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नवरात्रि के समय इस मंदिर में महिलाओं की एंट्री पर होता है बैन, जानें क्या है इसकी वजह…

नालंदा 29 सितंबर 2022 : महिलाओं को देवी का रूप कहा जाता है। कहा जाता है जाता है जहां नारी की पूजा होती है वहां देवी का वास होता है। लेकिन बिहार के एक मंदिर में नवरात्रि के 9 दिनों में महिलाओं के प्रवेश पर पूरी तरह रोक रहता है। यह मंदिर बिहार के नालंदा में है। बताया जाता है कि घोसरावां गांव का यह मंदिर 350 साल पुराना है। कहा जाता है कि घोसरावां गांव में मां आशापुरी मंदिर में नवरात्र के दौरान तांत्रिक 9 दिनों तक सिद्धि पूजा करते हैं। इस दौरान मंदिर मे महिलाओं के प्रवेश पर पूरी तरह रोक रहता है। यहां मां दुर्गा की अष्टभुजी प्रतिमा स्थापित है जो मां दुर्गा के नौ रूपों में से एक सिद्धिदात्री स्वरूप में पूजित हैं।
गांव वालों का कहना है कि यहां सालों से यह मान्यता है। महिलाओं के प्रवेश से तांत्रिक का ध्यान भंग हो सकता है। यही वजह है कि महिलाओं के प्रवेश पर यहां रोक रहता है।

मंदिर के पुजारी पुरेंद्र उपाध्याय बताते हैं कि नवरात्रि के मौके पर मां आशापुरी मंदिर में विशेष तांत्रिक विधि से पूजा की जाती है। इसी कारण से महिलाओं का प्रवेश मंदिर परिसर और गर्भगृह में वर्जित रहता है।
पुरुषों के लिए भी गर्भगृह में जाने की पाबंदी है लेकिन मंदिर परिसर में पूजा अर्चना कर सकते हैं। सैकड़ों साल से चली आ रही परंपरा का लोग आज भी निर्वहन कर रहे हैं। नवरात्रि के मौके पर यहां तांत्रिक सिद्धि करते हैं।

इस मंदिर के गर्भगृह में अति प्राचीन पाल कालीन मां आशापुरी अष्टभुजा प्रतिमा है। इसकी स्थापना मगध साम्राज्य के पाल काल की मानी जाती है। मंदिर के पुजारियों के अनुसार, यहां सबसे पहले राजा घोष ने पूजा की थी। तब यह एक गढ़ हुआ करता था। उसी गढ़ में मां का मंदिर बना हुआ है। राजा घोष के कारण ही गांव का नाम घोसरावां रखा गया।

यह भी कहा जाता है कि जो महिलाएं जबरदस्ती मंदिर में प्रवेश करना चाहतीं है तो उनके साथ अप्रिय घटना हो जाती है. इस वजह से लोग इस मंदिर की मान्यताओं का पालन सालों से कर रहे हैं. मंदिर के पुजारी पुरेन्द्र उपाध्याय ने बताया मां आशापुरी की आर्शीवाद से घोसरावां,पावापुरी और आस-पास के इलाकों में संकट आने से पहले टल जाता है. मात्रा के नाम मात्र लेने से सभी मुरादें पुरी होती है और सभी संकट दूर हो जाते हैं.

मां आशापुरी के दरबार में श्रद्धालु संतान प्राप्ति को लेकर दूर-दूर से आते हैं। मनोकामना पूर्ण होने पर यहां बकरे की बलि देने की परंपरा है। इसके अलावा मां को भोग के रूप में नारियल और बताशा भी चढ़ाया जाता है।

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