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भू-जल स्तर बढ़ाने मुख्यमंत्री का दूरदर्शी फैसला ….वैज्ञानिक पद्धति से होगा नरवा का विकास..इस तरह से आयेगा भू-जल में बदलाव

रायपुर। “…जल है तो कल है” ….”पानी बिन सब सून”…..ये श्लोगन सिर्फ सरकारी पोस्टरों की शोभा नहीं, बल्कि छत्तीसगढ़ की भूपेश सरकार की सोच बन गयी है। पूरी दुनिया सिर्फ एक दिन 22 मार्च को पानी बचाने की सोचती है…लेकिन छत्तीसगढ़ की सरकार हर दिन इस पर चिंतन करती है, कार्ययोजना बनाती है और फिर उसे लागू करने की कोशिश करती है। जिस दिन से भूपेश बघेल ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली है, उसी दिन से उन्होंने ये नारा दिया है “ छत्तीसगढ़ के चार चिन्हारी, नरवा, गुरवा, घुरवा, बाड़ी”। सरकार ने अपना इसे ड्रीम प्रोजेक्ट माना और प्रदेश को कृषि आधारित अर्थव्यवस्था में ढालने की कोशिश की। छत्तीसगढ़ सरकार अपने इस मकसद में काफी हद तक कामयाब भी हुआ है।

छत्तीसगढ़ सरकार ने नरवा विकास को एक चुनौती के रूप में लिया है। सूखे नाले को फिर से आबाद करने के लिए राज्य सरकार अब वैज्ञानिक पद्धति का सहारा ले रही है। पिछले दिनों मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने एक बड़ी बैठक भी इस मुद्दे पर की थी, जिसमें उन्होंने मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा था कि नरवा विकास योजना के अंतर्गत नालों में जल संरक्षण एवं संवर्धन के किए जा रहे कार्यों को वैज्ञानिक पद्धति से किया जाए। नरवा विकास के कार्यों के फलस्वरुप जल स्तर में होने वाले सुधार का आंकलन भी वैज्ञानिक पद्धति से रिमोट सेंसिंग सैटलाइट के जरिए करने का राज्य सरकार ने फैसला लिया है। देश में ये पहला ऐसा प्रयोग होगा, जिसके जरिये ना सिर्फ भू जल स्तर को बढ़ाने की तैयारी की जायेगी। प्रदेश में जिन नालों का उपचार किया गया है, उन्हें दर्शाने वाले नक्शे भी तैयार करने को कहा गया है। राज्य सरकार ने इस बात का भी फैसला लिया है कि छत्तीसगढ़ का जो सैटेलाइनट नक्शा उपलब्ध है, उसमें जहां-जहां फ्रैक्चर हैं, जहां पर भू जल संवर्धन संरचनाएं तैयार की जायेगी, ताकि जल का भूमि में अच्छे ढंग से रिसाव हो सकेगा। मुख्यमंत्री ने नरवा उपचार के कार्यों से मिट्टी के क्षरण में आ रही कमी का आंकलन करने के भी निर्देश दिए है।

इस बात में कोई शक नहीं कि छत्तीसगढ़ सरकार की सुराजी गांव योजना नरवा, गरवा, घुरूवा और बाड़ी से गांव-गांव में रोजगार सहित आर्थिक गतिविधियों को अच्छी गति मिली है। इनमें खासकर जल संचयन तथा जैव और पर्यावरण सुधार में नरवा विकास योजना एक कारगर माध्यम साबित हो रहा है। राज्य में नरवा विकास के चलते नाला के आसपास के इलाको में भूजल स्तर में उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज हो रही है। इसके तहत मैदानी क्षेत्रों से भी अधिक वनांचल में नरवा विकास योजना से भू-जल स्तर में 20 से 30 सेंटीमीटर की वृद्धि के साथ उत्साहजनक परिणाम प्राप्त हो रहे हैं। इससे वनांचल में वन्य प्राणियों के रहवास में सुधार सहित निस्तारी तथा सिंचाई आदि सुविधाओं का भी लोगों को भरपूर लाभ मिलने लगा है।

