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शाला प्रवेश उत्सव में 10 दिनों तक होगा आयोजन, शिक्षकों के लिए जरूरी गाइडलाइन हुई जारी

रायपुर, 12 जून 2023। राज्य में इस साल शाला प्रवेश उत्सव 16 जून से 15 जुलाई तक मनाया जाएगा। इस दौरान बच्चों के प्रवेश के साथ ही विभिन्न गतिविधियों का आयोजन होगा। एक माह तक चलने वाले शाला प्रवेश उत्सव के शुरूआती 10 दिनों के लिए जनभागीदारी सुनिश्चित करते हुए विशेष कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे। प्रथम दिवस सभी स्कूलों में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और स्कूल शिक्षा मंत्री डॉ. प्रेमसाय सिंह टेकाम के संदेश का वाचन होगा। जनप्रतिनिधियों द्वारा नवप्रवेशी बच्चों का स्वागत, बच्चों को मिलने वाले विभिन्न सुविधाओं का वितरण किया जाएगा। जनप्रतिनिधियों द्वारा स्कूल के विकास हेतु शपथ एवं विचार व्यक्त किए जाएंगे। बच्चों द्वारा विविध सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किया जाएगा। शाला में उत्कृष्ट प्रदर्शन करने वाले विद्यार्थियों का सम्मान और पालकों का स्कूल के बारे में अभिमत और मुख्य अतिथि का उद्बोधन होगा।

शाला प्रवेश उत्सव आयोजन के लिए स्कूल शिक्षा विभाग के प्रमुख सचिव डॉ. आलोक शुक्ला ने सभी जिला कलेक्टर और जिला पंचायतों के मुख्य कार्यपालन अधिकारियों को निर्देशित किया है कि शाला प्रवेश उत्सव को जन-जन का अभियान बनाने के लिए व्यक्तिगत रूचि लेते हुए इसे सभी स्तर पर सफल बनाएं ताकि शत्-प्रतिशत बच्चों को शाला में प्रवेश एवं ठहराव सुनिश्चित करते हुए उन्हें गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देकर समग्र शिक्षा की लक्ष्य की प्राप्ति की जा सके। सत्र प्रारंभ होने से पहले शाला प्रबन्धन समिति की विशेष बैठक का आयोजन करने कहा गया है। शाला प्रवेश उत्सव आयोजन के संबंध में व्यापक प्रचार-प्रसार करने के निर्देश दिए गए हैं। प्रवेश उत्सव के दौरान प्रथम दिवस राज्य स्तरीय कार्यक्रम का सभी शालाओं में आयोजन किया जाए।

शाला प्रवेश उत्सव के द्वितीय दिवस– शाला में बड़े कक्षाओं के विद्यार्थी, शिक्षा में रूचि लेने वाले युवाओं, माताओं एवं सेवानिवृत्त व्यक्तियों की बैठक लेकर अपने क्षेत्र को शून्य ड्राप आउट गाँव घोषित करने आवश्यक कार्यवाहियों, प्रतिदिन प्रभात फेरी निकाले जाने की प्रक्रिया एवं रूट चार्ट, घर-घर संपर्क की प्रक्रिया का विवरण एवं अभ्यास, नुक्कड़ नाटक का अभ्यास, शाला से बाह्य बच्चों को मुख्यधारा में जोड़ने के प्रयास आदि पर चर्चा एवं बच्चों को तैयार किया जाएगा।

तृतीय दिवस-बड़ी कक्षाओं के बच्चों को घर-घर संपर्क कार्यक्रम के अंतर्गत कैसे प्रत्येक घर मैं जाकर पालकों से संपर्क कर उन्हें अपने बच्चों को नियमित शाला भेजने प्रेरित किया जाएगा। घरों में यदि अप्रवेशी, प्रवेश योग्य बच्चे एवं अनियमित उपस्थिति वाले बच्चे हैं तो उन्हें शाला में प्रवेश दिलवाते हुए नियमित शाला आने के लिए आवश्यक वातावरण तैयार करेंगे। बड़ी कक्षा के बच्चे यह कार्य प्रतिदिन तब तक करेंगे जब तक कि शाला जाने योग्य आयु के सभी बच्चों को ये शाला नियमित आने के लिए सहमत न कर लेवें एवं प्रवेश प्रक्रिया पूरी न कर लें।

चतुर्थ दिवस-बच्चों में आकांक्षा स्तर विकसित कर उनके लिए आगे जीवन में विकास के क्षेत्रों की पहचान करने, विभिन्न रोजगार के अवसर से परिचित करवाने एवं आसपास का भ्रमण कर विभिन्न रोजगारों से परिचित करवाएंगे। विगत वर्षों में सभी शालाओं में ‘गढ़बो नवा छत्तीसगढ़’ नामक पुस्तक बच्चों को एवं स्कूल में उपलब्ध करवाई गयी है। इस पुस्तक को सभी बच्चों को पढ़वाएं एवं इस पुस्तक में लिखी गयी कहानियों एवं चित्रों पर आगामी दो तीन दिनों तक बच्चों को दिखाते हुए चित्रों एवं कहानियों पर चर्चा आयोजित करें।

