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खबर पक्की है : गुगली पर हो गये क्लीन बोल्ड…रणछोड़ नेताजी….गई भर्ती पानी में …. और फिर नो इंट्री… पढ़िये आज की पक्की खबर

रायपुर 3 अप्रैल 2022। खबर पक्की है NW न्यूज 24 का लोकप्रिय साप्ताहिक स्तंभ है। इस स्तंभ का मकसद शिक्षक व कर्मचारी जगत की उन खबरों को आपके सामने लाना, जो गंभीर होते हुए भी आपसे छूट जाती है। आपके पास भी कोई अगर दिलचस्प व गंभीर खबर है तो हमें जरूर साक्ष्य के साथ भेजें। उसे हम अपने स्तर से जांच कर जरूर आपके बीच पहुंचाने की कोशिश करेंगे।

गुगली से क्लीन बोल्ड

प्रदेश में कर्मचारियों की सियासत हरेक की समझ से बाहर हैं। एक मोर्चे पर साथ आने वाले संगठन, कब दूसरे मोर्चे पर दूर हो जा रहे हैं, पता ही नहीं चल रहा है। इधर रस्साकशी और खींचतान इतने जोरों पर है कि राजनीतिक दल भी इनके दांवपेच के आगे कुछ नहीं है। ऐसे ही मामले में एक बात निकलकर सामने आ रही है कि फेडरेशन की मुख्यमंत्री से होने वाली मुलाकात को टलवाने में एक शिक्षक नेता का ही हाथ है। हालांकि इसमें कितनी सच्चाई है यह तो कोई नहीं जानता लेकिन दबी जुबान यह कहा जा रहा है की अपने साथ दुर्व्यवहार का नेताजी ने बदला ले लिया है।

अनुकम्पा पीड़ितों को नो एंट्री

सम्मेलन में सब कुछ अच्छा हुआ हो, ऐसा नहीं है। कुछ बुरा भी हुआ, जिसमें अनुकंपा पीड़ित संघ की प्रदेश अध्यक्ष और उनकी कुछ महिला साथियों की इंडोर स्टेडियम में एंट्री नहीं हो सकी। दरअसल ग्रुप में पहुंची इन महिलाओं को पुलिस ने पहचान कर स्टेडियम के बाहर ही रोक दिया। ऐसा नहीं है कि इनके अंदर जाने के लिए सम्मेलन के आयोजक नेताओं ने प्रयास नहीं किया, लेकिन ऊपर से ही रोक की बात निकलकर सामने आ गई, जिसके बाद इनकी एंट्री अंदर नहीं हो सकी। हालांकि अनुकंपा पीड़ित संघ की कई महिलाएं व्यक्तिगत रूप से कार्यक्रम में पहुंच गई थी और उन्होंने पूरा कार्यक्रम देखा भी और अपनी टीम को रिपोर्ट भी की। इधर गुस्से में महिला प्रदेश अध्यक्ष ने मोर्चा की एक संयोजक को फोन करके यह धमकी भी दे दी कि वो संसदीय सचिव से लेकर अन्य प्रदेश अध्यक्ष को लपेट लेगी और उसके कुछ देर बाद उस संयोजक के पास कुछ पत्रकारों के फोन भी पहुंचे, लेकिन सवाल पूछने वाले को तर्क के साथ निरुत्तर कर देने वाले शिक्षक नेता ने ऐसा जवाब दिया कि किसी भी मीडिया में यह खबर बनी ही नहीं और इससे सबसे ज्यादा राहत उन दो नेताओं ने महसूस की होगी, जिन्होंने पिछली बार अनुकंपा नियुक्ति न मिलने का दंश झेल रही महिलाओं का प्रकोप झेला था।

रणछोड़ नेताजी

प्रदेश में एक ऐसे भी शिक्षक नेता हैं जो कब यू-टर्न मार ले कोई भरोसा नहीं है। इसके साथ ही साथ उनको व्हाट्सएप ग्रुप तैयार करने में भी महारत हासिल है। फेडरेशन को उन्होंने ही ब्लॉक और संकुल का व्हाट्सएप ग्रुप बना बना कर खड़ा किया था, लेकिन फिर वहां से बेदखल कर दिए गए। उसके बाद अभी कुछ समय पहले स्थानांतरित शिक्षकों के मुद्दे को उन्होंने हाथ में ले लिया और वहां भी 28 से 30 ग्रुप बना दिए और उसके बाद जब मुद्दा उनके हाथ से निकल गया तो बड़ी सफाई से सब ग्रुप से लेफ्ट हो गए। अब ग्रुप में बचे शिक्षक पूछ रहे हैं कि आखिर यह रणछोड़दास नेता कब सुधरेंगे ?

