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कौन है Jaswant Singh Gill? जिनका किरदार निभाने जा रहे अक्षय , पढ़े खदान में फंसे 65 लोगों की जान बचाने वाले हीरो की कहानी….

मुंबई 26 सितंबर 2023 बॉलीवुड एक्टर अक्षय कुमार अपनी अगली फिल्म मिशन रानीगंज में नजर आने वाले हैं. यह फिल्म माइनिंग इंजीनियर जसवंत सिंह गिल की जांबाजी पर आधारित है. हाल ही में फिल्म का पोस्टर सामने आया है, जिसने फैंस की एक्साइटमेंट को दोगुना बढ़ा दिया है.

कौन थे जसवंत सिंह गिल?
जसवंत सिंह गिल का जन्म 22 नवंबर, 1939 को पंजाब के अमृतसर स्थित सथियाला में हुआ था. उन्होंने खालसा स्कूल से पढ़ाई की थी और 1959 में खालसा कॉलेज से ग्रेजुएशन किया था. फिर कोल इंडिया लिमिटेड में नौकरी शुरू कर दी. यहां काम करने के दौरान उन्होंने ऐसी बहादुरी दिखाई कि 1991 में उन्हें सर्वोत्तम जीवन रक्षा पदक से राष्ट्रपति ने सम्मानित किया.

अमृतसर की मजीठा रोड पर एक चौक का नाम भी उनके नाम पर रखा गया है. 26 नवंबर, 2019 को जसवंत सिंह गिल का निधन हो गया. अब उन्होंने जो काम किया उस पर फिल्म लेकर अक्षय कुमार आ रहे हैं. टीनू सुरेश देसाई ने फिल्म को डायरेक्ट किया है.

खदान में भर गया था पानी
जसवंत सिंह 1989 के दौरान पश्चिम पंगाल के रानीगंज में महाबीर खदान के चीफ माइनिंग इंजीनियर थे. 13 नवंबर, 1989 के दिन खान में 220 मजदूर रोज की तरह अपना काम कर रहे थे. ब्लास्ट के जरिए कोयले की दीवारें तोड़ी जा रही थीं. खदान से कोयला निकाला जा रहा था. इसी दौरान खदान में बाढ़ आ गई. ऐसा माना जाता है कि किसी ने खदान की सबसे आखिरी सतह से छेड़छाड़ कर दी, जिसके कारण पानी रिसने लगा और फिर खदान में बाढ़ आ गई.

71 मजदूर फंस गए थे खदान में
220 में से कई मजदूरों को दो लिफ्टों से बाहर निकाला गया. फिर शाफ्ट में पानी भर गया और 71 मजदूर वहीं फंस गए. जिसमें से 6 डूब गए और 65 को बचाने की जुगत होने लगी. उन्हें रेस्क्यू के लिए 3 से 4 टीमें बनाई गईं. एक टीम ने खदान के बराबर सुरंग खोदनी शुरू की. दूसरी टीम उस जगह से माइन के अंदर जाने की कोशिश करने लगी, जहां से पानी जा रहा था. पर सारे हथकंडे असफल हो चुके थे. कोई जुगाड़ काम नहीं कर रहा था.

…जब सब निराश हो चुके थे
जब सब निराश हो चुके थे तो जसवंत गिल को एक आइडिया आया. वो आइडिया था कैप्सूल का. गिल ने स्टील के कैप्सूल नुमा ढांचे के जरिए मजदूरों को बाहर निकालने की योजना बनाई. खान के एक तरफ 22 इंच व्यास का सुराख बनवाया गया. इस कैप्सूल नुमा ढांचे में एक आदमी को जमीन के नीचे जाना था, लेकिन समस्या यह थी कि जमीन के नीचे जाए कौन? ऐसे में सीनियर अधिकारियों के विरोध के बावजूद गिल खुद कैप्सूल के सहारे नीचे उतर गए.

मजदूरों के चेहरे पर मौत का था खौफ
जसवंत गिल ने जैसे ही कैप्सूल का दरवाजानुमा हिस्सा खोला 65 डरे हुए लोग उनके सामने थे. उनके चेहरे पर मौत का खौफ साफ देखा जा सकता था. उन्होंने सबसे करीब मौजूद पहले वर्कर को बाहर निकाला. कैप्सूल में लिया. स्टील पर हथौड़ा मारकर इशारा किया. उन्हें ऊपर खींचा गया. इस सफल निकासी के बाद गिल साहब ने उन मजदूरों को निकालना शुरू किया, जो घायल थे या जिन्हें बुखार था.

6 लोगों को नहीं बचाने पर रो पड़े थे गिल
7-8 राउन्ड के बाद जब ये पक्का हो गया कि कैप्सूल ढंग से काम कर रहा है, तो कैप्सूल में लगी मैनुअल घिरनी को मकैनिकल घिरनी से बदल दिया गया. इससे मजदूरों को निकालने की प्रक्रिया में तेजी आ गई. सुबह 8:30 बजे तक गिल सभी मजदूरों को बाहर लाने में सफल रहे. यानी 6 घंटे में गिल साहब ने 65 लोगों के जान बचा ली. जब आखिरी आदमी को लेकर गिल बाहर निकले तो यह कहते हुए रो पड़े कि वह बाकी 6 लोगों को नहीं बचा सके.

रेस्क्यू डे डिक्लेयर किया
माइनिंग इंजीनियर जसवंत सिंह गिल की इस बहादुरी के लिए सर्वोत्तम जीवन रक्षा पदक से नवाजा गया. कोल इंडिया ने उन्हें लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड दिया. इसके साथ ही कोल इंडिया ने उनके सम्मान में 16 नवंबर को रेस्क्यू डे डिक्लेयर कर दिया.

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