VIDEO : मध्यप्रदेश से मजदूर लाकर वन विभाग ने करवाया काम… खुलासा हुआ तो कैंप से रेंजर ने खदेड़ा….उधर जांच करने पहुंचे ALC तो भिड़ गये SDO …कलेक्टर ने मामले में जांच रिपोर्ट की तलब
कोरबा 5 फरवरी 2022- छत्तीसगढ़ में सूबे के मुखियां किसान-भूमिहीन मजदूरों के उत्थान की दिशा में जमीनी स्तर पर काम कर रहे है, बेरोजगार ग्रामीणों के पलायन को रोकने और उन्हे अपने ही गांव में रोजगार दिलाने की दिशा में नयी नयी योजनांए तैयार की जा रही है, लेकिन सरकार की इन सारी मंशाओं पर कैसे पानी फेर कर भ्रष्टाचार किया जाता है, इसकी बानगी अगर देखनी है तो कोरबा चले आईये।
जी हां यहां वन विभाग के अफसरों ने कोरबा जिले में मजदूरों का पलायन रोकने के बजाये मध्यप्रदेश से मजदूरों का पलायन कर कोरबा के वन विभाग में काम करने के लिए बुला लिया गया, लेकिन जब मामले का खुलासा हुआ तो इस पूरे फर्जीवाड़े में लिप्त वन विभाग के अफसरों ने मजदूरों को कैम्प से बिना उनका मेहनताना दिये ही बाहर खदेड़ दिया। पीड़ित मजदूर परिवार सहित बोरिया बिस्तर लेकर जब कलेक्ट्रेट पहुंचकर डेरा डाल दिया, तो आनन-फानन में वन विभाग के अफसर मौके पर पहुंचे और नाराज मजदूरों को समझाने का प्रयास किया गया। इस पूरे मामले पर कोरबा कलेक्टर रानू साहू ने जांच टीम गठित कर दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने की बात कही है।
पूरा मामला कोरबा वन मंडल के दूधिटाँगर वन परिक्षेत्र का है यहां वन विभाग को पेड़ो के लिए जल श्रोत बनाये रखने के लिए कंटुर निर्माण कराया जाना था। इस काम को स्थानीय गांव के ग्रामीणों की मदद से भी कराया जा सकता था। लेकिन वन विभाग के रेंजर लक्ष्मण पात्रे ने अफसरों से मिलीभगत कर मध्यप्रदेश के कटनी और शहडोल से मजदूरों को पलायन कराकर कोरबा बुला लिया गया। 28 जनवरी को मध्यप्रदेश से परिवार के साथ कोरबा पहुंचे मजदूरों को बकायदा वन क्षेत्र में कैम्प बनाकर वहां ठहराया गया, और फिर 29 जनवरी से उनसे कंटूर निर्माण के काम पर लगा दिया। इसी दौरान मीडिया के जरिये मामले का खुलासा होने पर वन विभाग में हड़कंप मच गया। कलेक्टर रानू साहू ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए जहां श्रम विभाग सहित कोरबा एसडीएम को जांच के लिए ओदश दे दिया गया। वही इस पूरे मामले पर पर्दा डालने के लिए रेंजर लक्ष्मण पात्रे ने अफसरों के कहने पर आनन फानन में मजदूरों को उनकी मजदूरी दिये बगैर ही कैम्प से गाली-गलौच देकर खदेड़ कर बाहर निकाल दिया गया। इस घटना से आक्रोशित मजदूर छोटे-छोटे बच्चों के साथ शुक्रवार को बोरियां बिस्तर के साथ मजदूरी की मांग को लेकर कलेक्ट्रेट पहुंच गये। 70 से अधिक की संख्या में परिवार सहित पहुचे मजदूर परिवारो ने कलेक्ट्रेट में ही डेरा डाल दिया। जिसके बाद आनन-फानन में जिला प्रशासन और वन विभाग के अधिकारी मौके पर पहुंचे और मजदूरों को समझाने का प्रयास किया जाता रहा, लेकिन मजदूरी की मांग को लेकर मजदूर अड़े रहे।
