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IPS Shashimohan singh : …जब एक्टर बनने के लिए छोड़ दी थी इस IPS ने नौकरी, अब बने VVIP जिले के SP, भोजपुरी-छत्तीसगढ़ी फिल्म के एक्टर के साथ खिलाड़ी नंबर-1 भी हैं

IPS Shashimohan singh Biography in Hindi: आईपीएस शशिमोहन सिंह को जशपुर जिला का नया पुलिस कप्तान बनाया गया है। शशिमोहन सिंह की फुल फ्लेजज एसपी के तौर पर ये पहली पोस्टिंग है। इससे पहले वो बस्तर के प्रभारी एसपी रहे हैं। वैसे तो जशपुर छोटा जिला है, लेकिन मुख्यमंत्री का गृह जिला होने की वजह से वो VVIP जिला है। लिहाजा, पोस्टिंग के लिहाजा से शशिमोहन सिंह की ये पोस्टिंग काफी बड़ी है।

2012 बैच के IPS शशिमोहन सिंह कांग्रेस कार्यकाल में वनवास काटते रहे। उन्हे बस्तर के बटालियन में वक्त गुजारना पड़ा, लेकिन अब समय बदला है, उन्हें अब वीवीआईपी जिले की कमान मिल गयी है। राज्य पुलिस सेवा के अफसर शशिमोहन सिंह को रमन सरकार के कार्यकाल में साल 2018 में आईपीएस अवार्ड था, जिसके बाद उन्हें DOPT से 2012 बैच आवंटित हुआ।

एक्टिंग का बहुत शौक

शशिमोहन सिंह बहुमुखी प्रतिभा के धनी है। वो ना सिर्फ रियल लाइफ में वर्दी वाले का रोल निभाते हैं, बल्कि कई फिल्मों में उन्होंने वर्दी पहनकर कर कड़ककर पुलिसिंग का रूतबा बढ़ाया है। उनकी कई फिल्में अवार्ड भी ले चुकी है। वो छत्तीसगढ़ी के साथ-साथ भोजपुरी फिल्मों में भी काफी काम किया है। उनकी चर्चित फिल्म भूलन द मेज, मया देदे मयारू रही है।

ये है शशिमोहन सिंह की पूरी कहानी

पुलिस अफसर शशिमोहन सिंह ने छत्तीसगढ़ी फिल्म ‘मया दे दे मयारू’ में कंठी ठेठवार की भूमिका कर रहे हैं। उन्हें फिल्मों में काम करने के लिए पुलिस विभाग से एक साल की छुट्टी भी मिल गई थी। एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा था कि मैं अभिनेता पहले हूं, पुलिस वाला बाद में। पर पुलिस की नौकरी नहीं छोडूंगा। जनता व राष्ट्र की सेवा पुलिस में रहकर ही की जा सकती है। वे नक्सल प्रभावित क्षेत्र भानुप्रतापपुर में भी रहे हैं। उनका मानना है बस्तर में नक्सलवाद खत्म होकर रहेगा। शशिमोहन सिंह का जन्म बिहार के बक्सर जिले में हुआ। हालांकि बाद में उनका परिवार छत्तीसगढ़ आकर बस गया। भिलाई के कल्याण कॉलेज से उन्होंने एमए किया। उस समय छत्तीसगढ़ राज्य नहीं बना था। कॉलेज की पढ़ाई के बाद पीएससी की परीक्षा दी। डीएसपी के लिए चयन हो गया।

बिहार में हुआ था शशिमोहन सिंह का जन्म

इटारसी में शशिमोहन की पुलिस ट्रेनिंग हुई। ट्रेनिंग के बाद से अलग-अलग स्थानों पर सेवाएं जारी है। सवा दो साल नक्सल प्रभावित क्षेत्र भानुप्रतापपुर में वो रहे । बाद में राजधानी रायपुर के माना में वो सीएसपी रहे। मुख्यमंत्री रमन सिंह के वो सिक्युरिटी इंचार्ज भी रहे। इसके बाद सीएसपी माना, एडीशनल एसपी कवर्धा एवं एडीशनल एसपी रायपुर में भी पोस्टिंग रही। कुछ दिनों के लिए उनकी पोस्टिंग कांकेर में भी रही। सिर्फ एक्टिंग ही नहीं, वो जबरदस्त बैडमिंटन खिलाड़ी भी हैं। उन्होंने बैडमिंटन टूर्नामेंट का चैंपियनशिप भी जीता। लिखने का शौक बचपन से उन्हें है, स्कूल-कॉलेज में भी उन्होंने कविताएं लिखी। स्कूल-कॉलेज में होने वाले कार्यक्रमों में नाटकों में अभिनय भी करना शुरू किया, तो अभिनय का जुनून हो गया।

