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NW न्यूज 24 स्पेशल : रोका-छेका अभियान अन्नदाताओं के लिए बना वरदान….मुख्यमंत्री की पहल पर रोका-छेका प्रथा हुई पुनर्जीवित, मिल रहा लाखों किसानों को लाभ…

  • फसल और पशुधन रक्षा के लिए जरूरी रोका-छेका अभियान
  • गांव में गौठानों के बनने से आसान हो गया रोका-छेका का काम

रायपुर । किसान ही किसान का दर्द जान सकता है ! उनकी परेशानी को पहचान सकता है…उनकी मुश्किलों का हल निकाल सकता है।…तभी तो छत्तीसगढ़ में अन्नदाता कब और किस तरह की चुनौतियों का सामना कर रहा है…उसका समाधान भूपेश सरकार मिनटों में कर रही है। दशकों से किसान अपनी मेहनत से लगायी फसल को आवारा पशुओं के चारा बन जाने के दर्द को झेलता रहा है। फसलों को आवारा पशुओं के झुंड से बचाने के लिए किसानों को रतजगा को मजबूर होना पड़ता था। रात-दिन उन्हें सब काम छोड़कर खेतों पर पहरा बिठाना पड़ा था, लेकिन जब से किसान पुत्र भूपेश बघेल ने प्रदेश की कमान संभाली है, उन्होंने लहलहाती फसल को आवारा पशुओं का निवाला बन जाने के डर से किसानों को पूरी तरह से मुक्त कर दिया है।

मुख्यमंत्री के ड्रीम प्रोजेक्ट गोठान की वजह से रोका छेका का काम बेहद आसान हो गया है। इस साल भी खरीफ फसलों की सुरक्षा के लिए प्रदेशव्यापी रोका-छेका का अभियान शुरू किया गया है। इस दौरान फसल को चराई से बचाने के लिए पशुओं को नियमित रूप से गौठान में लाने हेतु रोका-छेका अभियान के अंतर्गत मुनादी कराई जा रही है। गौठानों में पशु चिकित्सा शिविर लगाकर पशुओं के स्वास्थ्य की जांच, पशु नस्ल सुधार हेतु बधियाकरण, कृत्रिम गर्भधान एवं टीकाकरण किया जा रहा है।

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा है कि रोका-छेका हमारी पुरानी पंरपरा है। राज्य में बीते सालों में भी यह अभियान चलाया गया था, जिसका परिणाम बड़ा ही उत्साहजनक रहा है। इसे ध्यान में रखते हुए राज्य में चालू खरीफ सीजन के दौरान यह अभियान पुनः चलाया जा रहा है। उन्होंने इसकी सफलता के लिए सभी किसानों एवं पशुपालकों से सहयोग की अपील की है। राज्य में खरीफ फसलों की बुवाई तेजी से शुरू हो गई है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा कि हम सब जानते है कि फसलों की बुवाई के बाद किसानों की सबसे बड़ी चिन्ता फसलों की देखभाल और उसकी सुरक्षा की होती है। फसलों की सुरक्षा के लिए रोका-छेका का अभियान महत्वपूर्ण साबित हो रहा है, इससे हमारी फसल और पशुधन दोनों सुरक्षित रहेंगे।

रोका-छेका हमारी पुरानी परंपरा: मुख्यमंत्री भूपेश बघेल

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा कि रोका-छेका हमारी पुरानी परंपरा है। इसके माध्यम से हम अपने पशुओं को खुले में चराई के लिए नहीं छोड़ने का संकल्प लेते हैं, ताकि हमारी फसलों को नुकसान ना पहुंचे। पशुओं को अपने घरों, बाड़ों और गौठानों में रखा जाता है और उनके चारे-पानी का प्रबंध करना होता है। पशुओं का रोका छेका का काम, अब गांव में गौठानों के बनने से आसान हो गया है। गौठानों में पशुओं की देखभाल और उनके चारे-पानी के प्रबंध की चिंता भी अब आपकों करने की जरूरत नहीं है। गौठान समितियां इस काम में लगी हैं।

8408 गौठान बनकर तैयार

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा कि राज्य में पशुधन की बेहतर देखभाल हो, इस उद्देश्य से गांव में गौठान बनाए जा रहे हैं। अब तक हमनें 10, 624 गौठानों के निर्माण की स्वीकृति दी है, जिसमें से 8408 गौठान बनकर तैयार हो गए हैं। गोठनों में आने वाले पशुओं को सूखा चारा के साथ-साथ हरा चारा उपलब्ध हो, इसके लिए सभी गोठनों में चारागाह का विकास तेजी से किया जा रहा है। राज्य के 1200 से अधिक गौठानों में हरे चारे का उत्पादन भी पशुओं के लिए किया जा रहा है।