गई भर्ती पानी में

प्रदेश में शिक्षकों की भर्ती हो रही है आज से नहीं 2019 से और 2022 तक भी लगभग आधी भर्ती बची हुई है। तो ऐसे में वह तमाम नेतृत्वकर्ता कहां गए, जिन्होंने भर्ती का बीड़ा उठाया था। बताते हैं कि उनका काम बन चुका है एक दो व्याख्याता की नौकरी पा चुके हैं और अब उनको आवाज उठाने में परिवीक्षा अवधि के दौरान होने वाली कार्रवाई का डर सता रहा है। वही एक तो आत्मानंद अंग्रेजी माध्यम स्कूल का हिस्सा हो चुके हैं। ऐसे में आवाज उठाए तो उठाए कौन ? दरअसल जिनकी नौकरी लग गई , वो अब सिर्फ और सिर्फ अपने पर ध्यान दे रहे हैं और जिन को नौकरी नहीं मिली वो सियासत सीख ही नहीं सके तो उनकी आवाज उठाए कौन ?

सम्मेलन की सियासत

शिक्षकों का सम्मेलन ऐतिहासिक रहा। खास तौर पर 2018 का जो कटु अनुभव था, उसको इस सम्मेलन ने हमेशा हमेशा के लिए मिटा दिया। लेकिन ऐसा नहीं है कि इस सम्मेलन से हर कोई खुश है। कुछ ऐसे भी हैं जिन का दर्द कोई समझ नहीं रहा। ये वो हैं जिन्होंने सम्मेलन को असफल बनाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी थी और लगातार मैसेज वायरल करवाया गया कि जब तक “हमारी समस्या” दूर नहीं तब तक सम्मेलन मंजूर नहीं, लेकिन इस बार कहानी कुछ और रही। सबसे बड़ी बात इस सम्मेलन में युवा शिक्षक बड़ी तादाद में नजर आए। साथ ही पंचायत कर्मचारियों को सम्मेलन में शामिल करना जो तुरुप का इक्का साबित हुआ। जब हमने भी यह खबर छापी कि स्टेडियम लगभग 1 घंटे पहले फुल हो गया है तो बहुत सारे लोगों ने स्तंभकार को ही खाली कुर्सियों के फोटो भेज कर यह आरोप लगाया कि आप गलत खबर प्रसारित कर रहे हैं, लेकिन फिर जब लाइव वीडियो चालू हुआ तो व्हाट्सएप भेजने वालों के पास मुंह छुपाने के लिए भी जगह नहीं थी। सारा दूध का दूध पानी का पानी हो गया, क्योंकि सच्चाई यह है कि स्टेडियम में खड़े होने तक की जगह नहीं थी। यहां तक कि कुछ महिला पदाधिकारियों को जमीन पर बैठना पड़ा और बाहर भी बहुत से लोगों को अंदर आने के लिए जद्दोजहद करना पड़ा। उसके बाद भी एंट्री नहीं हो सकी कुल मिलाकर कार्यक्रम को बर्बाद करने की कोशिश करने वालों के मंसूबे पर पानी फिर गया कहें तो गलत नहीं होगा ।

मुलाकात पर चुटकी

एक विशेष वर्ग की मांग लेकर बने संगठन पर अब उनके ही लोग यह पूछने लगे हैं कि क्या सचमुच में ऐसा होगा ।दरअसल कार्यक्रम की घोषणा जोर शोर से होती है। प्रदेश के हर ग्रुप में मैसेज भी पहुंच जाता है और कार्यक्रम होने के ठीक पहले कार्यक्रम स्थगित हो जाता है। यह हड़ताल वाले मामले में भी हुआ और अब मुख्यमंत्री से मुलाकात वाले मामले में भी, इसे देखते हुए अधिकारियों के साथ होने वाली बैठक की खबर जब वायरल हुई तो कुछ लोग चुटकी लेने लगे कि ऐसा तो नहीं है कि मुलाकात से 1 दिन पहले फिर खबर आ जाएगी कि अपरिहार्य कारणों से अधिकारियों से होने वाली मुलाकात कैंसिल हो गई है। दरअसल संगठन के पदाधिकारियों को इस पर ध्यान देना चाहिए कि जो कार्यक्रम बनाए वह इंप्लीमेंट होना चाहिए, क्योंकि सवाल विश्वसनीयता का है और काठ की हांडी बार-बार नहीं चढ़ती ।

ये सवाल जरूरी है

सवाल :- 1) इनडोर स्टेडियम में हुए सम्मेलन से सबसे अधिक लाभ किस संगठन को हुआ है ?

2) सम्मेलन में जब मोर्चा बनाकर मुख्यमंत्री से मुलाकात हो गई तो अब मोर्चा के हिस्सेदार संगठन के मुख्य मुख्यमंत्री से अलग-अलग मुलाकात का प्रयास क्यों कर रहे हैं, कहीं कोई छुपा हुआ एजेंडा तो नहीं ?

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