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खबर पक्की है : आपसी लड़ाई में खुली प्रतिनियुक्ति के खेल की पोल पट्टी

रायपुर 13 फरवरी 2022।

नए शिक्षकों की पोस्टिंग के मामले के साथ-साथ आत्मानंद अंग्रेजी माध्यम स्कूल में प्रतिनियुक्ति का मामला भी गरम है क्योंकि सारे नियमों को ताक पर रखकर हिंदी माध्यम के शिक्षकों को भी दूसरे जिले से लाकर प्रतिनियुक्ति में बैठा दिया गया है ऐसे में जैसे ही इस बात की भनक स्कूल शिक्षा विभाग के प्रमुख सचिव को लगी उन्होंने मामले से जुड़े सारे दस्तावेज मंगा लिए हैं और जानकारों का कहना है कि इस मामले में भी जो कुछ सामने आएगा वह चौंकाने वाला होगा लेकिन इसकी जद में अधिकारी कितना आएंगे और उन पर कार्रवाई कितना होगा यह देखने वाला मामला होगा क्योंकि सारी जिम्मेदारी इसमें कलेक्टर की थी और उन्होंने अपने मातहतों को इसकी जिम्मेदारी दी थी । इधर अब इस मामले में सबसे ज्यादा चिंतित वह शिक्षक हैं जो अन्य जिले से प्रतिनियुक्ति में अंग्रेजी माध्यम स्कूलों में आ गए हैं क्योंकि उन्हें भी यह बात समझ में आ गई है कि यदि गाज गिरेगी तो सबसे पहले उनका प्रतिनियुक्ति निरस्त होगा और ऐसी स्थिति में “लौट कर बुद्धू घर को आए” वाली स्थिति उनके लिए निर्मित होना तय है ।

प्रमोशन ने बिगाड़ा संगठनों का सारा खेल

सरकार ने प्रमोशन की घोषणा कर एक तीर से कई शिकार कर दिए हैं हालत यह है कि जिस संगठन ने सरकार को सबसे अधिक संकट में डाला था वह प्रमोशन की घोषणा होने के बाद से ही सबसे अधिक खतरे में है क्योंकि जिन पदाधिकारियों ने मंच से चीख चीखकर दावा किया था कि वह वेतन विसंगति दूर होने तक प्रमोशन नहीं लेंगे प्रमोशन की घोषणा होते ही लाइन में सबसे पहले वही नजर आए और तो और यह बोलने में भी देरी नहीं लगाई की प्रमोशन न लेने की घोषणा प्रदेश अध्यक्ष ने की थी और वह प्रमोशन नहीं लेंगे हमने ऐसी कोई घोषणा नहीं की थी । इधर स्थानांतरण में वरिष्ठता समेत कई अन्य मसलो को लेकर भी प्रदेश अध्यक्ष जूझते हुए नजर आ रहे हैं क्योंकि किसका साथ दें और किसका न, यह उन्हें भी समझ में नहीं आ रहा है और ऐसे में उनके सिर्फ पदाधिकारी भी उन्हें ठेंगा दिखाने से बाज नहीं आ रहे हैं और उनके पदाधिकारियों को लपकने के लिए वही संगठन तैयार बैठे हैं जिन्हें जिन्हें आंदोलन के दौरान जमकर बेइज्जत किया गया था अब जब मामला सूद समेत बदला लेने का है तो फिर अन्य संगठन चुकेंगे क्यों ???

फिर तेरी कहानी याद आई ???