पशुओं को बीमारी से बचाता है रोका-छेका अभियान

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा कि बरसात के दिनों में ही पशुओं में गलघोटू और एकटंगिया की बीमारी होती है। पशुओं को इन दोनों बीमारियों से बचाने के लिए उनकी देखभाल इस मौसम में ज्यादा जरूरी है। रोका-छेका का अभियान भी इसमें मददगार होगा। गलघोटू और एकटंगिया बीमारी से बचाव के लिए पशुधन विकास विभाग द्वारा पशुओं को टीका लगाया जा रहा है। पशुधन हमारी संपत्ति है। इसकी देखभाल करें, खुले में चरने के लिए न छोड़े, इससे हमारी फसल और पशुधन दोनों सुरक्षित रहेंगें। कृषि मंत्री रविन्द्र चौबे के मुताबिक राज्य में खरीफ फसलों की सुरक्षा के लिए इस वर्ष भी रोका-छेका का अभियान संचालित किया जा रहा है। हमारे किसान भाईयों ने राज्य में बीते वर्ष रोका-छेका अभियान को सफल बनाया था, जिसके कारण राज्य में बम्फर फसल उत्पादन हुआ। गांवों में गौठानों के बनने से रोका-छेका का काम सहज हो गया है। किसान भाईयों अब अपने पशुओं की देखभाल और उनके चारे-पानी के प्रबंध की चिंता करने की जरूरत नहीं है, गौठानों में पशुओं के देखभाल एवं चारे-पानी का प्रबंध है।

अधिकारियों को दिए गए निर्देश

छत्तीसगढ़ के सभी कलेक्टर और जिला पंचायत के अधिकारियों को रोका छेका कार्यक्रम करने के लिए विशेष दिशा – निर्देश दिए गए हैं. छत्तीसगढ़ के सभी कलेक्टरों और जिला पंचायत के मुख्य कार्यपालन अधिकारियों को गौठानों में पशुओं की रखरखाव और उचित व्यवस्था करने के साथ-साथ पशुपालकों और किसानों को अपने पशुओं को घर में बांधकर रखने के लिए, उत्साहित करने और गांव के चारागाह की व्यवस्था करने के संबंध में दिशा निर्देश दिए गए हैं। ग्राम स्तर पर इसकी बैठक आयोजित करने के निर्देश दिए गए हैं, ताकि अभियान सफल हो सके। कलेक्टरों और जिला पंचायत के मुख्य कार्यपालन अधिकारियों से कहा गया है कि ग्राम स्तर पर ग्राम सरपंच, पंच, जनप्रतिनिधि तथा ग्रामीणजन की बैठक आयोजित कर पशुओं के नियंत्रण से फसल बचाव का निर्णय ग्राम सरपंच, पंच, जनप्रतिनिधियों तथा ग्रामीणों द्वारा लिया जाए। बता दें कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की पहल पर गांवों में रोका-छेका प्रथा को फिर से पुनर्जीवित किया गया है। इस वर्ष रोका-छेका कार्यक्रम का दूसरा वर्ष है। कृषि उत्पादन आयुक्त डा. कमलप्रीत सिंह ने कलेक्टरों और जिला पंचायत के मुख्य कार्यपालन अधिकारियों को इस संबंध में विस्तृत दिशा-निर्देश जारी किया है।कृषि उत्पादन आयुक्त ने वर्षा, बाढ़ से गोधन न्याय योजना अंतर्गत गोठानों में क्रय किए गए गोबर, उत्पादित वर्मी कंपोस्ट और सुपर कंपोस्ट को सुरक्षित रखने के प्रबंध करने, जैविक खेती की महत्ता का व्यापक प्रचार-प्रसार करने और गोधन न्याय योजना अंतर्गत उत्पादित वर्मी कंपोस्ट व सुपर कंपोस्ट के खेती में उपयोग के लिए कृषकों को प्रेरित करने के निर्देश दिए हैं।

प्रमुख बिंदु

  • इस दौरान फसल को चराई से बचाने के लिये पशुओं को नियमित रूप से गोठान में लाने हेतु रोका-छेका अभियान के अंतर्गत मुनादी कराई जाएगी।
  • गोठानों में पशु चिकित्सा शिविर लगाकर पशुओं के स्वास्थ्य की जाँच, पशु नस्ल सुधार हेतु बधियाकरण, कृत्रिम गर्भधान एवं टीकाकरण किया जाएगा।
  • रोका-छेका राज्य की पुरानी परंपरा है। इसके माध्यम से पशुपालक अपने पशुओं को खुले में चराई के लिये नहीं छोड़ने का संकल्प लेते हैं, ताकि फसलों को नुकसान न पहुँचे। पशुओं को अपने घरों, बाड़ों और गोठानों में रखा जाता है तथा उनके चारे-पानी का प्रबंध करना होता है।
  • पशुओं का रोका-छेका का काम अब गाँव में गोठानों के बनने से आसान हो गया है। गोठानों में पशुओं की देखभाल और उनके चारे-पानी के प्रबंध का काम गोठान समितियाँ करने लगी हैं।
  • राज्य में पशुधन की बेहतर देखभाल के उद्देश्य से गाँव में गोठान बनाए जा रहे हैं। अब तक 10,624 गोठानों के निर्माण की स्वीकृति दी गई है, जिसमें से 8,408 गोठान बनकर तैयार हो गए हैं। गोठानों में आने वाले पशुओं को सूखा चारा के साथ-साथ हरा चारा उपलब्ध कराने के लिये सभी गोठानों में चारागाह का विकास किया जा रहा है। राज्य के 1200 से अधिक गोठानों में हरे चारे का उत्पादन भी पशुओं के लिये किया जा रहा है।

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