एक्टिंग पर शशिमोहन सिंह की ये थी इच्छा

 शशिमोहन ने अपने अभिनय की यात्रा पर कहा था कि अभिनय ही करना चाहता था, पर घर की परिस्थितियां थोड़ी अलग थीं। नौकरी की तरफ जाना ही ठीक लगा। जितनी गहरी रूचि अभिनय में है उतना ही गहरा रूझान साहित्य में है। उन्होंने साजा कॉलेज से हिन्दी साहित्य में एमए किया और मेरिट में जगह पक्की की। शशि मोहन सिंह के पिता श्रीकृष्ण देवसिंह भोजपुरी भाषा में कविताएं लिखा करते थे। संगीत में उनकी अच्छी दखल थी। पिता का प्रभाव ही शशिमोहन सिंह पर पड़ा। एक इंटरव्यू में जब शशि मोहन से ये पूछा गया कि पुलिस अफसर को क्या साहित्य साधना के लिए पर्याप्त वक्त मिल पाता है, तो उन्होंने कहा था कि नौकरी करते हुए भी मैंने कविताएं लिखी । आज भी लिखता हूं। कबीर को खूब पढ़ा।  अज्ञेय को समझने की कोशिश की। कबीर की अक्खड़ता पर खूब सोचता हूं। उन्होंने समाजिक कुरीतियों पर जमकर चोट की। उस काल में ज्यादातर कवि राजाओं के दरबार में दरबारी कवि हुआ करते थे। कबीर ने गलत को गलत कहने का साहस किया। कबीर जिस अक्खड़ता से सामाजिक कुरीतियों पर चोट करते हैं उसी अक्खड़ता से ईश्वर से प्रेम भी करते हैं। कवि जयशंकर प्रसाद को पढ़ा। हमारे रायपुर के विश्व ख्याति प्राप्त कवि विनोद कुमार शुक्ल को भी पढ़ते रहा हूं।

इस तरह से हुआ अभिनय का शौक

शशिमोहन बताते हैं- जब उनका डीएसपी के लिए चयन हुआ, तो ट्रेनिंग के लिए पुलिस एकेडमी सागर गया। वहां एक ग्रूप बनाकर तीन नाटक किया। मोनो प्ले लिखा। कवर्धा में ट्रेनिंग के लिए आया तो ‘टोनही’ को आधार बनाकर नाटक करवाया। इस नाटक में लेखक व निर्देशक दोनों था। इस नाटक में संदेश था किस तरह बैगा लोग शैतान उतारने के नाम पर भोली भाली जनता को बेवकूफ बनाते हैं। इस नाटक का आठ से ज्यादा गांवों में मंचन हुआ। बाद में ये नाटक ‘डरना मना है’ के नाम से एक स्थानीय चैनल के माध्यम से छोटे परदे पर प्रसारित भी हुआ। उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ी फिल्मों के निर्माता अलख राय उनके दोस्त हैं। उन्होंने मुझे फिल्म निर्देशक प्रेम चंद्राकर से मिलवाया। चंद्राकर को उनके भीतर अभिनेता दिखा। फिर उन्हें छत्तीसगढ़ी फिल्म ‘मया दे दे मयारू’ में कंठी ठेठवार की भूमिका मिल गई।

फिल्म में भूमिका निभाने के लिए शशिमोहन सिंह को राज्य सरकार ने स्पेशल लीव सेंशन किया था। शशिमोहन कहते हैं- मैं मानता हूं मूलत: कलाकार हूं। पुलिस में तो बाद में आया। पुलिस विभाग में चुनौतियों के बीच काम करते रहने का भी अलग मजा है। एक ही समय में फिल्म व पुलिस की जिम्मेदारी दोनों सामने थी। लगा दो नाव पर सवार होना मुश्किल है। इसलिए एक साल की छुट्टी ले ली।

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