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NW न्यूज 24 स्पेशल : CM भूपेश ने आध्यात्म व ऐतिहासिक धरती को दिलाया सम्मान….तीन पवित्र स्थलों माता कौशल्या, घासीदास बाबा और वीर नारायण की धरती को दी नयी पहचान …

रायपुर 5 अगस्त 2022। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने जब से सत्ता संभाली है, परंपरा और संस्कृति को बढ़ाने के साथ-साथ पुरखों की विरासत को सजाने और संवारने का भी काम किया है। छत्तीसगढ़ और छत्तीसगढिया संस्कृति को नयी पहचान दिलाने वाले मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने पिछले दिनों छत्तीसगढ की दो पौराणिक और एक ऐतिहासिक नगरी को नया नाम दिया। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने छत्तीसगढ़ के महापुरुषों तथा आस्था के केंद्रों को जनभावनाओं के अनुरूप नई पहचान देने के लिए प्रदेश के तीन स्थानों चंदखुरी, गिरौदपुरी और सोनाखान का नाम बदलने के निर्देश दिए हैं। अब चंदखुरी को माता कौशल्याधाम चंदखुरी, गिरौदपुरी को बाबा गुरु घासीदास धाम गिरौदपुरी और सोनाखान को बलिदानी वीरनारायण सिंह धाम सोनाखान के नाम से जाना जाएगा। अनेक जनप्रतिनिधि और स्थानीय लोग लंबे समय से इन स्थानों का नाम बदलने की मांग कर रहे थे।

संसदीय सचिव चंद्रदेव राय, गुरुदयाल सिंह बंजारे, इंद्रशाह मंडावी, यूडी मिंज तथा विधायक बृहस्पत सिंह, गुलाब सिंह कमरो और डा. विनय जायसवाल ने सोमवार को मुख्यमंत्री से जनभावनाओं के अनुरूप गिरौदपुरी और सोनाखान का नाम बदलने का आग्रह करते हुए इस संबंध में अपना पत्र सौंपा था। छत्तीसगढ़ गोसेवा आयोग के अध्यक्ष डा. महंत रामसुंदर दास ने भी जनआस्था को देखते हुए हरेली के दिन 28 जुलाई को मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर चंदखुरी का नाम माता कौशल्याधाम चंदखुरी करने का अनुरोध किया था। मुख्यमंत्री ने मांगों पर त्वरित निर्णय लेते हुए इन स्थानों के नए नामकरण के निर्देश दिए हैं।

चंदखुरी में विश्व का इकलौता कौशल्या मंदिर

रायपुर से 17 किलोमीटर दूर स्थित चंदखुरी गांव को भगवान राम की मां कौशल्या का जन्म स्थान माना जाता है। चंदखुरी में विश्व का इकलौता कौशल्या मंदिर है। यहां तालाब के बीचों-बीच माता कौशल्या का मंदिर है, जो 10वीं शताब्दी में बनाया गया था। जानकारों के मुताबिक महाकौशल के राजा भानुमंत की बेटी कौशल्या का विवाह अयोध्या के राजा दशरथ से हुआ था। विवाह में भेंटस्वरूप राजा भानुमंत ने बेटी कौशल्या को दस हजार गांव दिए थे। इसमें उनका जन्म स्थान चंद्रपुरी भी शामिल था। चंदखुरी का ही प्राचीन नाम चंद्रपुरी था। जिस तरह अपनी जन्मभूमि से सभी को लगाव होता है ठीक उसी तरह माता कौशल्या को भी चंद्रपुर विशेष प्रिय था।  

राजा दशरथ से विवाह के बाद माता कौशल्या ने तेजस्वी और यशस्वी पुत्र राम को जन्म दिया। इसी मान्यता अनुसार सोमवंशी राजाओं द्वारा बनाई गई मूर्ति आज भी चंदखुरी के मंदिर में मौजूद है। यहां माता कौशल्या के साथ भगवान श्रीराम अपने बालरूप में विराजे हैं। छत्तीसगढ़ को माता कौशल्या का मायका और श्रीराम का ननिहाल माना जाता है। राज्य शासन ने चंदखुरी को श्रीराम वन गमन पर्यटन परिपथ में शामिल कर वहां तालाब के बीच स्थित माता कौशल्या मंदिर का जीर्णोद्घार और तालाब का सुंदरीकरण कराया है।

