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आलेख: आखिर चालू हो ही गया क्लाइमेट ब्रेकडाउन

:-लेखक- नितिन सिंघवी, छत्तीसगढ़ के जाने माने पर्यावरणविद हैं

यूनाइटेड नेशन के जनरल सेक्रेटरी एंटोनियो गुटेरस ने चार दिन पहले एक अंग्रेजी वाक्यांश “गर्मी के दिनों में कुत्ते भोंकते ही नहीं काटते भी हैं,” का हवाला देकर चेतावनी जारी की है कि क्लाइमेट ब्रेकडाउन चालू हो गया है, हम अभी भी सबसे खराब जलवायु अराजकता से बच सकते हैं, हमारे पास खोने के लिए एक क्षण भी नहीं है।

गुटेरस ने यह तब कहा जब यूरोपियन यूनियन की कापानिकास क्लाइमेट चेंज सर्विस ने घोषणा की कि अगस्त 1940 के बाद सबसे गर्म अगस्त 2023 रहा, जुलाई के बाद दूसरा सबसे गर्म माह। अगस्त में औसत ग्लोबल तापमान 16.95 डिग्री सेल्सियस रहा और समुद्री औसत 20.98 डिग्री सेल्सियस। जुलाई और अगस्त दोनों का औसत तापमान, उस 1.5 डिग्री से ज्यादा रहा जिस पर पेरिस एग्रीमेंट में समझौता हुआ था कि औद्योगिक युग चालू होने के समय के तापमान से 1.5 डिग्री पर तापमान बढ़ोतरी को रोकने का प्रयत्न करना है।

हमारे देश के मीडिया ने जलवायु परिवर्तन को समझने का कभी प्रयत्न नहीं किया। दुनिया के कोने-कोने में जलवायु संकट का तांडव चल रहा है, यह देश की जनता को नहीं बताया जा रहा। पूरब से पश्चिम तक तबाही का विवरण दिया जाए तो जगह कम पड़ जावेगा। कुछ महत्वपूर्ण घटनाओं पर नजर डालें तो अगस्त में वाइल्ड फायर के साथ-साथ ग्रीस में तापमान 47 डिग्री पहुंच गया, हजारों मौतें हुई। चीन में तापमान 52.2 डिग्री पहुंचा, अमेरिका में अभी भी 6 करोड लोग गर्मी की चेतावनी के तहत हैं। दक्षिण गोलार्ध की बात करें तो सिर्फ एक घटना काफी है, दुनिया की जलवायु को नियंत्रित करने वाले दोनों ध्रुव में से अटलांटिक की समुद्री बर्फ जाती ठंड में 12% कम रही। 2023 अभी तक का सबसे गर्म वर्ष होने जा रहा है और यूरोप का यह वर्ष संभवत सबसे कम गर्मी वाला वर्ष कहलाएगा। कनाडा में 5 सितंबर तक 1,64,665 वर्ग किलोमीटर का जंगल जल गया, जो कि छत्तीसगढ़ के क्षेत्रफल से ज्यादा है। पूरे विश्व में बाढ़ और चरम मौसम की अनेक घटनाएं हुई। बीजिंग में 5 दिनों में 745 मिली मीटर पानी गिरा। हिमाचल और उत्तराखंड के वीडियो देखकर सिर्फ हम ओएमजी करते रहे, परंतु याद रखें किसी भी किस्म की चरम जलवायु घटना धरती में कहीं भी हो सकती है।

भारत की बात करें तो 2023-24 का वर्ष आकाल का होने जा रहा है। पूरी दुनिया को खिलाने का दावा करने के बाद भारत ने पहले गेहूं का निर्यात बंद किया (उलट शायद आयात चालू करने की चर्चा है) फिर ब्रोकन राइस फिर गैर बासमती सफेद चावल, उसना चावल के निर्यात पर 20% ड्यूटी और बासमती चावल का न्यूनतम एक्सपोर्ट मूल्य $1200 प्रति टन किया गया, जबकि भारत विश्व का 40% चावल निर्यात करता था। शीर्ष पर बैठे हमारे नेता जलवायु संकट का सत्य जानते हैं पर जनता से छुपाते रहते हैं। अगर जनता को सत्य बताया जाए तो चरम जलवायु घटनाओं के निपटने की तैयारी हो सकेगी, जनता संकट के नियंत्रण में सहयोग भी कर सकेगी।

जलवायु ब्रेकडाउन रोकने पर विश्व के विकासवादी नेता, कॉरपोरेशन, व्यापारी कभी भी सहमत नहीं होंगे। तर्क कुतर्क से परे सिर्फ एक ही रास्ता बचा है, आज ही विकास को रोकें, उतना ही करें कि 800 करोड़ को खाना खिलाया जा सके। फॉसिल फ्यूल आज से जमीन के अंदर ही रहे और विकास की बात तभी की जावे जब विश्व कार्बन न्यूट्रल हो जाए। दलाई लामा कहते हैं कि क्राइस्ट, अल्लाह, बुद्ध ने यह समस्या पैदा नहीं की है; यह मानव निर्मित समस्या है। वह कहना चाहते हैं कि विश्व का कोई भी भगवान, देवी-देवता जलवायु संकट की समस्या से नहीं बचा सकेगा। जलवायु संकट नियंत्रण की खिड़की लगभग पूरी बंद हो गई है, उम्मीद की छोटी सी किरण बाकी है। अब हमारे ऊपर है, गुटेरस का कहा सच माने कि नहीं? मानते हैं तो आज ही नेताओं को कहना पड़ेगा कि या तो वह हट जाएं या कट्टर ग्रीन बनकर हमारी और हमारी पीढ़ियों की रक्षा करें।

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