फ इतना लिखा हुआ है कि वह सूचना नहीं देनी है जो कि व्यक्तिगत सूचना से संबंधित है। अब अगर अधिकारी की छुट्टी की जानकारी मांगी जावेगी तो भी यह कहा जा सकता है कि यह उसकी व्यक्तिगत जानकारी है। व्यक्तिगत जानकारी बहुत ही व्यापक अर्थ वाला शब्द है तथा प्रत्येक निर्णय में इसका मतलब अलग-अलग तरीके से निकाला जा सकेगा। लेखक की व्यक्तिगत राय में नए प्रावधान से लिटिगेशन बढ़ेगा, सूचना आयोग में अपील और शिकायतों की संख्या बढ़ेगी और इसी प्रकार उच्च न्यायालय में भी याचिका की संख्या बढ़ेगी। यह तब तक होते रहेगा जब तक के इस व्यक्तिगत सूचना को सर्वोच्च न्यायालय परिभाषित ना कर दे। यद्यपि डाटा प्रोटक्शन एक्ट के माध्यम से भी व्यक्तिगत सूचना ली जा सकेगी परंतु वह उतना सरल नहीं होगा जितना सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत परिभाषित व्यक्तिगत सूचना प्राप्त करना है।

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