अध्यातम

क्या प्रेम है सभी दुखों का कारण, जानें क्या कहती है चाणक्य नीति

चाणक्य एक भारतीय राजनीतिज्ञ और धार्मिक नेता थे जिन्हें इतिहास में एक महत्वपूर्ण व्यक्तित्व माना जाता है। उनका जन्म और जीवन गुप्त राजवंश (चौथी से तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व) के दौरान हुआ था। चाणक्य को कौटिल्य के नाम से भी जाना जाता है। चाणक्य ने ‘अर्थशास्त्र’ लिखा और चाणक्य नीति महत्वपूर्ण ग्रंथों में से एक है।

जिसमें उन्होंने राजनीति, अर्थव्यवस्था और समाज के विभिन्न पहलुओं पर अपने विचार व्यक्त किए हैं। चाणक्य को चंद्रगुप्त मौर्य के मार्गदर्शक के रूप में भी जाना जाता है। उन्होंने चंद्रगुप्त को नंद वंश के शासक धनानंद के खिलाफ युद्ध छेड़ने और साम्राज्य स्थापित करने के लिए प्रेरित किया।

क्या प्रेम है सभी दुखों का कारण, जानें क्या कहती है चाणक्य नीति

read more: स्कूली बच्चों से भरी गाड़ी को हाईवा ने मारी ठोकर, शिक्षिका सहित 16 बच्चों को आई चोंट, गंभीर हालत देख किया गया रेफर

उनकी नीति को आज भी बड़े-बड़े राजनेता अपनाते हैं। चाणक्य ने अपनी नीति में सभी मुद्दों पर विस्तार से चर्चा की है. इस एपिसोड में उन्होंने प्यार को सभी दुखों का कारण बताया है. चाणक्‍य के अनुसार जिससे प्‍यार किया जाता है उसे खोने का डर भी रहता है। आइए जानते हैं उन्होंने ऐसा क्यों कहा है.

“जो पत्नी चतुर और बुद्धिमान है वह सहायक होती है। जो पत्नी अपने पति के प्रति समर्पित होती है वह विशेष होती है। जो पत्नी अपने पति से प्रेम करती है, वह साझीदार है। जो पत्नी सच्ची हो उसे ही सत्य अपनाना चाहिए।”

इस श्लोक में चाणक्य ने वैवाहिक जीवन के महत्वपूर्ण गुणों का वर्णन किया है। चाणक्य के अनुसार पति के लिए पत्नी की बुद्धिमत्ता, भक्ति, पति के प्रति प्रेम और एक साथी के रूप में सत्यनिष्ठा का महत्व बताया गया है।

“जिसको स्नेह है, वह डरता है, और जिस को स्नेह है, वही उसके दुःख का कारण है।” प्रेम का मूल कारण दुःख है। इनका त्याग करके ही कोई सुखी जीवन जी सकता है।”

चाणक्य के अनुसार मनुष्य में सदैव स्नेह-भय, स्नेह-दुःख का द्वंद्व बना रहता है। स्नेह से होने वाले दर्द को समझकर और स्नेह के मूल कारणों को त्यागकर ही व्यक्ति सुखी जीवन जी सकता है।

क्या प्रेम है सभी दुखों का कारण, जानें क्या कहती है चाणक्य नीति

read more: पौड़े-पौड़े गाने पर विराट कोहली ने बांधा समां, मैदान पर ही जमकर लगाए ठुमके

आचरण और सम्मान से लोगों को प्रसिद्धि मिलती है। इससे देश का मान-सम्मान बढ़ता है। वह माया से लोगों को अपने से प्रेम कराता है और अपने शरीर के मान से भोजन करता है।

इस श्लोक में चाणक्य ने व्यक्ति के आचरण, स्नेह और खान-पान के साथ-साथ उनके महत्व को भी बताया है। आचरण का सम्मान व्यक्ति की प्रतिष्ठा और देश की प्रतिष्ठा को बढ़ाता है, जबकि व्यक्ति की गरिमा और स्नेह व्यक्ति को आत्मविश्वास और समृद्धि प्राप्त करने में मदद करता है।

Back to top button