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गजब मामला कुत्तों की मौत पर FIR ! ‘कुत्ते इंसान नहीं, हादसे में मौत पर नहीं हो सकती FIR’, HC ने पुलिस पर लगाया जुर्माना….

मंबई 10 जनवरी 2023: मालिक कुत्तों को अपने बच्चों के रूप में मान सकते हैं, लेकिन कुत्ते इंसान नहीं हैं और इसलिए किसी व्यक्ति पर आईपीसी की धारा 279 और 337 के तहत मानव जीवन को खतरे में डालने या किसी अन्य व्यक्ति को चोट या चोट पहुंचाने की संभावना के लिए मामला दर्ज नहीं किया जा सकता है।

एक कुत्ते की मौत के मामले में दर्ज एफआईआर को लेकर बॉम्बे हाईकोर्ट ने मुंबई पुलिस को कड़ी फटकर लगाई है। अदालत ने कहा है मामले में कार्रवाई ये दर्शाती है कि इसमें दिमाग का इस्तेमाल नहीं किया गया। अदालत ने अपने आदेश के साथ टिप्पणी की कि लोग कुत्ते पाल सकते हैं। वे उन्हें अपने बच्चे की तरह भी मान सकते हैं लेकिन कुत्ते इंसान नहीं हैं।

मुंबई में फूड डिलीवरी मैन की बाइक से टक्कर लगने के बाद एक कुत्ते की मौत हो गई थी। मामले में कुत्ते की मालिक महिला ने युवक पर कुत्ते की हत्या करने का आरोप लगाया था। मामले में मुंबई के एसडीआर पुलिस थाने में युवक के खिलाफ आईपीसी की धराओं के तहत मुकदमा दर्ज किया था। दर्ज एफआईआर के मुताबिक 11 अप्रैल, 2020 को शिकायतकर्ता मरीन ड्राइव पर रात करीब 8 बजे आवारा कुत्तों को खाना खिला रही थी। आरोप है कि उस वक्त बाइक सवार युक ने सड़क पर चल रहे एक कुत्ते को टक्कर मार दी। घटना के बाद गाय बाद में कुत्ते ने दम तोड़ दिया। अपनी शिकायत में उसने कहा कि गोडबोले की बाइक भी फिसल गई और वह भी घायल हो गया।

याचिकाकर्ता के खिलाफ पुलिस ने दाखिल किया आरोप पत्र
कुत्ता प्रेमी और शिकायतकर्ता की शिकायत पर, मरीन ड्राइव पुलिस ने मोटर वाहन अधिनियम की धारा 279, 337, 429, 184 और पशु क्रूरता निवारण अधिनियम के तहत अपराध दर्ज किया। कुछ महीनों के भीतर मानस मंदार गोडबोले (20) के खिलाफ 64वें मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट अदालत में आरोप पत्र दायर किया गया था। मानस मंदार गोडबोले ने धारा 279, 337 और 429 के आवेदन को चुनौती देने वाली एक याचिका दायर की।

कोर्ट ने क्या कहा
मामले में पुलिस रिकॉर्ड का अवलोकन करने के बाद, बॉम्बे हाई कोर्ट की पीठ ने कहा, “इसमें कोई संदेह नहीं है कि एक कुत्ते/बिल्ली को उनके मालिकों द्वारा एक बच्चे या परिवार के सदस्य के रूप में माना जाता है, लेकिन बुनियादी जीव विज्ञान हमें बताता है कि वे इंसान नहीं हैं। आईपीसी की धारा 279 और 337 मानव जीवन को खतरे में डालने वाले कार्यों से संबंधित है, या किसी अन्य व्यक्ति को चोट या चोट लगने की संभावना है। इस प्रकार, कानूनी तौर पर कहा गया है कि उक्त धाराओं का तथ्यों पर कोई लागू नहीं होगा।”हाई कोर्ट ने यह भी कहा कि जहां तक आईपीसी की धारा 429 के आवेदन का संबंध है, इसमें भी कोई आवेदन नहीं होगा, क्योंकि आवश्यक सामग्री (अर्थात किसी व्यक्ति या संपत्ति को नुकसान और क्षति पहुंचाना), इस धारा के आवेदन की गारंटी है।

हाईकोर्ट ने रद्द की एफआईआर
घटना के वक्त याचिकाकर्ता गोडबोले की उम्र 18 वर्ष थी। वे इलेक्ट्रॉनिक्स एवं दूरसंचार में डिप्लोमा के अंतिम वर्ष का छात्र थे। स्विगी फूड डिलीवरी पार्टनर का भी काम करते थे। उनकी बाइक से कुत्ते के मौत को लेकर महिला का शिकायत पर मुंबई पुलिस की कार्रवाई के बाद युवक हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की थी। जिसमें उनकी अधिवक्ता तृप्ति आर शेट्टी ने दलील पेश की और प्राथमिकी को रद्द की जानी चाहिए।

पुलिस की कार्रवाई तथ्यहीन
याचिका पर सुनवाई करते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट में जस्टिस रेवती मोहिते डेरे और पृथ्वीराज चव्हाण की पीठ ने कहा, “इसमें कोई संदेह नहीं है कि एक कुत्ते/बिल्ली को उनके मालिकों द्वारा एक बच्चे या परिवार के सदस्य के रूप में माना जाता है, लेकिन बुनियादी जीव विज्ञान हमें बताता है कि वे इंसान नहीं हैं। आईपीसी की धारा 279 और 337 मानव जीवन को खतरे में डालने वाले कार्यों से संबंधित है, या किसी अन्य व्यक्ति को चोट या चोट लगने की संभावना है। ये उक्त धाराओं का तथ्यों पर कोई लागू नहीं होगी … “

राज्य सरकार भुगतान करेगी ₹20,000
मामले के सुनवाई के दौरान अदालत ने अपने नोट में कहा, “याचिकाकर्ता का कुत्ते की मौत का कारण बनने का कोई इरादा नहीं था, वो अपनी बाइक से र भोजन पार्सल करने जा रहा था। पुलिस द्वारा आईपीसी की ऐसी धाराओं तहत कार्रवाई से स्पष्ट होता है कि इसमें दिमाग का इस्तेमाल नहीं किया गया।” कोर्ट ने मामले में एफआईआ रद्द करने के साथ राज्य सरकार को याचिकाकर्ता को 20,000 रुपये का भुगतान करने के निर्देश दिया।

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