पंचम दिवस-बच्चों को साधारण गणित के सवाल देकर बनाने का अभ्यास करवाया जाएगा। शाला में उपलब्ध गणित किट गणित की सहायक सामग्री एवं गणित के रोचक खेल आदि का संकलन कर बच्चों से दिन भर अकेले एवं समूह में रहकर विभिन्न सवालों को हल करवाएं। बच्चों से कुछ मौखिक गणित के सवाल भी हल करवाते हुए उन्हें गणित में रूचि विकसित करने का प्रयास किया जाए।

छठवां दिवस-प्रत्येक शाला में खेलगढ़िया के अंतर्गत खेल सामग्री उपलब्ध करवाई गयी है। प्रवेशोत्सव के छठवें दिवस सभी शालाओं में बच्चों को आमंत्रित कर उन्हें विभिन्न खेलकूद में शामिल करते हुए उनका उत्साहवर्धन करें। छोटी कक्षा में बच्चों को सीखने में सहयोग करने हेतु खिलौने बनाने की प्रतियोगिता भी आयोजित कर स्कूल के लिए समुदाय की मदद से खिलौने एकत्र करने एवं स्थानीय संसाधनों से विभिन्न खिलौने बनाए जाने का कार्य भी करवाएं। पुस्तकालय संचालन के सम्बन्ध में रंगोत्सव सामग्री का अध्ययन कर लिया जाए।

सातवां दिवस-सभी शालाओं में संचालित मुस्कान पुस्तकालय से बच्चों को अपनी इच्छा से पुस्तकें लेकर उन्हें पढ़ने, समझने एवं जोड़ी में पढ़ी गयी पुस्तकों पर आपस में चर्चा करने के अवसर दिया जाए। बच्चों में पढ़ने में रूचि विकसित करने के साथ-साथ पढ़ने के स्पीड का भी आकलन करने की व्यवस्था की जाए। बच्चों को पूरे सत्र में समझ के साथ-साथ अधिक से अधिक स्पीड में पुस्तकों को पढ़ने का अभ्यास करने हेतु प्रेरित किया जाए।

आठवां दिवस-कुछ दिन पहले से ही आसपास के समुदाय के बड़े-बुजुर्गों को किसी एक स्थल में आमंत्रित कर बच्चों के छोटे-छोटे समूह में कहानी सुनाने का अवसर दिया जाए। बड़े कक्षाओं के बच्चों को इन कहानियों को सुनकर कागज में लिखने की जिम्मेदारी दी जाए। स्थानीय युवाओं को ऐसी बेहतर कहानियों को मोबाइल से रिकार्ड कर उनका पोडकास्ट बनाने हेतु प्रेरित करें। इन पोडकास्ट को जिले एवं राज्य स्तर पर भिजवाते हुए व्यापक स्तर पर उपयोग करने के अवसर प्रदान किया जाए।

नवम दिवस-इस दिन समुदाय में बोले जाने वाली प्रचलित स्थानीय भाषा में सामग्री तैयार करने हेतु आवश्यक प्रक्रियाएं अपनाएं। बड़े-बुजुगों द्वारा सुनाई गयी कहानियों एवं प्रचलित कहानियों पर स्थानीय भाषा में कहानी पुस्तकें तैयार कर प्रत्येक स्कूल के पुस्तकालय में रखवाएं। प्रवेशोत्सव के दौरान प्रत्येक स्कूल में कम से कम दस कहानी की पुस्तकें जनसहयोग से तैयार करवाते हुए उपयोग में लाई जाए। इन पुस्तकों को बाद में एक दूसरे के स्कूलों में बदलकर पढ़ने के अवसर दिए जा सकते हैं, शालाओं को प्रदाय की गई स्थानीय सामग्री का उपयोग एवं अध्ययन करें।

दसवां दिवस-इस दिन अवकाश के अवसर पर अधिक से अधिक समुदाय के सदस्यों को पहले से आमंत्रित करते हुए कम से कम आधे दिन का कार्यक्रम आयोजित किया जाए। समुदाय के साथ शाला विकास योजना, शाला एवं परिसर का सुरक्षा ऑडिट बच्चों का सामाजिक अंकेक्षण, अनियमित उपस्थिति एवं रोजगार के लिए लंबी अवधि तक बाहर रहने वाले बच्चों के पालकों से संपर्क कर उन्हें नियमित उपस्थिति के लिए प्रेरित किया जाए। पालकों एवं समुदाय को निपुण भारत शपथ लेकर सभी बच्चों को सीखने-सिखाने के लिए जागरूक करना एवं घर पर बच्चों की पढ़ाई पर नियमित रूप से विशेष ध्यान देने हेतु पालकों को तैयार किया जाना होगा। इस दौरान शाला सुरक्षा योजना एवं शाला संकुल योजना से संबंधित सामग्री का उपयोग एवं अध्ययन कर लिया जाए।

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