शिक्षक/कर्मचारी

खबर पक्की है: नहले पे दहला

ये nw न्यूज 24 का सप्ताहिक कॉलम है। इस कॉलम में कर्मचारियों/शिक्षकों से जुड़ी अंदर की खबरें आपको मिलेगी। इस कॉलम का मकसद उन खबरों को आप तक पहुंचाना है, जिसका सरोकार आपसे है, लेकिन वो सामने आ नहीं पाती …

पुरानी पेंशन बहाली के लिए एक कर्मचारी नेता जी लंबे समय से मशक्कत करते आ रहे थे लेकिन सही नियत और रणनीति न होने के चलते सफलता से कोसों दूर रह गए । पहले उनके तौर-तरीके को देखकर शिक्षा विभाग के कुछ नेताओं ने अपना अलग धड़ा बना लिया और भीड़ जुटा ली और उसके बाद शिक्षा विभाग के अन्य नेताओं को उन्होंने अपने साथ जोड़ा तो उनके साथ भी दगाबाजी कर दी , पहले खुद प्रेस कॉन्फ्रेंस करके एलान कर दिया प्रदर्शन का और फिर अपने ही कुछ लोगों के दबाव में अगले दिन ही फिर पलट गए यह सब उनके साथ जुड़े शिक्षक नेताओं को इतना नागवार गुजरा कि उन्होंने बिना प्रतिक्रिया दिए पूरी बाजी ही पलट दी । इधर नेताजी रोज अपना बयान बदलते रहे और इधर शिक्षा विभाग के युवा शिक्षक नेता ने ऐसा खेल खेला की राजधानी के कलेक्ट्रेट गार्डन से लेकर विधानसभा तक की हर तस्वीर में केवल वह और उनके साथी ही नजर आए , उन्हें शिक्षा विभाग के एक और वरिष्ठ शिक्षक नेता का भी साथ मिल गया है जिनका संघर्ष बरसों का है अब देखना है दोनों मिलकर क्या गुल खिलाते हैं ।

पुरानी पेंशन पुराने शिक्षाकर्मियों की बढ़ा सकती है टेंशन!

प्रदेश में पुरानी पेंशन बहाली की घोषणा हो गई है और इसे लेकर सभी कर्मचारी दलों में खुशी भी है लेकिन 1998 से संघर्ष कर रहे शिक्षाकर्मियों में एक अनजाना सा भय व्याप्त हो गया है और यह है उनकी पुरानी सेवा की गणना । दरअसल 20 सालों के लंबे संघर्ष के बाद 2018 में उनका संविलियन हुआ है और आदेश में भी पूर्व सेवा की गणना से साफ इंकार कर दिया गया है , छत्तीसगढ़ के कर्मचारी नेताओं ने आनन-फानन में सारी शर्तें स्वीकार भी कर ली और मध्यप्रदेश में संघर्षों का दौर जारी रहा ऐसे में यहां के शिक्षाकर्मियों की पूर्व की सेवा की काउंटिंग हुई ही नहीं है और वही अब पुरानी पेंशन के लिए भी पेंच फंस सकता है । विभागीय सूत्रों के अनुसार सबसे अधिक तकलीफ जनगणना वाले कर्मचारियों को होने जा रही है क्योंकि वह रिटायरमेंट के करीब है ऐसे में 10 साल से कम सेवा अवधि वाले कर्मचारियों को ज्यादा बड़ा लाभ मिलने की गुंजाइश नहीं है हालांकि यह एनपीएस से तो भी बेहतर होगा । सबसे अधिक लाभ में 2019- 2020 में संविलियन पाने वाले शिक्षक रहेंगे क्योंकि लगभग सभी की सेवा कम से कम 25 से 30 साल बची हुई है और फिर 2019 में सीधी भर्ती आए शिक्षकों का तो कहना ही क्या… उनका तो पूरा बल्ले ही बल्ले हैं ।

अनुकंपा नियुक्ति में झोलझाल!

सरकार ने कैबिनेट बैठक में निर्णय करके एक बड़ा प्रस्ताव पास किया जिससे 10% की बाध्यता वाले बंधन को हटाकर अनुकंपा नौकरी दी जा सके लेकिन स्कूल शिक्षा विभाग के अधिकारियों ने आपदा में अवसर तलाशते हुए बड़ा खेल खेल दिया है सूत्र बताते हैं कि कई जिलों में यह खेल हुआ है जिसमें न्यायधानी और संस्कारधानी प्रमुख है और दोनों ही जगह मामले भी उजागर हो रहे हैं । न्यायधानी में तो फर्जी अनुकंपा नियुक्ति मामलों की संख्या डेढ़ दर्जन से भी अधिक बताई जा रही है और तत्कालीन प्रभारी डीईओ की बलि भी चढ़ चुकी है फिलहाल वह निलंबित है वही संस्कारधानी में भी मामला गरमा चुका है । बताते हैं कि सही तरीके से जांच हो तो विभाग के पैरों तले जमीन भी खिसक सकती है । आरटीआई एक्टिविस्ट और मीडिया के जरिए लगातार मामले सामने आ रहे हैं ऐसे में भी उच्च कार्यालय की चुप्पी समझ से परे है बेहतर यह होगा कि विभाग खुद जांच करा ले वरना शिकायतों का दौर तो जारी ही है और खुलासे हर दिन हो रहे हैं । ऐसे न्यायधानी के सूत्रधार बाबू पर भी गाज गिरना तय है बस देखना यह है कि आदेश कब जारी होता है ।

नेताजी क्यों पड़े अकेले !

