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CG POLITICS : साजा के सियासी संग्राम में कौन शेर कौन बकरी ?

16 अक्टूबर 2023|छत्तीसगढ़ की हाईप्रोफाइल सीट साजा में इस बार सियासत कौन सी करवट लेगा? हर किसी के जेहन में यही सवाल उठ रहा है, क्योंकि बीजेपी ने यहां स्मार्ट मूव करने के लिए एक ऐसे व्यक्ति को टिकट दी है, जिसका कोई राजनीतिक बैकग्राउंड नहीं है। साजा विधानसभा से 7 बार चुनाव जीत चुके दिग्गज नेता रविंद्र चौबे के सामने भाजपा ने बिरनपुर हिंसा के पीड़ित ईश्वर साहू को मैदान में उतारा है। जिसके बाद ये सवाल सियासी फिजां में तैर रहे हैं कि कौन शेर साबित होगा और कौन बकरी?
शेर और बकरी का सवाल साजा इलाके में इसलिए शोर बन रहा है, क्योंकि जब भाजपा ने एकदम आम पृष्ठभूमि के गरीब ग्रामीण ईश्वर साहू को मैदान में उतारा तो कहा गया कि सरकार के वरिष्ठ मंत्री रवींद्र चौबे जैसे शेर के मुकाबले भाजपा ने बकरी को आगे कर दिया है। लेकिन जब यही सवाल ईश्वर साहू से पूछा गया तो उसका वजाब था कि जब शेर को पिंजरे में बंद करना होता है, तब उसके सामने बकरी बांधी जाती है। छत्तीसगढ़ के सियासी इतिहास में शायद ये पहला मौका है जब पूरी तरह से सांप्रदायिकता के शिकार गरीब को फ्रंट फुट पर रखकर कोई चुनाव लड़ा जा रहा है। भाजपा का ये हिंदुत्व कार्ड कितना काम करेगा, इसे तो जनता 17 नवंबर को तय करेगी। लेकिन फिलहाल बीजेपी से ईश्वर साहू और अब कांग्रेस से रविंद्र चौबे का नाम फाइनल हो जाने के बाद इस सीट पर आमने-सामने की लड़ाई शुरू हो गई है। रविंद्र चौबे जैसे कद्दावर के सामने ईश्वर साहू के मुकाबले का नतीजा चाहे जो हो, लेकिन ये तो तय है कि पूरे प्रदेश की नज़रें बीजेपी के इस प्रयोग पर टिकी हैं। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का कहना है कि ईश्वर साहू विशुद्ध रूप से गैर राजनीतिक व्यक्ति हैं। भाजपा लाख कोशिश करे लेकिन बिरनपुर मुद्दा नहीं हो सकता। डिप्टी सीएम टीएस सिंहदेव कहते हैं कि ये एक प्रयोग है भावनाओ से खेलने का। भाजपा सहानुभूति पाना चाहती है।

ये है साजा का सियासी समीकरण
कांग्रेस हमेशा से बीजेपी पर सांप्रदायिकता को सियासी रंग देने का आरोप लगाती रही है। बीते पांच सालों में भूपेश बघेल की सरकार ने भी हर बार यही कहा। बिरनपुर में भी भाजपा पर ये आरोप लगे। इन सबके बाद भी हिंदू मतदाताओं को साधने की जुगत में भाजपा ने हिंदुत्व का ये बड़ा दांव खेलते हुए ईश्वर साहू को मैदान में उतारा है। कांग्रेस के पास एकदम सीधा समीकरण और गणित है कि साजा रविंद्र चौबे का सुरक्षित गढ़ है और उनकी सरकार ने पांच सालों में ऐसे काम किए हैं कि जनता जीत दिलाएगी। लेकिन बीजेपी ने बहुत सारे समीकरण को ध्यान में रखकर ये चाल चली है। भाजपा अस्तित्व में आने के बाद साजा में सिर्फ एक बार ही जीत सकी है। इस बार वो किसी भी हाल में ये सीट अपनी झोली में करना चाहती है, इलसिए उसने बिरनपुर हिंसा पीड़ित परिवार के सदस्य को चुनाव में उतरा। बीजेपी को लगता है कि वह ऐसा करके प्रशासन और स्थानीय विधायक के प्रति उपजी नाराजगी को भुना सकती है। ईश्वर साहू ओबीसी वर्ग से है, लिहाजा वो पूरे प्रदेश में साहू समाज की सहानुभूति भाजपा के पक्ष में बटोरना चाहती है। भाजपा को ये पता है कि इस विधानसभा क्षेत्र की 65 प्रतिशत आबादी ओबीसी है। इनमें भी साहू और लोधी की अधिकता है। भाजपा के पास खोने के लिए साजा में कुछ नहीं है, लेकिन उसे उम्मीद है कि अगर उसका हिंदुत्व कार्ड चल गया तो वो सरकार के सबसे ताकतवर मंत्री को हरा सकती है।

क्या हुआ था बिरनपुर में?
इसी साल अप्रैल के महीने में साजा इलाके के बिरनपुर में दो समुदायों के बीच विवाद की स्थिति बनी। जिसके बाद गांव में हुई सांप्रदायिक हिंसा में ईश्वर साहू के बेटे भुवनेश्वर साहू की हत्या कर दी गई। बच्चों के झगड़े से शुरू हुए इस विवाद की आग में कई घर जल गए। 4 दिन बाद गांव में अल्पसंख्यक समुदाय के बाप बेटे की हत्या कर दी गई। दो हफ्ते तक बिरनपुर में कर्फ्यू लगा रहा। पुलिस ने मामले में दोनों समुदाय के दर्जनों लोगों की गिरफ्तारी की, लेकिन सबूतों के अभाव में सभी रिहा हो गए।

कौन है ईश्वर साहू
साजा इलाके के बिरनपुर गांव में रहने वाले ईश्वर साहू का कोई राजनीतिक बैकग्राउंड नहीं है। एकदम गरीब और आम मजदूर ईश्वर साहू की सिर्फ इतनी ही पहचान है कि वो बिरनपुर हिंसा में मारे गए युवक भुवनेश्वर यादव का पिता है। छत्तीसगढ़ सरकार ने मृतक भुवनेश्वर साहू के परिवार के लिए 10 लाख रुपये के मुआवजे और सरकारी नौकरी का ऐलान किया था। लेकिन पीड़ित परिवार ने इसे लेने से इनकार करते हुए कहा था कि उन्हें पैसा और सरकारी नौकरी नहीं, न्याय चाहिए।

कौन हैं रविंद्र चौबे?
7 बार साजा विधानसभा से चुनाव जीत चुके रविंद्र चौबे की गिनती कांग्रेस सरकार के सबसे ताक़तवर मंत्रियों में होती है। अविभाजित मध्यप्रदेश में भी कैबिनेट मंत्री और छत्तीसगढ़ विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष रह चुके रविंद्र चौबे की पकड़ सिर्फ साजा विधानसभा ही नहीं, पूरे प्रदेश में है। करीब तीन दशक से सक्रिय राजनीति कर रहे रविंद्र चौबे को 1985, 1990, 1993, 1998, 2003, 2008 और 2018 में साजा विधानसभा से जीत मिली है।

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