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चुनाव छत्तीसी 2023: बदलाव की डगर….क्या चुनाव परिणाम पर डालेगी असर !

कुमार विजय….

रायपुर 16 जुलाई 2023। छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव में अब महज 4 महीने से भी कम का वक्त बचा हैं। ऐसे में कांग्रेस पार्टी चुनाव से ठीक पहले बदलाव के डगर पर अग्रसर हैं। कांग्रेस पार्टी मे संगठन से लेकर सत्ता तक बदलाव की बयार बह रही हैं। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यहीं कि बदलाव की डगर….क्या चुनाव परिणाम पर डालेगी असर ! बेशक कांग्रेस में चल रही इस उठा पटक को लेकर विपक्ष में बैठी बीजेपी तंज कसने में कोई कसर नही छोड़ रही, लेकिन बदलाव की इस राजनीति ने विपक्षी पार्टियों की चिंता भी बड़ा दी हैं।

साल 2023 के अंत में छत्तीसगढ़ सहित देश के पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं। इन पांच राज्यों में भले ही चुनावी तैयारियां शुरू हो गयी हो, लेकिन मौजूदा वक्त में छत्तीसगढ़ की राजनीति में चल रही उठा-पटक पर सबकी नजर हैं। छत्तीसगढ़ की मौजूदा कांग्रेस की सरकार सत्ता में वापसी को लेकर चुनावी बिसात पर नये सिरे से मोहरे बिठानेे में जुट गयी हैं। पंजाब और मध्यप्रदेश में हुए राजनीतिक घटनाक्रम के बाद कांग्रेस हाईकमान छत्तीसगढ़ में कोई रिश्क लेने के मूड में नजर आती नहीं दिख रही हैं। यहीं वजह हैं कि प्रदेश में लंबे वक्त से दो धड़ो में बटे कांग्रेस को एकजुट करने के लिए हाईकमान ने दिल्ली में पहले बैठक बुलाई और फिर नाराज चल रहे स्वास्थ्य मंत्री को डिप्टी सीएम बनाकर पैचअप करने का प्रयास किया। इस फैसल के ठीक बाद से ही कांग्रेस बदलाव के डगर पर अग्रसर हैं।

3 दिन पहले ही पीसीसी चीफ को हटाकर हाईकमान ने दीपक बैज को प्रदेश कांग्रेस की कमान सौंप दी। इसके बाद ठीक दूसरे दिन शिक्षा मंत्री से इस्तीफा लेकर पूर्व पीसीसी चीफ मोहन मरकाम को मंत्रिमंडल में शामिल कर शुक्रवार को शपथ दिलाया गया। इसके साथ ही सीएम ने मंत्रिमंडल में फेरबदल कर उर्जा विभाग का प्रभार डिप्टी सीएम सिंहदेव को देकर पावर और पोर्टफोलियों को बैलेंस करने का प्रयास किया गया। पिछले 72 घंटें में छत्तीसगढ़ कांग्रेस के संगठन और सरकार में तेजी से हुए बदलाव को लेकर एक तरफ बीजेपी तंज कसते हुए हमलावर हो गयी हैं। लेकिन राजनीतिक पंडित इस बदलाव की राजनीति को सत्ता में वापसी की डगर को आसान और मजबूत बनाने की रणनीति से जोड़कर देख रहे हैं। राजनीतिक जानकारों की माने तो चुनाव से ठीक पहले बदलाव की राजनीति कर रही कांग्रेस अपने कमजोर कड़ियों को सीरे मजबूत करने में जुट गयी हैं।

सूबे के सभी विधानसभा में ग्राउंड जीरों से आई सर्वे रिपोर्ट पर कमजोर परफार्मेस वाले विधायक या फिर मंत्री जिनके चुनाव जीतने की उम्मींद काफी कम हैं, उन्हे पार्टी अभी से साधने में जुट गयी है, ताकि बंटवारे के समय टिकट कटने पर पार्टी में बगावत न हो सके। सूत्रोें की माने तो मौजूदा सरकार में तीन से चार ऐसे मंत्री हैं, जिनकी खुद के विधानसभा में पकड़ काफी कमजोर हुई हैं। ठीक इसी तरह कुछ विधायक भी हैं, जिनका परफार्मेंस काफी कमजोर रहा हैं। ऐसे में कांग्रेस हाईकमान ऐसे प्रत्याशियों पर रिश्क नही लेना चाहेगी। लिहाजा अभी से ऐसे कमजोर उम्मींदवारों को संगठन में बड़ी जिम्मेदारी और पद देकर पार्टी मजबूती और एकजुटता के साथ चुनाव लड़ने की तैयारी में हैं। लिहाजा ऐसे में उम्मींद हैं कि आने वाले समय में कांग्रेस संगठन और सत्ता में और भी बदलाव कर सकती हैं, ताकि सत्ता में दोबारा पूर्ण बहुमत के साथ वापसी हो सके।

बदलाव की राजनीति से BJP की चिंता बढ़ना भी तय…!
छत्तीसगढ़ कांग्रेस में चुनाव से ठीक पहले बदलाव की राजनीति पर भले ही बीजेपी के नेता तंज कसते हुए हमलावर हो रहे हैं। लेकिन कांग्रेस की इस रणनीति ने दूसरी पार्टियों की भी चिंता बढ़ी दी हैं। राजनीतिक जानकारों की माने तो साल 2018 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी की सर्वे रिपोर्ट में कई प्रत्याशियों की परफार्मेंस रिपोर्ट निगेटिव आई थी। बावजूद 15 साल से सत्ता में काबिज बीजेपी के नेता एंटी इनकमबैंसी को नही समझ पाये और सर्वे में निगेटिव रिपोर्ट आने के बाद भी अधिकांश पुराने चेहरों को दोंबारा टिकट दिया गया। नतीजा ये रहा कि चुनाव में बीजेपी को बुरी तरह से हार का न केवल सामना करना पड़ा, बल्कि पार्टी के कई बड़े और नामी चेहरों को हार का सामना करना पड़ा था।

ऐसे में माना ये भी जा रहा है बीजेपी की इस गलती से सबक लेते हुए एक ओर जहां कांग्रेस बदलाव की डगर पर अग्रसर हैं। वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस की इस रणनीति को देखने के बाद बीजेपी हाईकमान भी सोचने पर मजबूर है। मतलब साफ़ है आने वाले वक्त में अगर BJP भी कांग्रेस की तरह बदलाव की रणनीति पर चुनावी बिसात पर मोहरे बिठाती हैं, तो पार्टी के कई पुराने और बड़े नेताओं का टिकट कटना तय माना जा रहा हैं। खैर आगामी विधानसभा चुनाव में राजनीतिक पार्टियां किस चेहरे पर दांव लगाती हैं और कौन सी पार्टी सत्ता में वापसी करती हैं,ये तो आने वाला वक्त ही बतायेगा। लेकिन प्रदेश में मौजूदा वक़्त में सत्ता के सिंहासन तक पहुंचने के लिए राजनीतिक दल बदलाव की राजनीति पर जोर देते जरूर दिख रहे है।

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