सतनाम पंथ के अनुयायियों का आस्था का केंद्र गिरौदपुरी

बलौदाबाजार-भाटापारा जिले में स्थित गिरौदपुरी सतनाम पंथ के लाखों अनुयायियों की आस्था का केंद्र है। महानदी और जोंक नदी के संगम पर बलौदाबाजार से 40 किलोमीटर और बिलासपुर से 80 किमी दूर गिरौदपुरी धाम छत्तीसगढ़ का सबसे पूजनीय तीर्थ स्थल है। फागुन पंचमी में हर साल तीन दिवसीय मेले के दौरान लाखो की संख्या में लोग गिरौधपुरी आते हैं। यह गुरु घासीदास की जन्मस्थली और तपोभूमि है। इन्हीं गुरु घासीदास बाबा के सम्मान में राज्य सरकार ने 50 करोड़ रूपये की लागत से जैतखाम का निर्माण कराया है।

सतनाम समाज और स्थानीय लोग लंबे समय से गिरौदपुरी को घासीदास धाम गिरौदपुरी के नाम से प्रतिष्ठित करने की मांग कर रहे थे। जैतखाम सतनामियों के सत्य नाम का प्रतीक जयस्तंभ साथ ही यह सतनाम पंथ की विजय कीर्ति को प्रदर्शित करने वाली आध्यत्मिक पताका है। यहां कई तरह के धार्मिक क्रियाकलाप भी किये जाते हैं। गिरौधपुरी में बनाए गए जैतखाम की ऊंचाई दिल्ली के कुतुबमीनार से भी ज्यादा यानी 77 मीटर (243 फीट) ऊंची है। सफेद स्तंभ की वास्तुकला इतनी शानदार है कि लोगों की आँखें चकरा जाती हैं।

प्रथम स्वतंत्रता सेनानी की पवित्र धरती है सोनाखान

बलौदाबाजार-भाटापारा जिले में ही स्थित सोनाखान 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में छत्तीसगढ़ के प्रथम बलिदानी वीरनारायण सिंह के नाम से जाना जाता है। वीर नारायण सिंह का जन्म सन् 1795 में सोनाखान के जमींदार रामसाय के घर हुआ था। देशभक्ति और निडरता वीर नारायण सिंह को पिता से विरासत में मिली थी। स्वभाव से परोपकारी, न्यायप्रिय तथा कर्मठ वीर नारायण जल्द ही लोगों के प्रिय जननायक बन गए।

1856 में छत्तीसगढ़ में भयानक सूखा पड़ा तो उन्होंने एक कारोबारी का गोदाम लूटा और अनाज गरीबों में बंटवा दिया। नाराज ब्रिटिश शासन ने उन्हें गिरफ्तार कर रायपुर जेल में बंद कर दिया। 1857 में जब स्वतंत्रता की लड़ाई तेज हुई तो लोगों ने जेल में बंद वीर नारायण को ही अपना नेता मान लिया और समर में शामिल हो गए। कुछ देशभक्त जेलकर्मियों के सहयोग से कारागार से बाहर तक एक गुप्त सुरंग बनायी और नारायण सिंह को मुक्त करा लिया। जेल से मुक्त होकर वीर नारायण सिंह ने 500 सैनिकों की एक सेना गठित की और 20 अगस्त, 1857 को सोनाखान में स्वतन्त्रता का बिगुल बजा दिया। अंग्रेजों द्वारा गिरफ्तारी के बाद 10 दिसम्बर 1857 को उन्हें रायपुर के जयस्तंभ चौक में फांसी दे दी गई थी।

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