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ED डायरेक्टर को एक्सटेंशन मामले में सुप्रीम ने फैसला रखा सुरक्षित, जानिये क्या हुआ अब तक

नयी दिल्ली 9 मई 2023। ED डायरेक्टर को तीसरी बार एक्सटेंशन देने के मामले में सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई पूरी हो गयी। प्रवर्तन निदेशालय के निदेशक संजय मिश्रा के कार्यकाल विस्तार को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है। जिस पर सोमवार को अदालत ने सुनवाई पूरी कर ली। याचिका पर सुनवाई की प्रक्रिया पूरी ने सर्वोच्च अदालत ने फैसला सुरक्षित रख लिया है। जस्टिस बीआर गवई, न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और जस्टिस संजय करोल की बेंच ने सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रखा। कोर्ट ने संबंधित पक्षों से अगले शुक्रवार तक अतिरिक्त लिखित नोट दाखिल करने को भी कहा है।

आपको बता दें कि संजय मिश्रा को नवंबर 2018 में बतौर निदेशक ईडी नियुक्त किया गया था। उन्हें 60 वर्ष की आयु तक पहुंचने के दो साल बाद सेवानिवृत्त होना था। लेकिन नवंबर 2020 में सरकार ने नियमों में संशोधन किया। उनका कार्यकाल दो साल से बढ़ाकर तीन साल कर दिया गया। पिछले साल नवंबर में मिश्रा को एक साल का और विस्तार दिया गया, जिसे अब चुनौती दी गई है। अदालत ने मिश्रा को तीसरी बार सेवा विस्तार दिए जाने को चुनौती देने वाली याचिका पर 12 दिसंबर को केंद्र और अन्य से जवाब मांगा था।

केंद्रीय सतर्कता आयोग अधिनियम में किए गए संशोधन को भी सुप्रीम कोर्ट के समक्ष चुनौती दी गई है। याचिकाकर्ताओं में कांग्रेस नेता जया ठाकुर, रणदीप सिंह सुरजेवाला, तृणमूल कांग्रेस सांसद महुआ मोइत्रा शामिल हैं। तुषार मेहता ने संजय मिश्रा को दिए गए तीसरे एक्सटेंशन का बचाव करते हुए कहा कि ये बेहद जरूरी था। FATF के होने वाले रिव्यू को देखते हुए ये जरूरी है कि संजय मिश्रा निदेशक की सीट पर बरकरार रहें। उनकी दलील थी कि ईडी निदेशक को एक्सटेंशन तब विवादित हो सकता था जब किसी अन्य अफसर का इससे हक प्रभावित होता हो। लेकिन ईडी निदेशक की नियुक्ति का काम तो सीधे एक पैनल करता है।

इसमें डिपार्टमेंटल प्रमोशन तो कहीं पर भी नहीं होता। उनका कहना था कि कॉमन कॉज मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला सरकार पर किसी तरह की बंदिश नहीं लगाता है। मेहता का कहना था कि एक अफसर के न रहने से ईडी जैसी एजेंजी पर फर्क नहीं पड़ता। लेकिन उनकी मौजूदगी एक बड़ा फर्क पैदा कर सकती है। सॉलीसिटर जनरल ने जैसे ही कॉमन कॉज मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का जिक्र किया। वैसे ही जस्टिस बीआर गवई ने कहा कि वो मानते हैं कि उनसे गलती हो गई थी। खास बात है कि जिस बेंच ने दो साल पहले ये फैसला दिया था उस बेंच में खुद जस्टिस गवई भी शामिल थे। जस्टिस एल नागेश्वर राव उस बेंच की अगुवाई कर रहे थे। जस्टिस गवई ने आज कहा कि उनके साथी जज भी उनकी बात से इत्तेफाक रखते थे।

शीर्ष अदालत ने कहा कि उसने 2021 के अपने फैसले में स्पष्ट रूप से कहा था कि सेवानिवृत्ति की आयु होने के बाद प्रवर्तन निदेशालय के निदेशक के पद पर रहने वाले अधिकारियों को दिया गया कार्यकाल का विस्तार छोटी अवधि के लिए होना चाहिए और उसने स्पष्ट रूप से उल्लेख किया था कि मिश्रा को सेवा में आगे कोई विस्तार नहीं दिया जाएगा. अदालत ने कहा, ‘‘क्या संगठन में कोई ऐसा व्यक्ति नहीं है, जो उनकी जिम्मेदारी निभा सके? क्या कोई व्यक्ति इतना जरूरी हो सकता है कि उसके बिना काम ही नहीं हो सके?’’ न्यायमूर्ति बी आर गवई, न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति संजय करोल की पीठ ने केंद्र की पैरवी कर रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से कहा, ‘‘आपके हिसाब से, प्रवर्तन निदेशालय में कोई अन्य व्यक्ति योग्य नहीं है? एजेंसी का 2023 के बाद क्या होगा, जब वह सेवानिवृत्त होंगे?’’

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