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मुझ बेजुबान की क्या गलती ? दीपआशा की कहानी, नितिन सिंघवी के शब्दों में


नितिन सिंघवी
लेखक-छत्तीसगढ़ के जाने माने वन्य पर्यावरणप्रेमी हैं

दीपआशा नाम है मेरा, मादा वन भैंसा हूं, अभी रायपुर के जंगल सफारी में आजीवन कैद काट रही हूं। वैसे तो जू में हर जानवर बिना अपराध के रहता है परंतु मेरी कहानी बिल्कुल अलग है। मेरी मां का नाम आशा था, मां अपने मालिक चेतन के साथ पालतू भैंसा के रूप में रहती थी। परंतु मां को वन भैंसा मानकर 15 साल पहले वन विभाग उसे उठा लाया और छत्तीसगढ़ के उदंती सीतानदी टाइगर रिजर्व के भैंस-बाड़ा में रख दिया। तब गांव वालों ने मां को उठाने के विरोध में धरना प्रदर्शन भी किया था। वन विभाग ने यह सब इसलिए किया क्योंकि अचानक ही वन भैसों की संख्या बहुत ही कम हो गई थी और बचे सिर्फ नर थे।

वन विभाग ने सोचा की मां को वन भैसों से क्रॉस करा कर संख्या बढ़ाएंगे। मां से मेरे पांच भाई हुए उसके बाद एक बहन। अधिकारियों ने निर्णय लिया गया कि मां के क्लोन से भी बच्चा पैदा कराया जाए। बस फिर क्या, माँ से क्लोन लिया गया, दिल्ली के बूचड़खाने से भैंस का अंडा और दिसंबर 2014 में मैं करनाल में पैदा हुई, मैं राष्ट्रीय अखबारों की सुर्खियां बनी।

मेरा बचपन बहुत अच्छा गुजरा, जैसे दूसरे बच्चों का गुजरता है, मेरी देखभाल प्यार दुलार करने वाली कई बुजुर्ग मांओं ने की। दिन अच्छे से गुजर रहे थे, मैं साढ़े तीन साल की हो गई थी। अचानक एक दिन मुझे बताया गया कि मुझे अपनों से हरदम के लिए अलग कर छत्तीसगढ़ ले जाया जाएगा। मेरे लिए यह सदमा था, जिनके साथ पली-बढ़ी अब आजीवन उनसे नहीं मिल पाऊंगी। सबसे ज्यादा डराने वाली बात यह पता लगी कि एक जू में बने ब्रीडिंग सेंटर में कैद रखा जाएगा।

दुखी मन के साथ 2018 में मैं रायपुर पहुंची, मेरी देखभाल में तीन चार केयरटेकर लगे, आज भी हैं, परंतु मैं सात पर्दों के पीछे कैद में हूं, अकेली रहती हूं, सिर्फ केयरटेकर से ही बात कर सकती हूं। आमजन मुझे नहीं देख सकते सिर्फ वीआईपी ही मुझे देखने आ सकते हैं।

बिना सोचे समझे मुझे पैदा तो करा लिया, पैदा होने के 4 साल बाद होश आया कि मुझसे बच्चे कैसे पैदा कराएं? इसलिए दिसंबर 2018 में एक मीटिंग हुई, चर्चा हुई कि जंगल सफारी में उदंती सीतानदी से नर वन भैंसा लाया जाए या मुझे वहां ले जाया जाए। यह भी निर्णय लिया गया कि मेरा डीएनए टेस्ट भी कराया जाए।

विशेषज्ञों से राय ली गई, कुछ ने कहा मैं पालतू भैंसों के साथ बड़ी हुई हूं, मुझ में पालतू गुण है, ऐसे में मुझे नर वन भैंसों के पास उदंती सीतानदी में भेजे जाने पर खतरा रहेगा। उन्होंने शंका जताई कि वन भैसों से मुझे बिमारियां भी आ सकती है। जू अथॉरिटी ने भी कहा कि जंगल में मुझे चोट लगने की संभावना रहेगी, कहा आर्टिफिशियल इनसेमिनेशन से बच्चे पैदा कराए जाएं।

मुझे मेरे केयरटेकर ने बताया की मैं वन भैसा नहीं हूं, तकनीकी फेल होने के कारण मैं मुर्रा भैंसा पैदा हुई। सही बात भी है, मेरे सिंग वन भैंसा के समान नहीं हैं, मुर्रा भैंस के समान है। परंतु वन विभाग के अधिकारी दावा करते हैं कि सिंग ही तो मुड़ा है, बाकी मैं वन भैसा ही हूं।

इस बीच 2021 में एक वन्यजीव प्रेमी ने वन मंत्री से मिलकर कहा कि ना तो दीपआशा से प्रजनन कराया जा सकता है ना ही उसे जंगल में छोड़ा जा रहा है। दीपआशा साधारण मुर्रा भैंसा है, उसे छोड़ दिया जाए, उसे अपना प्राकृतिक जीवन जीने का हक प्रदान किया जाए। मंत्री ने मामले को गंभीरता से लिया शासन ने वन विभाग से जवाब मांगा, 2 साल हो गए हैं कोई जवाब नहीं दिया। जवाब तो छोड़ें पांच साल से मेरी डीएनए रिपोर्ट भी नहीं आई। केयरटेकर बता रहे थे कि असम से जो वन भैसे लाये हैं उनके डीएनए की रिपोर्ट दस दिन में ही आ गई। अगर मेरी रिपोर्ट भी आ जाए और मैं मुर्रा भैंस निकलूं तो भी मुझे छोड़ेंगे नहीं, विभाग की राष्ट्रिय स्तर पर बेज्जती होगी, मुझ पर करोडों खर्चा हो चुका है।

जीवन की आधी उम्र मैंने गुजार दी है। अगर खुली रहती तो अपना प्राकृतिक धर्म निभा कर बच्चे पैदा कर सुख पाती। आप ही बताइए मैंने ऐसी क्या गलती की है कि आजीवन कैद की सजा काट रही हूं?

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