मीडिया के सामने ही ALC से भीड़ गए SDO
इस पूरे घटनाक्रम की जांच कर रहे सहायक श्रमायुक्त राजेश आदिले कलेक्टर के निर्देश पर मामले की जांच कर रहे है। शुक्रवार की घटना की जानकारी के बाद एएलसी राजेश आदिले भी कलेक्ट्रेट पहुंचे। वहां वन विभाग के एसडीओं आई.जी. कुजूर भी मौजूद थे। मौके पर मीडिया के सामने ही वन विभाग के एसडीओं सहायक श्रमायुक्त की जांच पर सवाल खड़े कर विवाद करने लगे। वही इस पूरे मामले पर सहा.श्रमायुक्त राजेश आदिले ने बताया कि कलेक्टर मेडम के निर्देश पर वे जांच के लिए ग्राम दूधींटांगर गये हुए थे, जहां बिना लेबर लाईसेंस के 58 मजदूर व उनके परिवार को मध्यप्रदेश से लाकर वन विभाग काम करवा रहा था। संतोष कुमार लोनी नामक ठेकेदार मजदूरों को लेकर कोरबा आया था। जिस पर श्रम न्यायालय से रेंजर और ठेकेदार के खिलाफ कार्रवाई की जायेगी।
नियम विरूद्ध MP के मजदूरों को वन विभाग ने कर दिया कैश लेबर पेमेंट
वन विभाग में कार्यो मेें पारदर्शिता रखने और मजदूरों को सही भुगतान मिले इसके लिए शासन स्तर पर श्रमिकों के खाते में पैसा आरटीजीएस करने का वैधानिक प्रावधान है। लेकिन मध्यप्रदेश से मजदूरों को बुलाकर काम कराने के मामले में कोरबा डीएफओं के साथ ही उनकी पूरी टीम उलझती जा रही है। इस पूरे मामले के तुल पकड़ने के बाद शनिवार को नाराज मजदूरों को वन विभाग कार्यालय में 4 लाख रुपये नगद 58 मजदूरों को मजदूरी का भुगतान किया गया। जबकि नियम के मुताबिक मजदूरों के खाते में पैसा ट्रांसफर करने का नियम है। इस संबंध में जब SDO आशिष खेलवार से जानकारी चाही गयी, तो वो गोलमोल जवाब देकर पल्ला झाड़ते नजर आये।
मामला गंभीर है दोषियों पर की जाएगी कारवाई- कलेक्टर
वन विभाग के इस पूरे प्रकरण पर कलेक्टर रानू साहू से जब जानकारी चाही गयी, तो उन्होने साफ किया कि ये गंभीर प्रकरण है, सबसे पहले तो काम कराने के लिए दूसरे राज्य से मजदूरों को जिले में नही लाना चाहिए, यदि मजदूरों ने काम किया है तो उनका भुगतान रोकने का केाई प्रावधान नही है। मैंने इस पूरे मामले की जांच के लिए टीम गठित कर जांच की जवाबदारी एसडीओं को सौंपी है। मामले में जो भी दोषी होगा, उस पर कड़ी कार्रवाई की जायेगी।
DFO का विवादों से है पुराना नाता….
मध्यप्रदेश से मजदूरों का पलायन कराकर कोरबा वन मंडल में काम कराने के मामले में एक बार फिर कोरबा डीएफओं प्रियंका पांडे की कार्यप्रणाली सवालों के घेरे में है। इससे पहले भी पुरानी पदस्थापना में डीएफओं प्रियंका पांडे पर विभागीय कामकाज में नियंत्रण नही होने पर धरमजयगढ़ से रायपुर मुख्यालय में अटैच कर दिया गया था। कोरबा में पदस्थापना के बाद से ही DFO पर अपने करीबियों को विभाग में सप्लाई और सिविल कार्य के काम बांटने के गंभीर आरोप लगते रहे है, ऐसे में अब ये देखने वाली बात होगी कि सरकार की मंशा पर पानी फेरने के इस गंभीर प्रकरण पर सूबे की सरकार क्या कार्रवाई करती है, ये तो आने वाला वक्त ही बतायेगा।