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आरक्षण की गरमायी राजनीति अब शिकायतों तक पहुंची… बीजेपी पदयात्रा कर राज्यपाल से शिकायत करने पहुंची… पीसीसी चीफ बोले- घड़ियाली आंसू बहाना बंद करें…5 सवाल भी पूछे

रायपुर 15 अक्टूबर 2022। आरक्षण के मुद्दे पर पर गरमायी राजनीति अब शिकवा शिकायतों तक पहुंच गयी है। आरक्षण के मुद्दे पर आज बीजेपी पदयात्रा की और राज्यपाल को ज्ञापन सौंपा। भाजपा ने आरोप लगाया है कि सरकार ने प्रदेश के जनजाति समाज के साथ एक बड़ा धोखा किया है जनजाति आरक्षण कटौती के लिए कांग्रेस सरकार को जिम्मेदार ठहराते उन्होंने कहा कि भाजपा की सरकार ने एकमुश्त 12 फीसदी आदिवासी आरक्षण बढ़ाया और सत्ता में रहते इस व्यवस्था का रक्षण करते हुए आदिवासी समाज का हित संरक्षण किया। कांग्रेस की सरकार ने सुनियोजित षड्यंत्र के तहत आदिवासी हितों पर कुठाराघात किया है। जिसके लिए जनजाति समाज उसे कभी माफ नहीं करेगा।

इधर, कांग्रेस ने आदिवासी आरक्षण में कटौती पर भाजपा के पैदल मार्च को घड़ियाली आंसू बताया है । प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मोहन मरकाम ने कहा कि भारतीय जनता पार्टी के षड़यंत्र और पूर्ववर्ती रमन सरकार के द्वारा जानबूझकर बरती गयी लापरवाही के कारण हाईकोर्ट ने आरक्षण की सीमा को घटाकर 58 से 50 फीसदी किया है। पीसीसी चीफ मोहन मरकाम ने इसे लेकर भाजपा ने 5 सवाल भी पूछे हैं।

इधर बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष अरूण साव ने कहा है कि लापरवाही 2019 से शुरु हुई है। सुप्रीम कोर्ट ने 2018 में हाई कोर्ट को निर्देश दिया था कि तीन माह में अंतिम सुनवाई हो लेकिन कांग्रेस सरकार साढ़े तीन साल तक सुनवाई से भागती रही तारीख पर तारीख लेती रही जब कोर्ट ने तारीख बढ़ाने से मना कर दिया तो अंतिम सुनवाई में नए दस्तावेज पेश करने की अनुमति मांगी सरकार इस मामले में गंभीर नहीं थी और जानबूझकर आदिवासियों के आरक्षण के खिलाफ फैसला दिलवाया गया।

कांग्रेस ने पूछे सवाल

  • जब आरक्षण की सीमा को 50 से बढ़ाकर 58 करने के खिलाफ अदालत में याचिका लगी तो रमन सरकार ने कोर्ट को आरक्षण बढ़ाने के तर्कसंगत कारणों को कोर्ट के समक्ष क्यों नहीं रखा?
  • आरक्षण बढ़ाने के लिये तत्कालीन गृहमंत्री ननकी राम कंवर की अध्यक्षता में बनाई गयी कमेटी की सिफारिशों को अदालत के समक्ष क्यों नहीं रखा गया?
  • तत्कालीन मुख्य सचिव की अध्यक्षता में बनाई गई कमेटी की सिफारिशों को अदालत में क्यों छुपाया गया?
  • रमन सरकार ने आरक्षण के संदर्भ में दो कमेटियां बनाई थी तो इन कमेटियों के बारे में आरक्षण संबंधी मुकदमे के लिए हाईकोर्ट में दाखिल हलफनामे में रमन सरकार ने इसका जिक्र क्यों नहीं किया?
  • जब रमन सरकार आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत से बढ़ाकर 58 प्रतिशत कर रही थी तो अनुसूचित जाति के आरक्षण में 4 प्रतिशत की कटौती करने के बजाय आरक्षण सीमा को 58 प्रतिशत से 62 क्यों नहीं किया? इससे लोग अदालत नहीं जाते, बढ़ाया गया आरक्षण यथावत् रहता। आज भी देश के अनेक राज्यों में 50 प्रतिशत से अधिक आरक्षण है, रमन सरकार ने जानबूझकर यह गलती किया ताकि बढ़ा आरक्षण अदालत में रद्द होगा।

भाजपा में साहस है तो इन 5 सवालों का जवाब दें।

प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मोहन मरकाम ने कहा कि आदिवासी समाज को उनका हक दिलाने के लिये कांग्रेस पार्टी प्रतिबद्ध है। बिलासपुर हाईकोर्ट फैसले के खिलाफ कांग्रेस सरकार उच्चतम न्यायालय गयी है। इसके साथ अन्य संवैधानिक मार्गो को तलाशा जा रहा, आदिवासी समाज सहित सभी वर्गों को उनका पूरा हक मिले इसको सुनिश्चित किया जायेगा।