पंचायत विभाग में रहने के दौरान शासन ने शिक्षाकर्मियों के लिए प्रधान पाठक बनने की व्यवस्था की थी लेकिन एक दूसरे का पैर खींचने में महारत हासिल कर चुके शिक्षाकर्मियों ने ऐसा विध्वंस मचाया कि बलौदाबाजार और रायगढ़ को छोड़कर अन्य किसी भी जिले में प्रधान पाठक के पद पर पदोन्नति नहीं हो सकी बताते हैं कि उस समय भी कुछ संगठनों ने ही अपने निचले स्तर के पदाधिकारियों को आगे करके खेल खेल दिया था और इस बार भी कुछ ऐसा ही हुआ है न्यायालय तक शिक्षाकर्मियों को पहुंचाने में सारी भूमिका कुछ संगठनों के पदाधिकारियों की ही है जिन्होंने शिक्षाकर्मियों को न्यायालय जाने के नाम पर जमकर भड़काया और अंत में एक-एक कर सारे पदों पर स्टे लग गया और पदोन्नति की बाट जोह रहे सारे शिक्षक देखते रह गए, इधर जिन्होंने प्रमोशन पर स्टे लगाया है वह अब शिक्षक साथियों को विलेन नजर आ रहे हैं ऐसे में आने वाले दिनों में इस बात का खुलासा हो जाए कि इस खेल के पीछे का सबसे बड़ा खिलाड़ी कौन था तो वह भी हैरत में डालने वाला नहीं होगा ।

न्यायालय के नाम पर जमकर वसूली!

बताते हैं कि प्रमोशन के नाम पर भी कुछ स्थानीय नेताओं ने जमकर वसूली की है पहले उन्होंने शिक्षकों को उनके हक के लिए न्यायालय जाने के नाम पर भड़काया और फिर नेतृत्व देने के नाम पर जमकर वसूली की यहां तक कि आने जाने का खर्चा तक वसूल लिया और ले जाकर सौंप दिया मामला वकील के हाथों में , बाद में जब शिक्षकों को मामला समझ में आया तब तक पूरा खेल हो चुका था अब वही शिक्षक बताते फिर रहे हैं की भावना में बहाकर किस प्रकार उनके साथ ठगी की गई है और किस प्रकार चंदा वसूली की गई है । जब भी कोई मुद्दा शिक्षकों का सामने आता है तो कुछ खास प्रकार के नेता विशेष तौर पर एक्टिव हो जाते हैं शिक्षकों को न्यायालय पहुंचाने के नाम पर भले ही उनका खुद इस मामले से कोई लेना-देना हो या न हो , सूत्र बताते हैं कि शिक्षक केस हारे या जीते लेकिन यह नेता हमेशा जीत जाते हैं क्योंकि इनकी झोली भरना तय है ।

आखिर क्यों है शिक्षा विभाग इतना चर्चा में

प्रदेश में यूं तो दर्जनों विभाग हैं जिनमें कारनामे भी एक से एक होते हैं लेकिन शिक्षा विभाग एक ऐसा महकमा बन गया है कि यदि वहां कोई छींक भी दे तो उसकी भी जानकारी वायरल होने में देरी नहीं लगती और यही वजह है कि आए दिन शिक्षा विभाग की खबरें अखबारों की सुर्खियां बन रही है अधिकांश मामलों की खबर शिक्षक ही मीडिया तक पहुंचा रहे हैं और जिस भी मामले में किसी एक शिक्षक का काम नहीं सध पाता है वह पूरे सबूत के साथ दूसरे शिक्षक की पोल पट्टी खोल देता है यही वर्तमान में शिक्षा जगत की हकीकत है । मामला चाहे पोस्टिंग या प्रतिनियुक्ति का हो ट्रांसफर का हो या प्रमोशन का, सभी मामलों में ऐसा ही हो रहा है , स्वयं स्तंभकार के पास ढेरों शिकायतें शिक्षक पहुंचा रहे हैं ऐसे में दो की लड़ाई में तीसरे का फायदा कहना गलत न होगा ।

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आखिर में ये सवाल जरूरी है:-

1. प्रिंसिपल पद पर प्रमोशन न होने से नाराज किस शिक्षक नेता ने पर्दे के पीछे से पदोन्नति को बाधित करने का खेल खेल दिया ?

2. आखिर प्रमोशन के मामले में स्कूल शिक्षा विभाग ने हाइकोर्ट में कैविएट दाखिल क्यो नही किया था जबकि पता था कि केस हाइकोर्ट में लगेंगे ही ?

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