रायगढ़ जिले में शिक्षक नेता निलंबित हो गए, आरोप लगा – सरकार की महत्वकांक्षी योजना के खिलाफ राजनीतिक दल के प्रचार प्रसार में शामिल होना । बताते हैं कि शिक्षक नेता पूर्व में भाजपा नेता के निज सचिव रहे हैं सो व्यवहार में वही गर्मी अभी भी मौजूद है । अधिकारियों को मौखिक निर्देश यू देते हैं मानो सारा काम उन्हीं के मुताबिक होना चाहिए बस यही बात विभाग के स्थानीय अधिकारी और कर्मचारियों को नागवार गुजर रही थी और वह मौके की तलाश में थे मौका मिला तो मजबूत केस बनाकर निपटा दिया , बताते हैं कि विभाग ने उनके वीडियो को ऊपर भी पहुंचा दिया है ऐसे में नेता जी की मुसीबतें अभी कम नहीं होंगी ऐसा लग रहा है । बताते हैं कि नेताजी के जिले में उनके पुराने विरोधी लामबंद हो गए हैं और उनके पुराने कारनामों की फेहरिस्त भी उजागर होते जा रही है, मामला इतना गरम है की वहां के संगठन ने भी इसके विरोध में बिगुल फूंकना उचित नहीं समझा , वरना हाल फिलहाल निलंबित हुए एक नेता की महज 1 सप्ताह में बहाली सिर्फ और सिर्फ संगठन के दबाव में हुई थी ऐसे में इन के मामले में उनके संगठन की चुप्पी यह सवाल भी खड़े कर रही है कि कहीं प्रशासन की नाराजगी से बचने के लिए ही तो नहीं तमाम पदाधिकारियों ने अपने मुंह को सील कर रख लिया है।

टेबलेट के नाम पर फिर जेब गर्म करने का फार्मूला

स्कूलों में टेबलेट के नाम पर उपस्थिति का जिन्न एक बार फिर निकलने वाला है । एक बार फिर इसलिए क्योंकि पहले भी टेबलेट के नाम पर बड़ा खेल हो चुका है जिनकी जेब गर्म होनी थी उनकी जेबें गर्म हुई और फिर टेबलेट ठंडा पड़ गया , अब एक बार फिर टेबलेट को बंद कमरे से बाहर निकाला जा रहा है और आदेश के जरिए यह कहा गया है कि विभाग के पैसों को खर्च करके उसे बनवा लें ताकि फिर मॉनिटरिंग का खेल खेला जा सके दरअसल खेल मॉनिटरिंग का कम और जेब गर्म करने का ज्यादा है क्योंकि योजनाएं जितनी जल्दी बनती है उससे भी जल्दी ठंडे बस्ते में चली जाती है और उसका कारण किसी से छिपा नहीं है । बहरहाल टेबलेट बनाने का बिल तैयार होने वाला है हालांकि इससे स्कूल के कुछ मठाधीश खुश हैं कि जेब में कुछ पैसे तो आएंगे ।

ये तो भगवान से भी नहीं डरते हैं

स्वामी आत्मानंद अंग्रेजी माध्यम स्कूल सरकार की सबसे महत्वाकांक्षी योजनाओं में शामिल है लेकिन स्कूल बिल्डिंग और फर्नीचर का जो हाल है यदि एक बार सही तरीके से उसकी जांच हो जाए तो विश्वास मानिए कुछ लोगों के तत्काल निलंबन को कोई नहीं रोक पाएगा खास तौर पर न्यायधानी में तो जमकर खेल हुआ है । फर्नीचर के हालत 6 महीने में ऐसे हैं मानो बरसो पुराने हो , टूटे-फूटे फर्नीचर आपको हर स्कूल में मिल जाएंगे खास तौर पर वह आत्मानंद अंग्रेजी माध्यम स्कूल जो बाद में बने हैं , दीवारों में क्रैक भी आम है जिसे रंग रोगन करके ढकने की कोशिश की गई थी लेकिन वह फिर मुंह फाड़ कर सामने आ गए हैं । बची खुची कसर सारे नॉर्म्स को ताक पर रखकर हिंदी माध्यम के शिक्षकों की इन स्कूलों में नियुक्ति ने पूरी कर दी है । कुल मिलाकर पूरा मामला गड़बड़ है यही कारण है कि विधानसभा में भी इस विषय में जमकर सवाल लगे है ।

ये जवाब जरूरी है

सवाल 1) रायगढ़ के शिक्षक नेता ने क्या सचमुच मंच पर खड़े होकर सरकार की महत्वकांक्षी योजना के खिलाफ भाषण दिया था या आपसी साजिश के शिकार हो गए ?
सवाल 2) कोरोना काल माशिमं के लिए फायदे का सौदा रहा या घाटे का ?

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