जलस्तर  में हुई है वृद्धि

राज्य सरकार की नरवा विकास कार्यों ने रंग दिखाना भी शुरू कर दिया है। आंकड़े बताते हैं कि नरवा विकास के कार्यों से वन क्षेत्रों में भूमिगत जल के स्तर में 20 से 30 सेंटीमीटर और मैदानी क्षेत्रों में 7 सेंटीमीटर की वृद्धि हुई है। भू जल संवर्धन संरचनाओं के निर्माण के दौरान वहां की भूमि की किस्म का विशेष रूप से ध्यान रखा जा रहा है। रेतीली जगहों में डाइक वाल काफी उपयोगी हो रही है। मुख्यमंत्री ने पिछले दिनों विधानसभा वार दौरे के दौरान कई जिलों में भूजल स्तर में कमी पर चिंता भी जतायी थी। सूरजपुर में तो उन्होंने नरवा के लिए काम के लिए विशेष तौर पर निर्देश भी दिया था। ताकि गिरते भू जल के स्तऱ को बढ़ाया जा सके।

भूजल स्तर को बढ़ाने के लिए सभी का सहयोग

भूजल स्तर बढ़ाना प्रदेश के लिए बड़ी चुनौती है, लिहाजा मुख्यमंत्री इस नेक मकसद के लिए हर वर्ग के समर्थन का आह्वान किया है। मुख्यमंत्री ने कहा कि क्षेत्रों में नरवा विकास के कार्य किए जा रहे हैं, वहां ग्रामीणों और जनप्रतिनिधियों को कार्यक्रम से जोड़कर उन्हें इन कार्यों की उपयोगिता की जानकारी दी जाए, ताकि इस अभियान के मकसद को भी समझा जा सके और ग्रामीणों में इसे लेकर जागरूकता भी आ सके। मुख्यमंत्री ने अधिकारियों को इसे लेकर अधिकारियों को निर्देश भी दिया है कि हर 2 वर्ष में भू-जल संवर्धन स्ट्रक्चर, स्टॉप डेम, चेक डैम बांधों में डिसिल्टिंग का कार्य कराया जाए, इससे पानी का भराव अच्छा होगा और उनकी सिंचाई क्षमता भी बढ़ेगी। मुख्यमंत्री ने महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के तहत भी नालों के ट्रीटमेंट का कार्य कराने के निर्देश दिए हैं। उन्होंने कहा कि राजीव गांधी जल ग्रहण क्षेत्र विकास मिशन के तहत पूर्व में कराए गए भू जल संवर्धन और संरक्षण के कार्यों में यदि मरम्मत और जीर्णाद्धार के कार्य कराने की जरूरत है, तो उन्हें भी प्राथमिकता के तौर पर किया जाना चाहिए इससे कम लागत में भू जल संवर्धन का काम हो सकेगा। इसी तरह जल संसाधन विभाग के बांधों में डिसिल्टिंग और छोटे बांधों के रख-रखाव पर ध्यान दिया जाए। राज्य में लगभग 30 हजार बरसाती नालों को चिन्हांकित किया गया है, जिसमें से 8000 नाले राज्य के वन क्षेत्रों में स्थित हैं। वन क्षेत्रों में स्थित 6 हजार 395 नालों का उपचार 1 हजार 290 करोड़ रूपए की लागत राशि से कराया जा रहा है, जिसमें से अब तक लगभग 2 हजार 800 नालों का उपचार पूरा हो चुका है।

मुख्यमंत्री ने गिरते भू जल स्तर को लेकर चिंता जतायी

मुख्यमंत्री ने वाटर हार्वेस्टिंग को लेकर जागरूक होने को कहा…

मुख्यमंत्री ने कहा कि शहरी क्षेत्रों में वाटर रिचार्जिंग नहीं हो पा रहा है, जिसकी वजह से वाटर लेवल लगातार नीचे जा रहा है। उन्होंने कहा कि शहरी क्षेत्र में कंक्रीट के क्षेत्र ज्यादा है, बारिश का पानी अगर नीचे आता है तो कंक्रीट और ड्रेनेज सिस्टम की जवह से जमीन के अंदर पानी प्रवेश ही नहीं कर पाता है, जिसकी वजह से लगातार पानी का स्तर नीचे जा रहा है। मुख्यमंत्री ने कहा कि रायपुर शहर और धरसींवा, अभनपुर, मंदिर हसौद व आरंग के वाटर लेवल में आज के दौर में काफी अंतर आ गया है। ऐसा इसलिए क्योंकि धरसींवा, अभनपुर, आरंग और मंदिर हसौद जैसे इलाके में पानी गिरता है तो वो जमीन के अंदर जाता है, लेकिन शहरों में ऐसा नहीं होता। ग्रामीण स्तर पर वाटर रिचार्जिंग होता है, जबकि शहर में हम पानी को नीचे जाने ही नहीं दे रहे हैं। इसकी वजह से रायपुर शहर में 600-800 फीट में पानी मिल रहा है।

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