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छत्तीसगढ़ के राम पार्ट-3: भगवान राम ने खुद की थी छत्तीसगढ़ के इस मंदिर में पूजा, रामायण काल का जीवंत प्रमाण आज भी है यहां मौजूद

Chhattisgarh ke Ram: “छत्तीसगढ़ के राम” में आज हम बात करेंगे भगवान राम से जुड़े उन जीवंत प्रमाणों की, जिनका वर्णन बाल्मीकि रामायण और रामायण काल से जुड़े शोधों में भी मिलता है। आज हम बात करेंगे “आरंग के बागेश्वर मंदिर” की।  कई शोधों में वर्णन मिलता है कि अपने वनवास काल में भगवान राम ने दंडकारण्य में जो वक्त गुजारा था, उसमें एक पड़ाव आरंग भी था, जहां भगवान श्रीराम ने बागेश्वरनाथ मंदिर में भगवान शिव की अराधना की थी। वैसे तो राम के अराध्य के रूप में भगवान शिव का वर्णन कई पुराणों में मिलता है। लिहाजा छत्तीसगढ़ के कई स्थल हैं, जहां रामायण काल के शिवलिंग के प्रमाण उपलब्ध है।

श्रीराम सांस्कृतिक शोध संस्थान न्यास के शोधकर्ताओं ने अपने शोध “जहां-जहां चरण पड़े रघुवर के” में 98 वें नंबर पर आरंग के बागेश्वर मंदिर को चिन्हित किया है। 14 वर्ष के वनवास काल में अयोध्या से निकले, तो वे भारत के करीब 290 स्थानों से होकर गुजरे थे। उन्हीं 290 स्थानों में से एक है आरंग। भगवान राम ने यहां आकर बागेश्वर नाथ की पूजा अर्चना की थी। सांस्कृतिक शोध संस्थान व्यास नई दिल्ली के शोधकर्ता डॉ. रामअवतार शर्मा अपनी किताब “जंह जंह राम चरण चलि जाहि” में लिखते हैं कि वनवास के दौरान जिन 249 स्थानों में प्रभु रुके थे, उनमें से एक आरंग का बागेश्वरनाथ मंदिर भी है, जो उनकी पुस्तक में 98 नंबर पर आरंग का उल्लेख है।

अद्भूत है बागेश्वरनाथ का मंदिर

108 खंभों से निर्मित इस मंदिर में 24 खंभे गर्भगृह मंडप के लिए है, जो समय को प्रदर्शित करता है. शेष 84 खंभों से मंदिर के चारों ओर चार दीवारी बनाई गई है. यह मंदिर पूर्वाभिमुख है. यहां के श्रद्धालु बताते हैं कि सूर्योदय की पहली किरण मंदिर के गर्भगृह में भोलेनाथ की मूर्ति पर सीधा पड़ती है. मंदिर की एक खासियत यह भी है कि भगवान भोलेनाथ के साथ देवी पार्वती की मूर्ति गर्भगृह में विराजमान हैं. यहां शिवलिंग के विशेष श्रृंगार के साथ पूजा अर्चना प्राख्यात है. शिवलिंग का उज्जैन के महाकाल की तर्ज पर रोजाना अलग- अलग स्वरूप में श्रृंगार किया जाता है. इस मार्ग से जब भी आदिगुरू शंकराचार्य गुजरते हैं, भगवान भोलेनाथ का दर्शन करने अवश्य पहुंचते हैं.

107 शिवलिंग हैं आरंग में

आरंग स्थित बागेश्वरनाथ महादेव का प्राचीन और भव्य मंदिर इतिहास का साक्षी है। जहां रघुवीर के चरण पड़े थे। 108 खंभों से निर्मित इस मंदिर को सिद्घपीठ का दर्जा प्राप्त है। यहां हजारों श्रद्घालु दर्शन करने पहुंचते हैं और मन्नतें मांगते हैं। प्राचीन काल में आरंग में 107 शिवलिंग थे. किसी कारणवश 108 शिवलिंग न होने के कारण इसे काशी का दर्जा नहीं मिल पाया. आज भी बागेश्वर, भुवनेश्वर, वटेश्वर, जलेश्वर, कुमारेश्वर सहित अनेक प्राचीन स्वयंभू शिवलिंग नगर की चारों दिशाओं में विद्यमान हैं. जहां श्रावण मास में भगवान शिव की पूजा अर्चना की जाती है. वहीं मोरजध्वज की नगरी के नाम से विख्यात आरंग नगर में सैकड़ों मंदिर होने के कारण छत्तीसगढ़ में मंदिरों की नगरी कहा जाता है. यहां श्रावण में हर शिवालय में श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है।

लाल पत्थरों से निर्मित है यह भव्य मंदिर

श्रीराम गमन सांस्कृतिक स्रोत संस्थान न्यास नई दिल्ली के अनुसार वनवास काल में भगवान श्रीराम 249 स्थानों पर रूके थे। जिसमें बाबा बागेश्वरनाथ भी शामिल है। इससे मंदिर की प्राचीन काल से मान्यता, पौराणिकता व भक्तों की आस्था को बल मिलती है। मंदिर का पूर्वमुखी होने के साथ-साथ विशाल आकार, सुंदर बनावट व भव्यता श्रद्घालुओं को बरबस ही आकर्षित करती है। प्राचीनकाल में लाल पत्थरों से निर्मित इस मंदिर की भव्यता और मजबूती से इसके ऐतिहासिक होने का प्रमाण मिलता है।

वास्तु शास्त्र का अनूठा मेल है इस मंदिर में

भगवान श्रीराम का ननिहाल दक्षिण कोशल (वर्तमान में छत्तीसगढ़) के आरंग नगरी में स्थित है बागेश्वर नाथ महादेव का प्राचीन और भव्य मंदिर, जहां भगवान श्रीराम वन गमन के समय आये थे। ऐसी मान्यता है कि श्रीराम का वनगमन मार्ग में यहां 98वां पड़ाव था। 108 खंभों से निर्मित इस मंदिर में 24 खंभे गर्भगृह मंडप के लिए है। और शेष 84 खंभों से मंदिर के चारों ओर चार दीवारी बनाई गई है। यह मंदिर पूर्वाभिमुख है। यहां के पुजारी और नगरवासी बताते हैं कि सूर्योदय की पहली किरण मंदिर के गर्भगृह में भोलेनाथ की मूर्ति पर सीधा पड़ती है। मंदिर की एक खासियत यह भी है कि भगवान भोलेनाथ के साथ देवी पार्वती की मूर्ति गर्भगृह में विराजमान हैं। यहां शिवलिंग का विशेष श्रृंगार के साथ पूजा अर्चना प्राख्यात है। इस मार्ग से जब भी आदिगुरू शंकराचार्य गुजरते हैं, भगवान भोलेनाथ का दर्शन करने अवश्य पहुंचते हैं।

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