भाजपा ने राज्यपाल से की शिकायत

बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष अरूण साव ने कहा कि इसी प्रकार वर्ष 2012 में राज्यपाल के आदेश से प्रदेश के पांचवे अनुसूची क्षेत्र के जिलो में तृतीय एवम चतुर्थ वर्ग के कर्मचारियों की भर्ती में स्थानीय जनसंख्या के अनुसार आरक्षण की व्यवस्था की गई थी यह व्यवस्था भी 29 सितंबर 2022 को कांग्रेस के कार्यकाल में उच्च न्यायालय ने खारिश कर दी इस निर्णय का भी मुख्य कारण प्रदेश सरकार की घोर लापरवाही रही।

इसी बीच राज्य सरकार ने सहायक शिक्षकों की 14500 पदों की भर्ती का विज्ञापन जारी कर दिया इसी लापरवाही के कारण 28 जनहित याचिका माननीय उच्च यायालय में दायर हुई और इससे प्रदेश के लाखों जनजातीय युवाओं को नुकसान उठाना पड़ेगा।

प्रदेश भाजपा अध्यक्ष श्री साव ने कहा कि राज्य में आखिर क्यों आरक्षण को लेकर आदिवासी युवाओं को सड़क पर उतरना पड़ रहा है? कांग्रेस सरकार ने वनवासी समाज के साथ विश्वासघात किया है और अपने पाप पर परदा डालने के लिए झूठ फरेब की राजनीति कर रही है। आदिवासी समाज इनकी चाल और इनके दोहरे चरित्र को समझ चुका है।

भाजपा सरकार ने 1994 के आरक्षण अधिनियम को संशोधित करते हुए 18 जनवरी 2012 को अनुसूचित जनजाति के आरक्षण को 20% से बढ़ाकर 32% किया गया था, इसके साथ ही पांचवी अनुसूचित जनजाति क्षेत्र के तृतीय और चतुर्थ वर्ग की शासकीय नौकरियों में क्षेत्रीय युवाओं को प्राथमिकता प्रदान करने के लिए भी पहल की, जिसे माननीय राज्यपाल की स्वीकृति प्राप्त हुई लेकिन आदिवासियों के इस विकास के विरोध में पूर्व सांसद पीआर खूंटे और कांग्रेस की तत्कालीन विधायक पदमा मनहर ने माननीय उच्च न्यायालय में इस विधेयक के विरुद्ध याचिका दायर की। जिस पर आदिवासियों के विकास और अधिकारों के लिए भाजपा ने लड़ाई लड़ी। एक ओर भारतीय जनता पार्टी शासित छत्तीसगढ़ सरकार माननीय उच्च न्यायालय में जनजाति समाज की ओर से मजबूती से अपना पक्ष रखकर 6 वर्षों तक लड़ती रही, 2018 तक यह कानून चलता रहा और हर वर्ष आरक्षण के लाभ के साथ ही पांचवी अनुसूचित क्षेत्र में तृतीय और चतुर्थ वर्ग की शासकीय नौकरियों में आदिवासियों को प्राथमिकता भी मिलती रही, परन्तु भूपेश बघेल की सरकार ने 29 सितंबर को एक आदेश निकालकर बस्तर, सरगुजा और बिलासपुर संभाग के अनुसूचित जिलों से स्थानीय भर्ती का नियम खत्म कर दिया।

इस फैसले के विरोध में माननीय उच्च न्यायालय में जनहित याचिकाएं दायर की गई, इन याचिकाओं पर कांग्रेस ने अपना पक्ष मजबूती से नहीं रखा।बल्कि साधारण वकीलों और खोखली दलीलों के साथ इस मामले को उच्च न्यायालय में लड़ा गया।

कांग्रेस सरकार चहेते अफसरों के लिए सुप्रीम कोर्ट के बड़े वकीलों को खड़ा करती है लेकिन जनजाति समाज के लिए नहीं। जिसके कारण माननीय उच्च न्यायालय में याचिका कर्ताओं के पक्ष में फैसला आया और वनवासियों के आरक्षण को कम कर दिया गया। सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपील तक नहीं की है। कांग्रेस की सरकार का असली चेहरा जगजाहिर हो गया है। संपूर्ण जनजाति समुदाय आक्रोश में है। भाजपा उनके साथ उनकी लड़ाई लड़ेगी।

हमारी मांग है जिन भी अधिकारियों ने लापरवाही की है उनके ऊपर तुरंत कार्रवाई की जाए और आदिवासियों को उनके हक 32 प्रतिशत आरक्षण जो कांग्रेस सरकार की घोर लापरवाही की वजह से छीन लिया गया है उन्हें जल्द से जल्द वापिस मिलना सुनिश्चित किया जाए।

आदिवासी आरक्षण में कटौती पर भाजपा का पैदल मार्च घड़ियाली आंसू है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मोहन मरकाम ने कहा कि भारतीय जनता पार्टी के षड़यंत्र और पूर्ववर्ती रमन सरकार के द्वारा जानबूझकर बरती गयी लापरवाही के कारण हाईकोर्ट ने आरक्षण की सीमा को घटाकर 58 से 50 फीसदी किया है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मोहन मरकाम ने भाजपा नेताओं से 5 सवाल पूछा कि-

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